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सांविधानिक विधि
संपत्ति ध्वस्तीकरण पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय
«14-Nov-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
उच्चतम न्यायालय ने "बुलडोज़र न्याय" के विरुद्ध एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसमें यह स्थापित किया गया है कि संपत्तियों को केवल इसलिये ध्वस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके रहने वाले व्यक्ति अपराध के आरोपी या दोषी हैं। 13 नवंबर, 2024 को, न्यायालय ने कहा कि इस तरह के विध्वंस कानून के शासन एवं शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि केवल न्यायपालिका ही दोष निर्धारित कर सकती है। कानूनी विध्वंस के लिये व्यापक दिशा-निर्देश निर्धारित करते हुए, न्यायालय ने अधिकारियों के लिये उचित नोटिस अवधि, उचित प्रक्रिया आवश्यकताओं व जवाबदेही उपायों को अनिवार्य किया। यह निर्णय कई मामलों के बाद आया, जहाँ सांप्रदायिक तनाव के बाद घरों को ध्वस्त कर दिया गया था, खासकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में।
इस मुद्दे की पृष्ठभूमि क्या है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत संपत्ति ध्वस्तीकरण (विध्वंस) के विरुद्ध सुरक्षा की मांग करते हुए रिट याचिकाएँ दायर की गईं।
- राज्य प्राधिकारियों द्वारा आपराधिक मामलों में आरोपित नागरिकों की आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों को उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना नष्ट करने की मुख्य शिकायत की गई है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने आरोपित व्यक्तियों की संपत्तियों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई को रोकने के लिये निर्देश देने की अपील की है और अवैध विध्वंस में संलग्न अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है।
- उच्चतम न्यायालय इस मामले पर सितंबर-अक्तूबर 2024 के बीच कई बार सुनवाई कर चुका है।
- 17 सितंबर, 2024 को न्यायालय ने आदेश दिया कि उसकी अनुमति के बिना भारत में कहीं भी कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जा सकती।
- इस आदेश में सार्वजनिक स्थलों (जैसे सड़क, फुटपाथ, रेलवे ट्रैक, जल निकाय) पर बिना अनुमति के किये गए निर्माण और पहले से मौजूद अदालती ध्वस्तीकरण आदेश से संबंधित मामलों को शामिल नहीं किया गया है।
- उत्तर प्रदेश राज्य ने आरोपों का खंडन करते हुए एक शपथ-पत्र के माध्यम द्वारा कहा कि ध्वस्तीकरण केवल कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करके ही किया जा सकता है।
- मुख्य मुद्दा यह है कि क्या उन व्यक्तियों की संपत्ति, जिन पर कुछ अपराध करने का आरोप है या जो किसी आपराधिक अपराध के लिये दोषी ठहराए गए हैं, को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना ध्वस्त किया जा सकता है या नहीं?
- न्यायालय ने चिंताओं के लिये "अखिल भारतीय दिशा-निर्देश" स्थापित करने का प्रस्ताव रखा तथा सभी पक्षों से सुझाव मांगे।
ध्वस्तीकरण पर उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश क्या हैं?
सांविधानिक सिद्धांत
- कार्यपालिका न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं कर सकती और किसी को दोषी घोषित नहीं कर सकती।
- आरोपों के आधार पर संपत्ति को ध्वस्त करना कानून के मूल नियम का उल्लंघन है।
- इस तरह की कार्रवाइयों को "बुलडोज़र न्याय" माना जाता है और यह सत्ता का दुरुपयोग दर्शाता है।
- न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि इससे "कानून के अभाव की स्थिति" उत्पन्न होती है।
- उचित प्रक्रिया का पालन न करने वाली गतिविधियाँ उस स्थिति को दर्शाती हैं जहाँ "शक्ति ही अधिकार है" का सिद्धांत लागू होता है।
सूचना की आवश्यकता
- सेवा की तिथि (Date of Service) से 15 दिन की अनिवार्य नोटिस (सूचना) अवधि।
- नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम द्वारा दिया जाना चाहिये।
- भौतिक प्रतिलिपि को संरचना के बाहरी हिस्से पर लगाया जाना चाहिये।
- टाइमर नोटिस प्राप्ति से शुरू होता है
- नोटिस को कलेक्टर/ज़िला मजिस्ट्रेट के पास डिजिटल रूप से दर्ज किया जाना चाहिये।
- नोटिस लॉगिंग के लिये स्वचालित रूप से उत्पन्न ईमेल पुष्टिकरण आवश्यक है।
नियत प्रक्रिया आवश्यकताएँ
- नोटिस में अनधिकृत निर्माण के स्वरूप का उल्लेख होना।
- विशिष्ट उल्लंघनों और ध्वस्तीकरण के आधारों का विवरण देना।
- व्यक्तिगत सुनवाई के लिये तिथि अवश्य सूचित करना।
- सुनवाई के लिये नामित प्राधिकारी की पहचान करना।
- अंतिम आदेश में निम्नलिखित शामिल होना चाहिये:
- नोटिस की दलीलें या प्रतिवाद
- प्राधिकार के निष्कर्ष
- विस्तृत तार्किकता
- इस बात का मूल्यांकन करना कि क्या निर्माण शमनीय है
- यदि संपूर्ण ध्वस्तीकरण आवश्यक समझा जाए, तो इसका औचित्य क्या होगा?
डिजिटल पारदर्शिता सिस्टम
- नगर निगम अधिकारियों को डिजिटल पोर्टल स्थापित करने के लिये 3 महीने की समयसीमा दी गई।
- पोर्टल को निम्नलिखित को ट्रैक करना होगा:
- नोटिस (सूचना) की तामील
- दस्तावेज़ चिपकाने का नोटिस
- प्राप्त हुए उत्तर
- नोटिस का कारण
- पारित किये गये आदेश
- ज़िला मजिस्ट्रेट को यह करना होगा:
- नोडल अधिकारी नियुक्त करना।
- विशिष्ट ईमेल पता निर्दिष्ट करना।
- भवन विनियमन अधिकारियों को एक महीने के अंदर विवरण भेजना।
न्यायिक निरीक्षण सुरक्षा
- ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देने के लिये न्यूनतम 15 दिन की अवधि।
- यह तब भी लागू होता है जब स्थानीय कानून में अपील की समयसीमा निर्दिष्ट न की गई हो।
- आदेश को डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
- यदि निम्नलिखित स्थितियाँ हों तो ध्वस्तीकरण का कार्य आगे नहीं बढ़ाया जा सकता:
- अपील की अवधि समाप्त नहीं हुई है।
- अपीलीय प्राधिकारी द्वारा आदेश पर रोक लगा दी गई है।
- स्वामी (मालिक) सक्रिय रूप से अवैध निर्माण को हटा रहा है।
चयनात्मक प्रवर्तन सुरक्षा उपाय
- दंडात्मक आशय का अनुमान यदि:
- एकल संरचना को अचानक चुना गया।
- आस-पास इसी तरह के उल्लंघनों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
- न्यायालय ने इसे संभावित "सामूहिक सज़ा" के रूप में मान्यता दी है।
- सतत् प्रवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया।
- विशिष्ट व्यक्तियों/समूहों को लक्षित करने से सुरक्षा प्रदान करता है।
आधिकारिक जवाबदेही उपाय
- अधिकारियों को निम्नलिखित का सामना करना पड़ सकता है:
- न्यायालय की कार्यवाही की अवमानना।
- पुनर्स्थापन लागत के लिये व्यक्तिगत दायित्व।
- नुकसानी या नष्टपरिहार देने की आवश्यकता।
- यथा लागू अतिरिक्त अभियोजन।
- यदि ध्वस्तीकरण के दौरान दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ हो तो व्यक्तिगत लागत पर पुनर्निर्माण की ज़िम्मेदारी।
दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताएँ
- ध्वस्तीकरण से पूर्व:
- विस्तृत निरीक्षण रिपोर्ट आवश्यक
- संपूर्ण वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य
- भाग लेने वाले सभी कर्मियों (पुलिस और सिविल) की सूची
- रिपोर्ट इस प्रकार होनी चाहिये:
- नगर आयुक्त को भेजा गया
- डिजिटल पोर्टल पर पोस्ट किया गया
- आधिकारिक रिकार्ड के रूप में सुरक्षित रखा गया।
मानवीय विचार
- संवेदनशील निवासियों पर विशेष ध्यान:
- महिलाएँ
- बच्चे
- बुज़ुर्ग व्यक्ति
- निम्नलिखित के लिये पर्याप्त समय दिया जाना चाहिये:
- सामान इकट्ठा करना
- वैकल्पिक व्यवस्था करना
- व्यवस्थित निकासी
- न्यायालय रातों-रात बेदखली से बचने पर ज़ोर देता है।
- सिद्धांत है कि यदि उचित समय दिया जाए तो "आसमान नहीं टूट पड़ेगा "।
दिशा-निर्देशों के अपवाद
- ये नियम निम्नलिखित पर लागू नहीं होंगे:
- सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत संरचनाएँ:
- सड़कें
- गलियाँ
- फुटपाथ
- रेलवे लाइन क्षेत्र
- नदी निकाय
- जल निकाय
- ऐसे मामले जहाँ ध्वस्तीकरण के लिये मौजूदा अदालती आदेश मौजूद है।
कार्यान्वयन आवश्यकताएँ
- सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्णय की प्रति मिलनी चाहिये।
- मुख्य सचिवों को सूचित किया जाना चाहिये।
- सभी उच्च न्यायालयों को प्रतियाँ मिलनी चाहिये।
- राज्य सरकारों को परिपत्र जारी करना चाहिये।
- स्थानीय अधिकारियों को दिशा-निर्देशों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
क्या विभिन्न भारतीय राज्यों में कथित अतिक्रमण तथा अपराधों के मामलों में नगर निगम और वन अधिकारियों द्वारा चलाए गए ध्वस्तीकरण अभियान कानूनी रूप से उचित हैं?
राजस्थान:
- हालिया मामला:
- स्थान: उदयपुर नगर निगम
- घटना: वन भूमि पर अतिक्रमण का दावा करते हुए किराएदार का घर गिरा दिया गया।
- उत्प्रेरक (ट्रिगर): किराएदार के 16 वर्षीय बेटे ने कथित तौर पर दूसरे समुदाय के सहपाठी को चाकू मार दिया।
- नोटिस: नगर निगम और वन अधिकारी द्वारा एक रात पहले ही जारी किया गया।
- विधिक सरंचना:
- राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 245 के अंतर्गत:
- अतिक्रमण के लिये सज़ा: 3 वर्ष तक की जेल और 50,000 रुपए का ज़ुर्माना।
- नागरिक निकाय संपत्ति ज़ब्त कर सकता है।
- ज़ब्ती के आधार के साथ लिखित नोटिस दिया जाना चाहिये।
- अपराधी को लिखित प्रतिनिधित्व करने के लिये उचित समय मिलना चाहिये।
- सुनवाई का अवसर अवश्य दिया जाना चाहिये।
- राजस्थान वन अधिनियम, 1953 की धारा 91 के अंतर्गत:
- केवल एक तहसीलदार ही "अतिक्रमणकारी" को बेदखल करने का आदेश दे सकता है।
- केवल एक तहसीलदार ही अवैध रूप से कब्ज़ा की गई भूमि को ज़ब्त करने का आदेश दे सकता है।
- राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 245 के अंतर्गत:
मध्य प्रदेश:
- हालिया मामला:
- घटना: मज़दूर का पुश्तैनी मकान ध्वस्त।
- उत्प्रेरक (ट्रिगर): बेटे पर मंदिर परिसर में गाय के सिर रखने का आरोप लगाया गया है।
- समयरेखा: FIR दर्ज और उसी दिन ध्वस्तीकरण (14 जून)।
- मुद्दा: ध्वस्तीकरण से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया।
- विधिक सरंचना:
- मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 की धारा 187 के अंतर्गत:
- नगर परिषद बिना अनुमति के निर्मित भवनों को हटा/बदल/गिरा सकती है।
- सबसे पहले मालिक को नोटिस दिया जाना चाहिये।
- मालिक को पर्याप्त कारण बताने का मौका मिलना चाहिये।
- ध्वस्तीकरण केवल तभी किया जाएगा जब मालिक पर्याप्त कारण बताने में विफल हो।
- मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 की धारा 187 के अंतर्गत:
उत्तर प्रदेश:
- हालिया मामला:
- संदर्भ: नूपुर शर्मा की टिप्पणी के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के बाद ध्वस्तीकरण।
- आक्षेप: जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।
- विधिक सरंचना:
- उत्तर प्रदेश नगरीय नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 (धारा 27) के अंतर्गत:
- बिना अनुमति के विकसित की गई भूमि के ध्वस्तीकरण का आदेश।
- आदेश की तिथि से 15-40 दिन की नोटिस अवधि।
- मालिक विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के समक्ष अपील कर सकता है।
- अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है और उस पर न्यायालय में सवाल नहीं उठाया जा सकता।
- उत्तर प्रदेश नगरीय नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 (धारा 27) के अंतर्गत:
दिल्ली:
- हालिया मामला:
- स्थान: जहाँगीर पुरी
- उत्प्रेरक (ट्रिगर): हनुमान जयंती जुलूस के बाद सांप्रदायिक हिंसा (अप्रैल 2022)।
- कार्रवाई: "अवैध अतिक्रमण" के लिये NDMC का ध्वस्तीकरण अभियान।
- मध्यक्षेप: जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका के बाद उच्चतम न्यायालय ने ध्वस्तीकरण पर रोक लगा दी।
- विधिक सरंचना:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अंतर्गत:
- धारा 321 एवं 322:
- आयुक्त बिना किसी नोटिस के अनाधिकृत वस्तुओं को हटा सकते हैं।
- यह स्टालों, कुर्सियों, बेंचों, बक्सों, वाहनों आदि पर लागू होता है।
- धारा 343:
- बिना अनुमति के बनाए गए भवनों को ध्वस्त किया जा सकता है।
- 5-15 दिन का ध्वस्तीकरण अवधि।
- कारण बताने के लिये "उचित अवसर" दिया जाना चाहिये।
- अपील अधिकरण के समक्ष अपील की अनुमति है।
- धारा 321 एवं 322:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अंतर्गत:
निष्कर्ष
उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार, अब अधिकारियों को किसी भी ध्वस्तीकरण से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होगा तथा लोगों को इन आदेशों के विरुद्ध अपील करने का अवसर प्रदान करना होगा। यदि अधिकारी इन नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है और उन्हें संपत्तियों के पुनर्निर्माण के लिए स्वयं भुगतान करना पड़ सकता है। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य लोगों के आवास के मूल अधिकार की सुरक्षा करना एवं कानून के तहत उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करना है। इस निर्णय का लक्ष्य संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी आवश्यक ध्वस्तीकरण पारदर्शी, मानवीय और कानूनी रूप से उचित प्रक्रिया का पालन करे।