होम / एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय कानून

न्यायपालिका में AI का युक्तियुक्त उपयोग

    «
 17-Mar-2025

स्रोत: द हिंदू 

परिचय

मई 2025 में भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने हाल ही में न्यायिक प्रणालियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के एकीकरण के विषय में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ व्यक्त की हैं। नैरोबी में "न्यायपालिका के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग" विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यद्यपि प्रौद्योगिकी से अनेक लाभ होते हैं, लेकिन इसके क्रियान्वयन को इसकी सीमाओं पर सावधानीपूर्वक विचार करते हुए किया जाना चाहिये। उनकी यह टिप्पणी ऐसे महत्त्वपूर्ण समय पर आई है, जब दुनिया भर के न्यायालय AI प्रौद्योगिकियों की तीव्र प्रगति और विधिक कार्यवाही में उनके संभावित अनुप्रयोगों से जूझ रही हैं।

क्या मशीनें वास्तव में न्याय कर सकती हैं?

  • AI सिस्टम में सहानुभूति और भावनात्मक बुद्धिमत्ता जैसे मूलभूत मानवीय गुणों का अभाव है जो विधिक विवादों के मानवीय आयामों को समझने के लिये आवश्यक हैं। 
  • न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट रूप से कहा कि "न्याय के सार में अक्सर नैतिक विचार, सहानुभूति और प्रासंगिक विवेक शामिल होती है - ऐसे तत्त्व जो एल्गोरिदम की पहुँच से परे रहते हैं।" 
  • जटिल विधिक मामलों में अक्सर नैतिक तर्क एवं मूल्य आधारित निर्णयों की आवश्यकता होती है जिन्हें कम्प्यूटेशनल प्रक्रियाओं या गणितीय सूत्रों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। 
  • मानव न्यायाधीश अपने निर्णयों में जीवन के अनुभव, सांस्कृतिक समझ और सामाजिक संदर्भ  लाते हैं जिन्हें AI अपनी प्रोग्रामिंग परिष्कार के बावजूद दोहरा नहीं सकता है। 
  • पूर्व विधिक निर्णय का निर्वचन विकसित सामाजिक मानकों और समकालीन मूल्यों के माध्यम से की जाती है, जिसके लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसे वर्तमान AI तकनीकें प्राप्त नहीं कर सकती हैं। 
  • न्यायिक निर्णय लेने में मानवीय तत्त्व जवाबदेही सुनिश्चित करता है तथा विधिक परिणामों को उस समाज से जोड़ता है जिसकी वे सेवा करते हैं, जिस तरह से एल्गोरिदमिक निर्णय नहीं कर सकते।

AI विधिक अनुसंधान उपकरण क्या जोखिम उत्पन्न करते हैं?

  • न्यायमूर्ति गवई ने प्रलेखित मामलों पर प्रकाश डाला, जहाँ ChatGPT जैसे AI प्लेटफ़ॉर्म ने पूरी तरह से मनगढ़ंत केस उद्धरण और अनुपलब्ध पूर्व विधिक निर्णय तैयार की हैं।
  • पूरी तरह से AI-जनरेटेड शोध पर निर्भर विधिक व्यवसायियों ने मिथ्या विधिक संदर्भों वाले न्यायालयी दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्यवसायिक शर्मिंदगी और संभावित नैतिक उल्लंघन कारित हुए हैं।
  • AI सिस्टम विधिक सूचना की विशाल मात्रा को तेज़ी से संसाधित कर सकते हैं, लेकिन मानव शोधकर्ताओं द्वारा लागू किये जाने वाले विवेक के साथ स्रोतों को सत्यापित करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता का अभाव है।
  • AI-जनरेटेड सामग्री की गति विश्वसनीयता की मिथ्या भावना उत्पन्न करती है, जिससे विधिक स्रोतों और प्राधिकरण की कम जाँच हो सकती है।
  • AI प्रशिक्षण डेटा में मौजूद एल्गोरिदम पूर्वाग्रह विधिक प्रणाली में मौजूदा पूर्वाग्रहों को बनाए रख सकते हैं या बढ़ा सकते हैं, बिना नैतिक निगरानी के जो मानव शोधकर्ता प्रदान करते हैं।
  • विधिक शोध के लिये AI पर अत्यधिक निर्भरता समय के साथ विधिक व्यवसायियों के शोध कौशल और आलोचनात्मक सोच क्षमताओं को कम करने का जोखिम उठाती है।

न्यायालयों को प्रौद्योगिकी का कैसे एकीकरण करना चाहिये?

  • न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि प्रौद्योगिकी को मुख्य निर्णय लेने वाले कार्यों में मानवीय निर्णय की जगह लेने के बजाय न्यायिक प्रक्रियाओं में सहायता के रूप में कार्य करना चाहिये।
  • भारतीय न्यायालयों ने विधिक मामलों में न्यायिक विवेक को बनाए रखते हुए प्रशासनिक दक्षता में सुधार करने के लिये डिजिटल उपकरणों को अपनाया है।
  • कार्यान्वयन रूपरेखाओं को स्पष्ट रूप से चित्रित करना चाहिये कि विधिक कार्य के किन पहलुओं को स्वचालित किया जा सकता है तथा किनमें संरक्षित मानवीय भागीदारी की आवश्यकता है।
  • न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने चाहिये कि न्यायाधीश और विधिक कर्मचारी AI उपकरणों की क्षमताओं और सीमाओं दोनों को समझें।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण को मानवीय विधिक तर्क की गुणवत्ता को कम करने के बजाय बढ़ाने के साथ-साथ प्रशासनिक बोझ को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • अत्यधिक निर्भरता को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे न्यायिक स्वतंत्रता को कम करने के बजाय सेवा करना जारी रखें, तकनीकी प्रणालियों का नियमित मूल्यांकन आवश्यक है।

डिजिटल युग में न्यायिक सामग्री को कौन नियंत्रित करता है?

  • न्यायपालिका को अब अनाधिकृत सामग्री निर्माताओं से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो न्यायालयी कार्यवाही की संपादित क्लिप अपलोड करते हैं जो विधिक चर्चाओं को सनसनीखेज या दोषपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करती हैं। 
  • ये हेरफेर किये गए वीडियो जटिल विधिक कार्यवाही के विषय में सार्वजनिक भ्रम उत्पन्न करते हैं तथा न्यायिक संस्थानों में विश्वास को कम करते हैं। 
  • न्यायिक रिकॉर्डिंग के स्वामित्व एवं नियंत्रण के विषय में बौद्धिक संपदा प्रश्न कई न्यायालयों में काफी सीमा तक अनसुलझे हैं। 
  • सोशल मीडिया चैनलों द्वारा न्यायालयी सामग्री का अनधिकृत मुद्रीकरण न्याय के व्यावसायीकरण के विषय में गंभीर नैतिक चिंताओं को जन्म देता है। 
  • न्यायमूर्ति गवई ने पारदर्शिता और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के बीच संतुलन बनाने के लिये "लाइव-स्ट्रीम की गई कार्यवाही के उपयोग पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों" की आवश्यकता बताई है। 
  • न्यायालयों को डिजिटल सामग्री के प्रबंधन के लिये व्यापक रूपरेखा विकसित करनी चाहिये जो उचित सार्वजनिक पहुँच बनाए रखते हुए न्यायिक अखंडता की रक्षा करे।

भारत के न्यायिक ढाँचे में AI की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • भारत में वर्तमान में न्यायपालिका में AI को नियंत्रित करने वाले विशिष्ट विधि का अभाव है, जिसमें MEITY रणनीतिक AI निगरानी के लिये प्रमुख एजेंसी के रूप में कार्य कर रही है। 
  • नीति आयोग ने सुरक्षा, समावेशिता, गोपनीयता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करते हुए सात जिम्मेदार AI सिद्धांत स्थापित किये हैं। 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने 2021 से एक AI उपकरण लागू किया है जो न्यायिक निर्णय-निर्माण को प्रभावित किये बिना सूचना प्रसंस्करण में न्यायाधीशों की सहायता करता है। 
  • S.U.V.A.S. (सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर) अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं के बीच विधिक दस्तावेजों के लिये अनुवाद उपकरण के रूप में कार्य करता है। 
  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने जसविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में ChatGPT का संदर्भ दिया, हालाँकि AI इनपुट का उपयोग केवल जमानत न्यायशास्त्र पर सामान्य परिप्रेक्ष्य के लिये किया गया था। 
  • भारत में डेटा सुरक्षा मुख्य रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम द्वारा शासित होती है, जिसमें डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक अधिनियमित होने की प्रतीक्षा कर रहा है। 
  • लंबित डेटा सुरक्षा कानून व्यक्तियों को निजी एवं सरकारी दोनों संस्थाओं द्वारा डेटा संग्रह, प्रसंस्करण और भंडारण के विषय में पूछताछ करने का अधिकार देगा। 
  • निजता जैसे मौलिक अधिकारों को संवैधानिक न्यायालयों के माध्यम से लागू किया जाना जारी है।
  • तकनीकी अपनाने के बावजूद, भारत एक सतर्क दृष्टिकोण बनाए रखता है जो मानवीय न्यायिक निर्णय लेने को सुरक्षित रखता है।
  • भारतीय न्यायिक कार्यवाही में ChatGPT जैसे जनरेटिव AI टूल के उपयोग के संबंध में वर्तमान में कोई औपचारिक दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं।

अन्य देश अपनी न्यायिक प्रणालियों में AI को कैसे लागू कर रहे हैं?

  • संभावित पूर्वाग्रह पर विवाद के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका आपराधिक सजा में पुनरावृत्ति जोखिम की भविष्यवाणी करने के लिये C.O.M.P.A.S. (करेक्शनल ऑफेंडर मैनेजमेंट प्रोफाइलिंग फॉर अल्टरनेटिव सेंक्शन) का उपयोग करता है।
  • मैनहट्टन के एक संघीय न्यायाधीश ने 2023 में एक अधिवक्ता पर ChatGPT द्वारा उत्पन्न काल्पनिक विधिक शोध प्रस्तुत करने के लिये $5,000 का जुर्माना लगाया, जिसमें अनुपलब्ध मामले भी शामिल हैं।
  • अमेरिका में विधि प्रवर्तन एवं न्यायालयी संसाधनों को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित करने के लिये पूर्वानुमानित पुलिसिंग एल्गोरिदम का उपयोग किया जा रहा है।
  • चीन ने कृत्रिम बुद्धि (AI) न्यायालयों का प्रयोग शुरू किया है जो छोटे-मोटे दावों, छोटे विवादों और प्रारंभिक प्रक्रियाओं का निपटान करते हैं, जिससे मानव न्यायाधीशों पर बोझ काफी कम हो जाता है।
    • चीनी AI न्यायिक अनुप्रयोगों में दस्तावेज़ समीक्षा, विधिक अनुसंधान और मिसाल के आधार पर सजा की अनुशंसा शामिल हैं।
  • एस्टोनिया, AI अपनाने में यूरोपीय संघ का नेतृत्व करता है, जो लंबी न्यायालयी प्रक्रियाओं के बिना छोटे दावों के विवादों को हल करने के लिये स्वचालित प्रणालियों का उपयोग करता है।
  • फ़िनलैंड ने प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रशासनिक मामलों में केस प्रबंधन और निर्णय लेने के लिये AI को लागू किया है।
  • यू.के. न्यायपालिका ने दिसंबर 2023 में दिशा-निर्देश जारी किये, जिसमें न्यायाधीशों को टेक्स्ट सारांश जैसे बुनियादी कार्यों के लिये ChatGPT का उपयोग करने की अनुमति दी गई, लेकिन विधिक शोध या विश्लेषण के लिये इसके उपयोग पर रोक लगाई गई।
  • पारदर्शिता, पूर्वाग्रह और सार्वजनिक विश्वास के विषय में नैतिक चिंताएँ वैश्विक स्तर पर न्यायिक प्रणालियों में AI को व्यापक रूप से अपनाने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ बनी हुई हैं।
  • कार्यान्वयन के विभिन्न स्तरों के बावजूद, अधिकांश न्यायालय ठोस विधिक निर्णय लेने के लिये मानवीय निगरानी बनाए रखते हैं।

निष्कर्ष 

न्यायमूर्ति गवई की चेतावनियाँ न्यायपालिका में AI को एकीकृत करने में संतुलन की आवश्यकता को प्रकटित करती हैं। जबकि प्रौद्योगिकी दक्षता और न्याय तक पहुँच को बढ़ाती है, यह मानवीय सहानुभूति, नैतिक तर्क एवं निर्णय की जगह नहीं ले सकती। न्यायालयों को नवाचार को अपनाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि AI न्यायपूर्ण विधिक निर्णय लेने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करे, न कि एक विकल्प के रूप में। न्यायिक अखंडता एवं सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना महत्त्वपूर्ण होगा।