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सांविधानिक विधि
उच्चतम न्यायालय द्वारा दि ल्ली के मुख्यमंत्री को ज़मानत
« »17-Sep-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसा निर्णय दिया है जो आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर के मुद्दों पर प्रकाश डालता है। न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की आंशिक रूप से सहमति ने गिरफ्तारी के अनुचित उपयोग के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की आलोचना की और तर्क दिया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की अभिरक्षा अनिवार्य रूप से उन्हें किसी अन्य मामले में ज़मानत का लाभ उठाने से रोकने का एक प्रयास था। यह निर्णय विधिक प्रक्रियाओं के दुरुपयोग एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति अधिक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता के विषय में चिंताएँ व्यक्त करता है।
अरविंद केजरीवाल बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो मामले में पृष्ठभूमि और न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?
पृष्ठभूमि:
- दिल्ली के मुख्यमंत्री (अपीलकर्त्ता) को दिल्ली शराब नीति मामले में 26 जून, 2024 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने गिरफ्तार किया था।
- जब CBI ने उनकी गिरफ्तारी की, उस समय CM पहले से ही धन शोधन से संबंधित एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अभिरक्षा में थे।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने इससे पहले 5 अगस्त को CBI की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली CM की याचिका को अस्वीकार कर दिया था और उन्हें ज़मानत के लिये अधीनस्थ न्यायालय में जाने की छूट दी थी।
- CM ने उच्चतम न्यायालय में दो याचिकाएँ दायर कीं - एक में उनकी CBI द्वारा की गयी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई और दूसरी में CBI मामले में ज़मानत की मांग की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की उच्चतम न्यायालय की पीठ ने याचिकाओं पर अलग-अलग निर्णय दिये।
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी विधिक थी और इसमें कोई प्रक्रियागत अनियमितता नहीं थी।
- न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ ने CBI द्वारा अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी की आवश्यकता और समय पर प्रश्न उठाया तथा कहा कि यह 22 महीने की निष्क्रियता के उपरांत एवं ED मामले में उसकी संभावित रिहाई के तुरंत बाद ही क्यों हुआ।
- दोनों न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से अपीलकर्त्ता को ज़मानत देने पर सहमति व्यक्त की तथा कहा कि उसे लगातार कारावास में रखने से संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके अधिकार का उल्लंघन होगा।
- न्यायालय ने कहा कि आरोप-पत्र दाखिल किया जा चुका है तथा निकट भविष्य में वाद की प्रक्रिया पूरी होने की संभावना नहीं है, जिसे ज़मानत निर्णय में शामिल किया गया।
- न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ ने टिप्पणी की कि अधिक कठोर PMLA मामले में ज़मानत मिलने के उपरांत अब अपीलकर्त्ता को संबंधित अपराध (CBI मामले) में आगे अभिरक्षा में रखना अस्वीकार्य हो गया है।
- न्यायालय ने अपीलकर्त्ता पर ED मामले की तरह ही ज़मानत की शर्तें लगाईं, जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय जाने पर प्रतिबंध भी शामिल है।
- न्यायालय ने CBI की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली अपीलकर्त्ता की याचिका अस्वीकार कर दी तथा उसे ज़मानत दे दी।
ज़मानत देने में न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ का क्या पक्ष हैं?
- संदेहास्पद समय:
- न्यायमूर्ति ने गिरफ्तारी के समय को संदिग्ध पाया तथा कहा कि CBI ने मामला दर्ज होने के 22 महीने बाद तक अपीलकर्त्ता को गिरफ्तार नहीं किया, बल्कि ED मामले में उसे ज़मानत मिलने के तुरंत बाद उसे गिरफ्तार कर लिया।
- आवश्यकता का अभाव:
- न्यायाधीश ने गिरफ्तारी की आवश्यकता पर प्रश्न उठाया, क्योंकि CBI ने एक वर्ष पूर्व उससे पूछताछ करने के बाद भी, इतनी लंबी अवधि तक अपीलकर्त्ता को गिरफ्तार करना आवश्यक नहीं समझा।
- सत्ता का संभावित दुरुपयोग:
- यह गिरफ्तारी वैध जाँच उद्देश्यों के बजाय, प्रवर्तन निदेशालय के मामले में अपीलकर्त्ता को दी गई ज़मानत को विफल करने के लिये की गई हो सकती है।
- अस्थिर निरुद्धि:
- CBI मामले में मुख्यमंत्री की निरंतर निरुद्धि तब असहनीय हो गई जब उन्हें अधिक कठोर PMLA मामले में ज़मानत दे दी गई।
- अनुचित एवं विलंबित:
- CBI द्वारा विलंब से की गई गिरफ्तारी अनुचित थी तथा उसके बाद लगातार कारावास असहनीय था।
- प्रक्रियागत निष्पक्षता:
- यद्यपि गिरफ्तारी की वैधता पर सीधे तौर पर कोई निर्णय नहीं दिया गया, परंतु न्यायमूर्ति भुइयाँ की टिप्पणियों से प्रक्रियागत निष्पक्षता और CBI की कार्यवाही के मंतव्य पर गंभीर चिंताएँ उभर कर सामने आती हैं।
- सार्वजनिक धारणा:
- उन्होंने कार्यात्मक लोकतंत्र में सार्वजनिक धारणा के महत्त्व पर ज़ोर दिया तथा CBI से पक्षपात या अनुचित प्रभाव की पूर्वधारणाओं को दूर करने का आग्रह किया।
ज़मानत देने में न्यायमूर्ति सूर्यकांत का क्या पक्ष है?
- गिरफ्तारी की वैधता:
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी विधिक थी और इसमें कोई प्रक्रियागत अनियमितता नहीं थी।
- CrPC का अनुपालन:
- वह इस तर्क से सहमत नहीं थे कि गिरफ्तारी के दौरान CBI दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 41/41A के निर्देशों का पालन करने में विफल रही।
- ज़मानत अनुदान:
- गिरफ्तारी की वैधता को यथावत् रखने के बावजूद, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपीलकर्त्ता को ज़मानत देने पर न्यायमूर्ति भुइयाँ से सहमति व्यक्त की।
- ज़मानत के कारण:
- मामले में आरोप-पत्र दाखिल कर दिया गया है।
- वाद जल्द पूरा होने की संभावना नहीं है।
- निरंतर कारावास से भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत अपीलकर्त्ता के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
- संबंधित मामलों पर विचार:
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अपीलकर्त्ता को ED मामले में उन्हीं तथ्यों के आधार पर अंतरिम ज़मानत दी गई थी।
- सह-अभियुक्त का उदाहरण:
- उन्होंने कहा कि CBI और ED दोनों मामलों में कई सह-आरोपियों को विभिन्न न्यायालयों द्वारा ज़मानत दी जा चुकी है।
- ज़मानत की शर्तें:
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपीलकर्त्ता पर ED मामले की तरह ही शर्तें लगाने पर सहमति जताई, जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय में जाने पर प्रतिबंध भी शामिल है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री की ज़मानत के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे क्या हैं?
- आबकारी नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को ज़मानत देने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय।
- अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी के लिये CBI का औचित्य और न्यायाधीशों द्वारा इसकी जाँच।
- गिरफ्तारी प्रक्रिया में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) (आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार) का संभावित उल्लंघन।
- राज्य बनाम काठी कालू ओघड़ (1961) मामले में स्थापित आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार की व्याख्या पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता।
- जाँच एजेंसियों द्वारा आरोपी व्यक्तियों को जेल में रखने के लिये प्रक्रियात्मक विधियों का उपयोग।
- मुख्यमंत्री को ज़मानत के लिये अधीनस्थ न्यायालय में वापस भेजने के CBI के तर्क को उच्चतम न्यायालय द्वारा अस्वीकार किया जाना।
- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मुख्यमंत्री को ज़मानत के लिये पुनः अधीनस्थ न्यायालयों में जाने के लिये कहने की आलोचना।
- हाई-प्रोफाइल मामलों में ज़मानत देने में अधीनस्थ न्यायालयों एवं उच्च न्यायालयों की अनिच्छा का व्यापक मुद्दा।
- उच्चतम न्यायालय के निर्णय से आपराधिक न्याय प्रणाली, विशेषकर न्यायपालिका के भीतर प्रणालीगत समस्याओं का पता चलता है।
- उच्चतम न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि न्यायालय आपराधिक मामलों में अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों का परित्याग कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
CM को ज़मानत देने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय सीमित राहत प्रदान करता है तथा आपराधिक न्याय प्रणाली में कमियों पर ध्यान देता है। न्यायमूर्ति भुइयाँ की आलोचना से ज्ञात होता है कि कैसे जाँच एजेंसियों का प्रयोग कभी-कभी न्याय की रक्षा करने के बजाय उसे कमज़ोर करने के लिये किया जाता है। यह मामला व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने और विधिक प्रक्रियाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिये निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता को स्थापित करता है।