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अंतर्राष्ट्रीय नियम

तहव्वुर राणा प्रत्यर्पण मामला

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 11-Mar-2025

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय  

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने तहव्वुर हुसैन राणा के भारत प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया है। 64 वर्षीय पूर्व पाकिस्तानी सैन्य डॉक्टर और कनाडाई नागरिक तहव्वुर हुसैन राणा पर 2008 के मुंबई हमलों से संबंधित गंभीर आतंकवाद के आरोप हैं, जिसमें 166 लोग मारे गए थे और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिका को खारिज करना कई अमेरिकी कोर्ट में वर्षों से चल रही विधिक कार्यवाही का परिणाम है।

आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों में तहव्वुर हुसैन राणा की भूमिका क्या थी तथा उसके विधिक परिणाम क्या थे?

  • तहव्वुर हुसैन राणा ने शिकागो में फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज की स्थापना की, जिसकी एक शाखा मुंबई में थी। अमेरिकी अधिकारियों ने 2005-2009 के बीच लश्कर-ए-तैयबा को आर्थिक सहायता प्रदान करने और डेनमार्क के एक समाचार पत्र पर योजनाबद्ध हमले का समर्थन करने के लिये 2011 में उसे दोषी माना। 
  • उसे मुंबई हमलों का सीधे समर्थन करने के आरोप से दोषमुक्त कर दिया गया। 
  • तहव्वुर हुसैन राणा के सह-साजिशकर्त्ता और हमलों में एक प्रमुख व्यक्ति डेविड हेडली ने गवाही दी कि राणा ने उसे 2006 में वित्तीय सहायता के साथ भारत के लिये व्यावसायिक वीज़ा प्रदान किया था। 
  • हेडली ने दावा किया कि तहव्वुर हुसैन राणा के मुंबई कार्यालय ने आतंकवादी संगठन के लिये लक्ष्यों की पहचान करने में सहायता की। 

  • हेडली की गवाही इस विषय में असंगत रही है कि राणा को हमले की योजना के विषय में कब पता चला। 
  • अमेरिकी अधिकारियों ने राणा को 5 वर्ष की निगरानी रिहाई के साथ 14 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई। 
  • COVID-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण उन्हें 2020 में जल्दी रिहाई मिली।

तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण मामले को किन विधिक तर्कों और न्यायालयी निर्णयों ने आकार दिया?

  • भारत ने दिसंबर 2019 में अपना औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध प्रस्तुत किया, उसके बाद जून 2020 में राणा की अनंतिम गिरफ्तारी का अनुरोध किया। 
  • बिडेन प्रशासन ने 1997 के यू.एस.-भारत प्रत्यर्पण संधि के तहत इस अनुरोध का समर्थन किया। 
  • तहव्वुर हुसैन राणा का प्राथमिक विधिक बचाव संधि के अनुच्छेद 6 पर केंद्रित था, जो किसी व्यक्ति को "अनुरोधित राज्य में उस अपराध के लिये दोषी माना गया है या दोषमुक्त किया गया है 
  • जिसके लिये प्रत्यर्पण की आवश्यकता है" पर प्रत्यर्पण को रोकता है। उन्होंने तर्क दिया कि मुंबई हमले के आरोपों में उनके यू.एस. दोषमुक्त होने से प्रत्यर्पण को रोकना चाहिये। 
  • अमेरिकी कोर्ट ने लगातार इस तर्क को खारिज कर दिया। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने मई 2023 में निर्णय दिया कि भारतीय आरोपों में यू.एस. में तय किये गए आरोपों से अलग तत्त्व शामिल हैं। अपील कोर्ट (अगस्त 2024) और उच्चतम न्यायालय (जनवरी 2025) ने इस निर्णय को यथावत बनाए रखा। न्यायमूर्ति एलेना कगन ने 6 मार्च 2025 को राणा की स्थगन याचिका खारिज कर दी। 
  • तहव्वुर हुसैन राणा ने मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स के समक्ष अंतिम स्थगन आवेदन दायर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि भारत में संभावित यातना, यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का उल्लंघन होगा। 

भारत में तहव्वुर हुसैन राणा के विरुद्ध आरोप और विधिक कार्यवाही क्या हैं?

  • भारत की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने 2011 में राणा के विरुद्ध आरोप दायर किये। इन आरोपों में शामिल हैं:
    • हत्या और भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का षड्यंत्र (भारतीय दण्ड संहिता, 1860)। 
    • आतंकवादी कृत्य करने का षड्यंत्र (विधिविरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम, 1967)
  • वर्ष 2014 में आरोपियों को फरार घोषित किये जाने के बाद से भारतीय विधिक कार्यवाही स्थगित है। भारतीय विधि में पारंपरिक रूप से अनुपस्थिति में मुकदमे चलाने पर रोक है, हालाँकि हाल के विधिक सुधारों ने इस प्रतिबंध को संशोधित किया है। 
  • तहव्वुर हुसैन राणा के आने पर, NIA विशेष न्यायालय त्वरित मुकदमे की कार्यवाही शुरू कर सकती है। आरोपों में आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड की संभावित सजा हो सकती है। किसी भी निर्णय के विरुद्ध भारत की उच्च न्यायालयों में अपील की जा सकती है।

भारत और अमेरिका प्रत्यर्पण संधि

  • भारत और अमेरिका प्रत्यर्पण संधि पर 25 जून 1997 को भारत के विदेश राज्य मंत्री श्री सलीम शेरवानी और संयुक्त राज्य अमेरिका के उप-विदेश मंत्री श्री स्ट्रोब टैलबोट द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे, जबकि माननीय मंत्री शेरवानी को भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव श्री तरनजीत संधू द्वारा सहायता प्रदान की गई थी।

प्रत्यर्पण के संबंध में विधिक प्रावधान क्या हैं?

प्रत्यर्पण 

  • प्रत्यर्पण को उच्चतम न्यायालय द्वारा एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य को उन व्यक्तियों को सौंपने के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनके साथ ऐसे अपराधों के लिये व्यवहार करना वांछित है, जिनके लिये उन पर आरोप लगाया गया है या उन्हें दोषी माना गया है तथा जो दूसरे राज्य के न्यायालयों में न्यायोचित हैं। 
  • भारत में प्रत्यर्पण से संबंधित विधि प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 तथा भारत और अन्य देशों के बीच प्राप्त प्रत्यर्पण संधियों द्वारा शासित है। 
  • प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 भारत में प्रत्यर्पित किये जाने वाले व्यक्तियों तथा भारत से विदेशी देशों में प्रत्यर्पित किये जाने वाले व्यक्तियों, दोनों पर लागू होता है। 
  • इस अधिनियम की धारा 34 के अनुसार भारत के पास अतिरिक्त अधिकारिता है, अर्थात किसी विदेशी राज्य में किसी व्यक्ति द्वारा किया गया प्रत्यर्पण अपराध भारत में किया गया माना जाएगा तथा ऐसे व्यक्ति पर ऐसे अपराध के लिये भारत में मुकदमा चलाया जा सकता है। 
  • इस अधिनियम की धारा 2(c) के अनुसार प्रत्यर्पण अपराध का अर्थ है -
    • किसी विदेशी राज्य के संबंध में, जो एक संधि राज्य है, उस राज्य के साथ प्रत्यर्पण संधि में प्रावधानित अपराध।
    • संधि राज्य के अतिरिक्त किसी विदेशी राज्य के संबंध में भारत या किसी विदेशी राज्य के विधि के अनुसार एक वर्ष से कम अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध और इसमें संयुक्त अपराध शामिल है।
  • इस अधिनियम की धारा 2(d) प्रत्यर्पण संधि को भारत द्वारा किसी विदेशी राज्य के साथ की गई संधि, करार या व्यवस्था के रूप में परिभाषित करती है, जो भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित है और जो भारत पर लागू होती है और बाध्यकारी होती है।
  • प्रत्यर्पण संधियाँ पारंपरिक रूप से द्विपक्षीय प्रकृति की होती हैं।
  • जाँच के अधीन, विचाराधीन और दोषी ठहराए गए अपराधियों के मामले में प्रत्यर्पण संधियाँ शुरू की जा सकती हैं।

प्रत्यर्पण को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत

  • दोहरे अपराध का सिद्धांत:
    • यह सिद्धांत, जिसे दोहरी आपराधिकता के रूप में भी जाना जाता है, कहता है कि प्रत्यर्पण केवल तभी उपलब्ध है जब संबंधित कार्य दोनों राज्यों (अनुरोध करने वाले राज्य और अनुरोधित राज्य) के अधिकार क्षेत्र में अपराध हो।
  • विशेषता अर्थात विशिष्टता का सिद्धांत:
    • अनुरोधकर्ता राज्य यह वचन देता है कि वह अनुरोधित व्यक्ति पर केवल उस अपराध के लिए ही न्याय करेगा जिसके लिये प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया था, किसी अन्य अपराध के लिये नहीं।
  • राजनीतिक अपवाद:
    • यदि प्रत्यर्पण का वास्तविक उद्देश्य अनुरोधित व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के बजाय उसकी राजनीतिक राय के लिये दण्डित करना है, तो प्रत्यर्पण को अस्वीकार कर दिया जाना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय विधि में राजनीतिक अपराध शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।