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पारिवारिक कानून

वक्फ

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 13-Aug-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिये लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया। एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास अधिनियम, 2024 नामक प्रस्तावित विधान भारत में वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले वर्तमान अधिनियम में अधिकाधिक सुधार करने का प्रयास करता है। इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों पर केंद्र के नियामक अधिकार को बढ़ाना है और इस अधिनियम के एक ऐतिहासिक प्रावधान में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव भी रखा है।

वक्फ और वक्फ संपत्ति क्या है?

  • वक्फ की परिभाषा:
    • वक्फ (पूर्व में वक्फ़) अधिनियम, 1995 की धारा 3(r) वक्फ को इस प्रकार परिभाषित करती है: किसी भी व्यक्ति द्वारा उसकी किसी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ कार्य के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिये स्थायी रूप से समर्पित करना शामिल है
      (i) किसी उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ किया गया है, किंतु ऐसा वक्फ केवल उपयोगकर्त्ता के समाप्त हो जाने के कारण वक्फ नहीं रह जाएगा, चाहे ऐसी समाप्ति की अवधि कुछ भी हो;
      (ii) शामलात पट्टी, शामलात देह, जुमला मलक्कन या राजस्व अभिलेख में दर्ज किसी अन्य नाम से;
      (iii) मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ कार्य के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिये मशरत-उल-खिदमत सहित "अनुदान"; और
      (iv) वक्फ-अल-औलाद उस सीमा तक होता है जिस सीमा तक संपत्ति मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ कार्य के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिये समर्पित की जाती है, बशर्ते कि जब उत्तराधिकार का क्रम समाप्त हो जाता है, तो वक्फ की आय शिक्षा, विकास, कल्याण और मुस्लिम विधि द्वारा मान्यता प्राप्त ऐसे अन्य उद्देश्यों के लिये व्यय की जाएगी तथा "वाकिफ" का अर्थ इस प्रकार का समर्पण करने वाला कोई भी व्यक्ति है।
  • वक्फ संपत्ति:
    • वक्फ मुस्लिमों द्वारा धार्मिक, धर्मार्थ या निजी उद्देश्यों के लिये दी गई निजी संपत्ति है।
    • वक्फ संपत्ति का स्वामित्व ईश्वर के पास माना जाता है।
    • वक्फ का गठन विलेख, दस्तावेज़, मौखिक रूप से या धार्मिक/धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये दीर्घकालिक उपयोग द्वारा किया जा सकता है।
    • एक बार वक्फ घोषित हो जाने पर संपत्ति का स्वरूप स्थायी रूप से बदल जाता है, वह अंतरणीय नहीं हो सकती तथा स्थायी रूप से सुरक्षित रहती है।

भारत का ‘वक्फ’ विधान क्या है?

परिचय:

  • इस्लामी न्यायशास्त्र के अंतर्गत, वक्फ वह संपत्ति है जो अल्लाह के नाम पर धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये स्थायी रूप से समर्पित की जाती है।
  • वक्फ में सार्वजनिक लाभ के लिये स्थापित चल एवं अचल दोनों प्रकार की संपत्तियाँ शामिल हो सकती हैं, यह धर्मपरायणता का एक ऐसा कार्य है जो संस्थापक के धर्मार्थ उद्देश्यों को उनके नश्वर अस्तित्व से आगे तक विस्तारित करता है।
  • वक्फ की स्थापना औपचारिक विलेख या दस्तावेज़ के माध्यम से, या विधि के संचालन द्वारा की जा सकती है, जहाँ संपत्ति का उपयोग पर्याप्त अवधि तक धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये किया गया हो।
  • वक्फ संपत्तियों से प्राप्त राजस्व को आमतौर पर धार्मिक संस्थाओं, शैक्षिक प्रतिष्ठानों के रखरखाव या निर्धन व्यक्तियों के लाभ के लिये आवंटित किया जाता है।
  • वक्फ के रूप में नामित होने पर, संपत्ति अविभाज्य हो जाती है और इसे उत्तराधिकार, विक्रय या उपहार के माध्यम से अंतरित नहीं किया जा सकता है।
  • एक गैर-मुस्लिम व्यक्ति भी वक्फ बना सकता है, परंतु उस व्यक्ति को इस्लाम धर्म को स्वीकार करना ​​होगा और वक्फ बनाने का उद्देश्य इस्लामिक होना चाहिये।
  • भारत में वक्फ का संचालन वक्फ अधिनियम 1995 के अंतर्गत होता है।
  • वक्फ संपत्तियों की पहचान और मानचित्रण का कार्य राज्य सरकार के तत्त्वावधान में किये गए सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है।
  • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नियुक्त सर्वेक्षण आयुक्त को स्थानीय जाँच, साक्षियों की साक्षी की विवेचना एवं सार्वजनिक अभिलेखों की जाँच के माध्यम से वक्फ संपत्तियों की पहचान करने का अधिकार दिया गया है।

साइप्रेस (सरू) का सिद्धांत क्या है?

  • ब्रिटिश ट्रस्ट विधि से उद्धृत साइप्रेस का सिद्धांत, इस्लामी विधि के अंतर्गत वक्फ पर लागू होता है।
  • शब्द "साइप्रेस (सरू)" एक विधिक शब्द है, जिसका अर्थ है "जितना संभव हो सके उतना निकट", जो इस सिद्धांत के सार को समाहित करता है।
  • साइप्रेस का सिद्धांत, वक्फ को अनवरत रखने के लिये एक विधिक तंत्र प्रदान करता है, जब वक्फ का मूल उद्देश्य, असंभव तथा अव्यवहारिक हो जाता है, या पूरी तरह से पूर्ण हो चुका होता है।
  • जहाँ समय बीत जाने, परिस्थितियों में परिवर्तन, विधिक बाधाओं या निर्दिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के कारण वक्फ का विशिष्ट उद्देश्य निष्पादित नहीं किया जा सकता, वहाँ साइप्रेस के सिद्धांत को लागू किया जा सकता है।
  • इस सिद्धांत के अनुप्रयोग पर, वक्फ संपत्ति की आय या लाभ का उपयोग उन उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है जो वाकिफ (वक्फ के संस्थापक) के मूल आशयों के साथ यथासंभव संरेखित हों।
  • यह सिद्धांत किसी वक्फ के मूल उद्देश्य की पूर्ति की असंभवता के कारण उसकी विफलता को रोकता है, जिससे वक्फ की शाश्वत प्रकृति यथावत् बनी रहती है।
  • इस सिद्धांत को लागू करते समय, न्यायालयों और वक्फ बोर्डों से अपेक्षा की जाती है कि वे वर्तमान वास्तविकताओं के अनुरूप ढलते हुए, वक्फ के मूल उद्देश्यों का यथासंभव निकटता से पालन करें।
  • यह सिद्धांत वक्फ के उद्देश्य की लचीली व्याख्या की अनुमति देता है ताकि इसकी निरंतर वैधता और सामाजिक उपयोगिता सुनिश्चित हो सके।
  • इस सिद्धांत के अनुप्रयोग में, वाकिफ के मूल आशयों का सम्मान करने और समकालीन आवश्कताओं या परिवर्तित हो चुकी परिस्थितियों को संबोधित करने के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
  • वक्फ के संबंध में साइप्रेस के सिद्धांत को इस्लामी न्यायशास्त्र द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसके अनुसार ही लागू किया गया है तथा इसे विभिन्न न्यायक्षेत्रों में आधुनिक वक्फ विधि में शामिल किया गया है।
  • इस सिद्धांत का कार्यान्वयन न्यायिक विवेकाधिकार के अधीन है और इसे इस्लामी विधि के सिद्धांतों एवं लागू वक्फ विधान के विशिष्ट प्रावधानों के अनुसार ही लागू किया जाना चाहिये।
  • यह सिद्धांत वक्फ संपत्तियों के स्थायी प्रबंधन एवं प्रशासन के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे समाज के लिये उनकी निरंतर प्रासंगिकता और लाभ सुनिश्चित होता है।

वक्फ के गठन के तरीके क्या हैं?

  • एक्ट इंटर विवोस द्वारा वक्फ का गठन:
    • वक्फ का यह स्वरूप वाकिफ (संस्थापक) के जीवनकाल के दौरान स्थापित किया जाता है।
    • इसके निर्माण के तुरंत बाद इसका प्रभाव आरंभ हो जाता है।
    • वक्फ का गठन वाकिफ द्वारा जीवित रहते हुए की गई घोषणा के माध्यम से किया जाता है।
  • वसीयत द्वारा वक्फ का गठन (वसीयती वक्फ):
    • इस प्रकार का वक्फ वसीयतनामा के माध्यम से बनाया जाता है।
    • यह वाकिफ की मृत्यु के उपरांत ही प्रभावी होता है।
    • यह वक्फ, मृतक वाकिफ की कुल संपत्ति के एक-तिहाई तक सीमित है, जब तक कि विधिक उत्तराधिकारियों से सहमति प्राप्त न हो जाए।
    • संपत्ति के एक तिहाई से अधिक भाग के किसी भी निपटान को वैध होने के लिये उत्तराधिकारियों की स्पष्ट सहमति की आवश्यकता होती है।
  • असाध्य बीमारी के दौरान वक्फ का गठन (मर्ज़-उल-मौत):
    • वाकिफ की असाध्य बीमारी के दौरान बनाए गए वक्फ विशिष्ट विधिक प्रावधानों के अधीन होते हैं।
    • ऐसे वक्फ मर्ज़-उल-मौत (मृत्यु या बीमारी) के दौरान दिये गए उपहारों के समान हैं।
    • विधिक उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना उन्हें वाकिफ की संपत्ति के एक तिहाई भाग तक ही सीमित रखा गया है।
    • एक तिहाई से अधिक के निपटान के लिये उत्तराधिकारियों की स्पष्ट सहमति आवश्यक है।
  • स्मरणातीत उपयोगकर्त्ता द्वारा वक्फ का निर्माण:
    • जबकि वक्फ संपत्तियाँ आम तौर पर परिसीमा अवधि के अधीन होती हैं, स्मरणातीत उपयोगकर्त्ता द्वारा स्थापित वक्फों के लिये एक अपवाद उपलब्ध है।
    • स्मरणातीत उपयोगकर्त्ता, वक्फ प्रयोजनों के लिये दीर्घकालिक, निरंतर एवं निर्बाध उपयोग के आधार पर वक्फ की मान्यता की अनुमति देता है।
    • वक्फ गठन की इस पद्धति को परिसीमा के सामान्य नियमों के अपवाद के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • स्मरणातीत उपयोगकर्त्ता के माध्यम से वक्फ की स्थापना के लिये वक्फ प्रयोजनों हेतु ऐसे दीर्घकालिक उपयोग के स्पष्ट एवं प्रबल साक्ष्य की आवश्यकता होती है।

वक्फ के प्रकार क्या हैं?

  • सार्वजनिक वक्फ:
    • सार्वजनिक वक्फ की स्थापना आम जनता या उसके एक महत्त्वपूर्ण भाग के लाभ के लिये की जाती है।
    • सार्वजनिक वक्फ का प्राथमिक उद्देश्य धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति करना है।
    • ऐसे वक्फों का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा देना है और ये किसी विशिष्ट परिवार या व्यक्तिगत लाभार्थी तक सीमित नहीं हैं।
    • सार्वजनिक वक्फ अपने व्यापक सामाजिक प्रभाव के कारण अधिक कठोर नियामक निगरानी के अधीन हैं।
    • सार्वजनिक वक्फों का प्रबंधन एवं प्रशासन सामान्यतः राज्य वक्फ बोर्डों या इसी तरह के वैधानिक निकायों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
  • निजी वक्फ (वक्फ-अलल-औलाद):
    • एक निजी वक्फ, जिसे वक्फ-अलल-औलाद के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से वक्फ (संस्थापक) के परिवार और वंशजों के लाभ के लिये बनाया जाता है।
    • वक्फ का यह रूप इस्लामी वक्फ विधान के ढाँचे के भीतर संरचित एक पारिवारिक समझौते के रूप में कार्य करता है।
    • निजी वक्फ के लाभार्थी सामान्यतः वक्फ के परिवार के सदस्यों और वंशजों तक ही सीमित होते हैं, जैसा कि वक्फ विलेख में निर्दिष्ट किया गया है।
    • प्राथमिक रूप से संस्थापक के परिवार को लाभ पहुँचाते हुए, एक निजी वक्फ में परिवार के सभी वंशज समाप्त हो जाने के उपरांत धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये प्रावधान भी शामिल हो सकते हैं।
    • निजी वक्फों पर निरंतरता को रोकने और इस्लामी सिद्धांतों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट विधिक प्रावधान तथा सीमाएँ लागू होती हैं।
    • आधुनिक संपत्ति विधियों के साथ संभावित टकराव के कारण निजी वक्फों की वैधता एवं निरंतरता विभिन्न न्यायालयों में वैधानिक प्रतिबंधों के अधीन आ सकती है।

वक्फ बोर्ड की मुख्य विशेषताएँ और भूमिका क्या हैं?

  • वक्फ अधिनियम 1995 के तहत स्थापित वक्फ बोर्ड को अपने संबंधित राज्य क्षेत्राधिकार में वक्फ संपत्तियों की देखरेख और प्रशासन का अधिकार प्राप्त है।
  • बोर्ड को एक न्यायिक व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है तथा उसके पास न्यायालय में विधिक कार्यवाही आरंभ करने या बचाव करने की विधिक क्षमता है।
  • बोर्ड को वक्फ संपत्तियों की पुनर्प्राप्ति और संरक्षण के लिये उपाय करने का अधिकार है, जिनमें वे संपत्तियाँ भी शामिल हैं जो अंतरित कर दी गई हैं या जिन पर अतिक्रमण किया गया है।
  • अपने सदस्यों के बहुमत (दो-तिहाई) के अनुमोदन के अधीन बोर्ड, विक्रय, उपहार, बंधक, विनिमय या पट्टे सहित अंतरण के विभिन्न तरीकों के माध्यम से अचल वक्फ संपत्ति के अंतरण को स्वीकृति दे सकता है।
  • बोर्ड को अपने अधिकार क्षेत्र में वक्फ संपत्तियों के व्यापक रिकॉर्ड बनाए रखने का दायित्व सौंपा गया है, जैसा कि अधिनियम के तहत नियुक्त सर्वेक्षण आयुक्त द्वारा पहचाना और चित्रित किया गया है।
  • बोर्ड को व्यक्तिगत वक्फों के प्रशासन में मुतवल्लियों की देखरेख, अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करना और वक्फ परिसंपत्तियों का उचित प्रबंधन करने का दायित्व सौंपा गया है।
  • इस अधिनियम में 2013 के संशोधनों के अनुसार, बोर्ड के अधिकार को बढ़ाया गया है, विशेष रूप से वक्फ संपत्तियों के अंतरण पर प्रतिबंधों के संबंध में।
  • बोर्ड, राज्य सरकार और वक्फ संस्थाओं के बीच संपर्क सूत्र के रूप में कार्य करता है तथा अपने अधिकार क्षेत्र में वक्फ विधानों एवं नीतियों के कार्यान्वयन में सहायता करता है।
  • बोर्ड को देश भर में वक्फ संपत्तियों के एकसमान प्रशासन को सुनिश्चित करने और वक्फ मामलों से संबंधित अंतर्राज्यीय विवादों को हल करने के लिये केंद्रीय वक्फ परिषद के साथ काम करने का अधिकार दिया गया है।

वैध वक्फ के लिये आवश्यक बातें क्या हैं?

  • हनफ़ी विधि के अंतर्गत वैध वक्फ के पाँच अनिवार्य तत्त्व हैं:
    • संपत्ति का स्थायी समर्पण
    • वक्फ सक्षम होना चाहिये
    • वक्फ संपत्ति का मालिक होना चाहिये
    • वक्फ धार्मिक होना चाहिये
    • यह बिना शर्त होना चाहिये
  • शिया विधि के अंतर्गत वक्फ की वैधता की चार शर्तें हैं:
    • यह निरंतर होना चाहिये
    • यह पूर्ण और बिना शर्त होना चाहिये
    • विनियोजित वस्तु का कब्ज़ा दिया जाना चाहिये
    • इसे पूरी तरह से वक्फ से बाहर ले जाना चाहिये

वक्फ से संबंधित वैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1913:
    • यह अधिनियम उन मुस्लिम वक्फों को वैध बनाने के लिये बनाया गया था जिन्हें पहले कुछ न्यायिक निर्णयों द्वारा अवैध करार दिया गया था।
    • अधिनियम ने स्पष्ट रूप से निर्माता के परिवार, बच्चों और वंशजों के रखरखाव तथा सहायता के लिये बनाए गए वक्फ की वैधता को मान्यता दी।
    • इसमें कहा गया कि कोई भी वक्फ केवल इसलिये अवैध नहीं माना जाएगा क्योंकि उसमें आरक्षित लाभ वक्फ (निर्माता) के परिवार, बच्चों या वंशजों के लिये है।
    • यह अधिनियम इसके अधिनियमन से पहले बनाए गए वक्फों को वैध बनाने के लिये पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है, बशर्ते कि वे कुछ शर्तों को पूरा करते हों।
    • इसने "वक्फ" को मुस्लिम विधि द्वारा धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ कार्य के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिये किसी भी संपत्ति के स्थायी समर्पण के रूप में परिभाषित किया।
  • वक्फ अधिनियम, 1954:
    • यह अधिनियम स्वतंत्र भारत में वक्फ के प्रशासन के लिये पहला व्यापक विधान था।
    • इसमें वक्फों के पर्यवेक्षण एवं प्रशासन के लिये केंद्रीय एवं राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना का प्रावधान किया गया।
    • अधिनियम में "वक्फ" को अधिक विस्तार से परिभाषित किया गया, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों वक्फ शामिल हैं।
    • इसने वक्फ प्रशासन की देखरेख के लिये वक्फ आयुक्त का कार्यालय स्थापित किया।
    • इस अधिनियम में वक्फ संपत्तियों के रखरखाव और विकास के लिये वक्फ कोष के गठन का प्रावधान किया गया।
    • इसमें वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और उपयोग के लिये प्रावधान प्रस्तुत किये गए।
    • अधिनियम में वक्फ से संबंधित विवादों के समाधान के लिये प्रक्रियाएँ निर्धारित की गईं।
    • इसमें वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग या दुर्विनियोजन के लिये दण्ड का प्रावधान किया गया।
    • इस अधिनियम ने वक्फ बोर्डों को खोई हुई वक्फ संपत्तियों की वसूली के लिये उपाय करने का अधिकार दिया।
    • इसमें वक्फ संपत्तियों को अतिक्रमण से बचाने के लिये प्रावधान प्रस्तुत किये गए।

मुतवल्ली कौन है?

परिचय:

  • मुतवल्ली वह व्यक्ति होता है जिसे वक्फ संपत्ति का प्रशासन और प्रबंधन करने के लिये नियुक्त किया जाता है।
  • मुतवल्ली वक्फ के ट्रस्टी या संरक्षक के रूप में कार्य करता है, जिसे इसकी देखभाल और प्रबंधन का काम सौंपा जाता है।
  • मुतवल्ली को वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के तहत वक्फ बोर्ड या वक्फ निर्माता द्वारा नियुक्त किया जा सकता है।
  • मुतवल्ली एक न्यासीय पद होता है और वक्फ विलेख में निर्दिष्ट नियमों तथा शर्तों से बंधा होता है।

मुतवल्ली की शक्तियाँ और कर्त्तव्य:

  • मुतवल्ली वक्फ संपत्ति का प्रशासन उस उद्देश्य के अनुसार कर सकता है जिसके लिये इसे बनाया गया था।
  • मुतवल्ली का यह कर्त्तव्य है कि वह वक्फ विलेख में व्यक्त वक्फ के आशयों को पूरा करे।
  • मुतवल्ली को वक्फ संपत्ति और उसकी आय का उचित लेखा-जोखा रखना अनिवार्य है।
  • मुतवल्ली को विधि द्वारा निर्धारित वार्षिक लेखा-जोखा और रिपोर्ट वक्फ बोर्ड को प्रस्तुत करनी चाहिये।
  • मुतवल्ली को वक्फ अधिनियम में निर्धारित प्रतिबंधों और शर्तों के अधीन वक्फ संपत्ति को पट्टे पर देने का अधिकार है।
  • मुतवल्ली वक्फ संपत्ति को क्षति, बर्बादी या हानि से बचाने और संरक्षित करने के लिये कर्त्तव्यबद्ध है।
  • मुतवल्ली को वक्फ बोर्ड की पूर्व स्वीकृति के साथ वक्फ संपत्ति की सुरक्षा के लिये विधिक कार्यवाही आरंभ करने का अधिकार है।
  • मुतवल्ली को वक्फ बोर्ड की पूर्व स्वीकृति के बिना और वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में वक्फ संपत्ति को अंतरित करने या अंतरित करने से प्रतिबंधित किया गया है।

मुतवल्ली को हटाना:

  • वक्फ बोर्ड को वक्फ अधिनियम के तहत विशिष्ट परिस्थितियों में मुतवल्ली को हटाने का अधिकार है।
  • हटाने के आधारों में कर्त्तव्यों के पालन में लगातार विफलता, घोर लापरवाही के कारण वक्फ संपत्ति का दुरुपयोग या नुकसान शामिल हो सकता है।
  • वक्फ बोर्ड किसी मुतवल्ली को हटा सकता है यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है, शारीरिक या मानसिक दोष या बीमारी से पीड़ित है, या नैतिक पतन से जुड़े किसी अपराध में दोषी पाया जाता है।
  • यदि यह पाया जाता है कि किसी मुतवल्ली ने वक्फ बोर्ड की पूर्व अनुमति के बिना वक्फ संपत्ति खरीदी है तो उसे हटाया जा सकता है।
  • बोर्ड किसी मुतवल्ली को जानबूझकर और लगातार लेखा या रिपोर्ट प्रस्तुत करने में चूक करने पर हटा सकता है।
  • किसी मुतवल्ली को वक्फ अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों के किसी प्रावधान का घोर उल्लंघन करने पर हटाया जा सकता है।
  • निष्कासन प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये, जिसमें मुतवल्ली को सुनवाई का अवसर प्रदान करना भी शामिल है।
  • वक्फ बोर्ड द्वारा जारी निष्कासन आदेश वक्फ अधिनियम में दिये गए प्रावधान के अनुसार अपील के अधीन है।

निष्कर्ष:

भारत में प्रस्तुत किये गए एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास अधिनियम, 2024 का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले विधिक ढाँचे में सुधार करना है। मुख्य परिवर्तनों में केंद्र सरकार द्वारा निगरानी बढ़ाना और गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल होने की अनुमति देना शामिल है। इस विधेयक का उद्देश्य प्रबंधन में सुधार करना और अक्षमताओं को दूर करना है, परंतु हितधारकों के परामर्श की कमी तथा धार्मिक अधिकारों के विषय में चिंताओं के कारण इसकी आलोचना की गई है। धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये समर्पित वक्फ संपत्तियों को विभिन्न ऐतिहासिक और वर्तमान विधानों के तहत शासित किया जाता है तथा उनके प्रशासन में वक्फ बोर्ड की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।