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आपराधिक कानून

बलात्कार कानून के दुरुपयोग पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियाँ

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 05-Dec-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय

भारतीय कानूनी व्यवस्था यौन सहमति और विवाह के झूठे वचनों से संबंधित जटिल मुद्दे से जूझ रही है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय के निर्णयों ने महिलाओं को यौन शोषण से बचाने और बलात्कार कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के बीच नाज़ुक संतुलन को उजागर किया है। न्यायालय सावधानीपूर्वक जाँच कर रहे हैं कि "झूठा वचन" क्या होता है और कब विवाह के वचन का उल्लंघन दांडिक अपराध माना जा सकता है।

 उच्चतम न्यायालय द्वारा उठाया गया मुख्य मुद्दा क्या है?

  • उच्चतम न्यायालय ने लंबे समय तक सहमति से बनाए गए संबंधों के टूटने के बाद बलात्कार के आरोप लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई है, विशेष रूप से तब जब विवाह का वचन पूरा नहीं किया जाता है।
  • कानूनी प्रणाली "विवाह करने का झूठा वचन" और "विवाह करने का वचन तोड़ने" के बीच अंतर करती है, जिसमें यौन सहमति और संभावित आपराधिक दायित्व का निर्धारण करने के लिये महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं।
  • किसी वचन को "झूठा" माने जाने और उसे बलात्कार माने जाने के लिये दो प्रमुख शर्तें पूरी होनी चाहिये:
    • वचन बुरे आशय से किया गया होगा और उसे पूरा करने का कोई प्रारंभिक आशय नहीं था, और
    • यह वचन सीधे तौर पर महिला के यौन संबंध बनाने के निर्णय से जुड़ा होना चाहिये।
  • सहमति को अमान्य किया जा सकता है यदि यह जानबूझकर तथ्यों की गलत धारणा के माध्यम से प्राप्त की गई हो, विशेष रूप से तब जब वचन करते समय व्यक्ति का विवाह करने का कोई आशय न रहा हो।
  • केवल विवाह करने का वचन तोड़ देना या विवाह में बाधा उत्पन्न करने वाली अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करना स्वतः ही बलात्कार का आपराधिक अपराध नहीं बन जाता।
  • न्यायालय इस बात पर ज़ोर देते हैं कि दीर्घकालिक सहमति से बने संबंधों में यह नहीं माना जा सकता कि यौन संबंध केवल विवाह के वचन पर आधारित थे, तथा ऐसे संबंध को बनाए रखने के पीछे कई उद्देश्य हो सकते हैं।
  • भारतीय न्याय संहिता ने धोखे से यौन संबंध बनाने के संबंध में एक नया प्रावधान प्रस्तुत किया है, जिसमें विवाह का झूठा वचन भी शामिल है, जिसके लिये दस वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।
  • न्यायपालिका विवाह संबंधी वचनों के पीछे के आशयों और परिस्थितियों की सावधानीपूर्वक जाँच करके महिलाओं को यौन शोषण से बचाने और बलात्कार संबंधी कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती है।
  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय के निर्णयों में लगातार यह माना गया है कि सहमति से बनाए गए संबंधों के टूटने मात्र को स्वतः ही आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके लिये शुरू से ही जानबूझकर किये गए धोखे का सबूत देना आवश्यक है।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सहमति एक "सक्रिय और तर्कसंगत विचार-विमर्श" होनी चाहिये, न कि एक निष्क्रिय या मजबूर सहमति। इसका अर्थ है कि महिला को यौन क्रिया के लिये सचेत और सोच-समझकर सहमत होना चाहिये, इसके निहितार्थों को समझना चाहिये।
  • न्यायालय ने "झूठे वचन" और "अधूरे वचन" के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर रेखांकित किया:
    • झूठे वचन में शुरू से ही जानबूझकर धोखा देना शामिल है, जिसमें विवाह करने का कोई वास्तविक आशय नहीं होता।
    • अधूरा वचन महज़ एक वचन होता है जिसे वास्तविक परिस्थितियों के कारण पूरा नहीं किया जा सका।
  • स्थापित मुख्य कानूनी सिद्धांत यह है कि सहमति तब अमान्य हो सकती है जब:
    • विवाह का वचन धोखा देने के स्पष्ट आशय से किया गया था।
    • महिला का यौन संबंध बनाने का निर्णय मूल रूप से इसी गलत धारणा पर आधारित था।
    • वचन करने वाले का कभी भी यह आशय नहीं था कि वह दिये गए वचन को उस समय पूरा करे।

उच्चतम न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ क्या हैं?

  • प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) के मामले में न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "सहमति" में एक सक्रिय और तर्कसंगत विचार-विमर्श शामिल होना चाहिये, जिससे विवाह के वचन को झूठा मानने के लिये दो महत्त्वपूर्ण शर्तें स्थापित होती हैं: वचन बुरे विश्वास में किया जाना चाहिये और यौन संबंध बनाने के लिये महिला के निर्णय को सीधे प्रभावित करना चाहिये।
  • नियाम अहमद बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) (2023) में न्यायालय ने कहा कि विवाह के वचन का हर उल्लंघन झूठा वचन नहीं होता है, यह स्वीकार करते हुए कि अप्रत्याशित परिस्थितियाँ या जटिलताएँ आपराधिक आशय के बिना विवाह को पूरा होने से रोक सकती हैं।
  • महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) मामले में उच्चतम न्यायालय ने सहमति से बने खराब होते संबंधों को अपराध घोषित करने की "चिंताजनक प्रवृत्ति" पर प्रकाश डाला, तथा संबंधों के टूटने को स्वचालित रूप से बलात्कार के मामले में परिवर्तित होने के प्रति आगाह किया।
    • न्यायालय ने लगातार यह कहा कि झूठे वचन को साबित करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य होना चाहिये जो यह दर्शाए कि आरंभिक स्तर पर अभियुक्त का महिला से विवाह करने का कोई वास्तविक आशय नहीं था।
  • प्रशांत बनाम दिल्ली राज्य (2024) जैसे मामलों में न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि महज़ संबंध विच्छेद को आपराधिक कार्यवाही में नहीं बदला जा सकता है, तथा इस बात पर बल दिया कि सहमति से बनाए गए प्रारंभिक संबंधों को पूर्वव्यापी रूप से आपराधिक नहीं बनाया जा सकता है।

BNS, 2023 की धारा 69 क्या है?

  • कानूनी दायरा:
    • यह धारा धोखे से प्राप्त यौन संबंध को अपराध मानती है, विशेष रूप से तब जब कोई पुरुष किसी महिला से विवाह करने का वचन करता है, लेकिन उस वचन को पूरा करने का कोई वास्तविक आशय नहीं रखता, जिससे बलात्कार से अलग एक अलग कानूनी श्रेणी बनती है।
  • सज़ा:
    • कानून में यौन सहमति प्राप्त करने के लिये इस तरह के कपटपूर्ण तरीके अपनाने का दोषी पाए जाने पर दस वर्ष तक के कारावास की कठोर सज़ा और अनिवार्य जुर्माना का प्रावधान है।
  • "धोखेबाज़ साधनों" की व्यापक परिभाषा:
    • स्पष्टीकरण में स्पष्ट रूप से परिभाषा का विस्तार करते हुए कई धोखाधड़ी प्रथाओं को शामिल किया गया है, जैसे:
      • नौकरी के झूठे वचन।
      • नौकरी में पदोन्नति के झूठे वचन।
      • जानबूझकर अपनी असली पहचान छिपाकर विवाह करना।
  • आशय और सहमति:
    • यह प्रावधान धोखाधड़ीपूर्ण प्रस्तुतीकरण के माध्यम से यौन सहमति प्राप्त करने और धोखा देने के जानबूझकर आशय पर ध्यान केंद्रित करता है, तथा यह स्वीकार करता है कि इस तरह की कार्रवाइयाँ व्यक्तिगत स्वायत्तता और विश्वास का गंभीर उल्लंघन हैं।
  • विशिष्ट विशेषता:
    • बलात्कार के आरोपों के विपरीत, यह प्रावधान व्यवस्थित धोखे के माध्यम से प्राप्त यौन संबंधों से निपटने के लिये एक अलग कानूनी तंत्र बनाता है, तथा व्यक्तिगत सहमति और गरिमा की रक्षा के लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदान करता है।

निष्कर्ष:  

उच्चतम न्यायालय ने सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध मानने की चिंताजनक प्रवृत्ति के प्रति आगाह किया है, जो दुखद रूप से समाप्त होते हैं। महिलाओं को यौन छल से बचाना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन न्यायपालिका इस बात पर ज़ोर देती है कि विवाह का हर अधूरा वचन बलात्कार नहीं माना जाता। नई भारतीय न्याय संहिता में छलपूर्ण तरीकों से यौन संबंधों को संबोधित करने के लिये एक सूक्ष्म प्रावधान पेश किया गया है, जो ऐसे संवेदनशील कानूनी मामलों के प्रति अधिक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।