- यदि उन लोगों की बात करें जो डबल डिग्री (5-वर्षीय विधि + स्नातक) कोर्स कर रहे हैं, उनके पास कॉलेज के पहले दिन से ही व्यापक रिसर्च करके यह पता लगाने का पर्याप्त समय होता है कि विधि/कानून का कौन-सा क्षेत्र उनके लिये उपयुक्त होगा।
- इस श्रेणी में किसी भी व्यक्ति के लिये जानकारी एकत्र करने की अवधि आम तौर पर शुरूआती 3 वर्ष होती है। तैयारी संबंधी अन्वेषण यानी जानकारी एकत्र करने के चरण के दौरान, किसी को विधि के अंतर्गत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कॉर्पोरेट कानून, अभियोग (Litigation), राज्य पीएससी, यूपीएससी, आदि के बारे में जानकारी संग्रहीत करने का प्रयास करना चाहिये और इस बात का विस्तृत विश्लेषण करना चाहिये कि कौन-सा क्षेत्र उसके लिये उपयुक्त होगा।
- एक व्यक्ति को कार्यक्रम के चौथे वर्ष से ही परीक्षा की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये क्योंकि इससे तैयारी तथा रिवीज़न के लिये पर्याप्त समय मिल जाएगा।
- इसलिये स्नातक के अंतिम 2 वर्षों को गंभीरता से लेना चाहिये। ऐसा इसलिये क्योंकि विषयों के संबंध में प्रत्येक राज्य की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं, जिनमें प्रमुख और लघु, स्थानीय कानून, स्थानीय प्रावधान आदि विषयों पर विचार किया जाता है।
न्यायिक सेवा परीक्षा - अर्हता मानदंड
- अवर न्यायिक सेवाएँ (Lower Judicial Services)– न्यायिक सेवा परीक्षा में उपस्थित होने के लिये पात्रता मानदंड LLB की डिग्री है और कुछ राज्यों में यह आवश्यक है कि उसने अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन किया हो या नामांकित होने की योग्यता धारण करता हो। अधिकांश राज्यों में अनुभव अनिवार्य नहीं है तथा आयु सीमा राज्य के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। जो आमतौर पर 21 से 35 वर्ष के बीच होती है।
- प्रवर न्यायिक सेवाएँ (Higher Judicial Services)- उम्मीदवारों के लिये विधि में स्नातक होना अनिवार्य है और उनके पास कम-से-कम वर्षों (आमतौर पर सात वर्ष) का अभियोजन/वकालत का अभ्यास होना चाहिये।
- न्यायिक सेवा परीक्षा हेतु पात्रता मानदंड अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं। अधिकाँश राज्यों में आयु मानदंड न्यूनतम 35 वर्ष और अधिकतम 45 वर्ष है।
प्रयासों की संख्या अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है, अधिकाँश राज्यों द्वारा न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिये प्रयासों की कोई न्यूनतम संख्या निर्धारित नहीं की गई है, हालाँकि कुछ राज्य इसके अपवाद हो सकते हैं। ऐसा ही एक अपवाद उत्तर प्रदेश राज्य है जहाँ एक उम्मीदवार निर्धारित आयु सीमा के भीतर केवल 4 बार यह परीक्षा दे सकता है।
LLM, या विधि विषय में परास्नातक की उपाधि/डिग्री न्यायिक सेवा में कॅरियर की दृष्टि से कई मायनों में सहायक हो सकती है। इसके कुछ प्रमुख लाभों में शामिल हैं:
- उन्नत विधिक ज्ञान: LLM की डिग्री छात्रों को कानून/विधि के एक विशिष्ट क्षेत्र, जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून, कराधान कानून, या बौद्धिक संपदा कानून के गहरी समझ प्रदान करती है। यह ज्ञान न्यायिक सेवाओं में काम करने वालों के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इससे उन्हें अधिक सूचित निर्णय लेने और किसी विशेष मामले में कानूनी मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सकती है।
- अनुसंधान कौशल: कई LLM कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को थीसिस या अनुसंधान परियोजना/रिसर्च प्रोजेक्ट को पूरा करना आवश्यक होता है, जो उन्हें गहन अनुसंधान कौशल विकसित करने में मदद कर सकता है। ये कौशल न्यायिक सेवाओं में काम करने वालों के लिये उपयोगी हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें किसी मामले में शामिल तथ्यों और उस पर लागू कानूनों को समझने के लिये अक्सर शोध करने की आवश्यकता होती है।
- विशेषज्ञता: विधि के किसी विशिष्ट क्षेत्र में LLM की डिग्री प्राप्त करने से व्यक्ति को उस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने की अनुमति मिलती है। यह न्यायिक सेवाओं में काम करने वालों के लिये लाभप्रद हो सकता है क्योंकि इससे उन्हें कानून के किसी विशेष क्षेत्र का विशेषज्ञ बनने में मदद मिल सकती है।
- कॅरियर में प्रगति: LLM डिग्री को प्रायः कानून के उन्नत ज्ञान के संकेत के रूप में देखा जाता है और यह बहुत से नियोक्ताओं के लिये वांछनीय योग्यता हो सकती है।
न्यायिक सेवा- अर्हता मानदंड
न्यायिक सेवा परीक्षा बारी-बारी से तीन चरणों में आयोजित की जाती है अर्थात् प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार।
न्यायिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी हेतु महत्त्वपूर्ण विषय
- संवैधानिक कानून
- अनुबंध कानून और अपकृत्य कानून
- सामान्य ज्ञान और करेंट अफेयर्स
- दंडविधि/क्रिमिनल लॉ (IPC, CPC, CrPC तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम)
- व्यवहार विधि/ सिविल लॉ (CPC, अनुबंध अधिनियम, NÍ अधिनियम, संपत्ति कानून इत्यादि)
- अंग्रेज़ी भाषा में निपुणता तथा अभिक्षमता (Aptitude)
सामान्य ज्ञान खंड से भी प्रश्न पूछे जाते हैं। सामान्य ज्ञान के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण टॉपिक्स में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
- संचार और अंतरिक्ष
- वर्तमान राष्ट्रीय मुद्दे और सामाजिक प्रासंगिकता के विषय
- भारत का भूगोल
- भारत का इतिहास
- भारत और विश्व
- भारतीय संस्कृति
- भारतीय अर्थव्यवस्था
- भारतीय राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय मामले और संस्थान/संगठन
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि
उल्लेखनीय है कि कुछ राज्य अपनी प्रारंभिक परीक्षाओं में कुछ अतिरिक्त विषयों को भी शामिल करते हैं।
राज्य न्यायिक सेवा परीक्षा के लिये, अधिकांश राज्यों में न्यूनतम प्रतिशत की अनिवार्यता का प्रावधान नहीं है। वांछनीय अर्हता/योग्यता के अंतर्गत उम्मीदवार द्वारा LLB की डिग्री अर्थात्, किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से डिग्री (या तो 5-वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम या 3-वर्षीय पाठ्यक्रम) धारण करना शामिल है । अच्छा शैक्षणिक प्रदर्शन आपको न्यायिक सेवाओं की परीक्षा सफलतापूर्वक पूरा करने में मदद कर सकता है।
मध्य प्रदेश सिविल जज परीक्षा के लिये आवेदन करने हेतु, किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक पूरा करना होगा और:
- आवेदन जमा करने हेतु निर्धारित अंतिम तिथि तक कम-से-कम तीन वर्षों तक वकील के रूप में निरंतर प्रैक्टिस में संलग्न होना चाहिये।
- तीन या पाँच वर्षीय विधि की डिग्री के दौरान न्यूनतम 70% अंक (सामान्य और ओबीसी वर्ग के लिये), या न्यूनतम 50% अंक (एससी और एसटी वर्ग के लिये) के साथ एक उत्कृष्ट शैक्षणिक रिकॉर्ड होना चाहिये।
- हाँ, एक प्रैक्टिस करने वाला (अभ्यासरत) वकील/अधिवक्ता न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल हो सकता है।
- न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिये आपके पास कुछ योग्यताएँ होनी चाहिये। निम्नलिखित योग्यताएँ/अर्हताएँ सभी राज्यों के लिये समान हैं:
- आवेदन करने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक हो
- LLB/LLM की डिग्री अनिवार्य रूप से धारण करता/करती हो। हालाँकि, जज परीक्षा के लिये आवेदन करने हेतु LLM की डिग्री होना अनिवार्य नहीं है।
- भारत में किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से LLB की डिग्री।
- राज्य बार काउंसिल की सदस्यता के साथ अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत एक वकील के रूप में नामांकित होना चाहिये।
- कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ परीक्षा में नकारात्मक अंकन/नेगेटिव मार्किंग का प्रावधान नहीं है, लेकिन कुछ राज्यों में नकारात्मक अंकन का प्रावधान है।
- उदाहरण के लिये- राजस्थान में प्रारंभिक परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग का कोई प्रावधान नहीं है। प्रत्येक गलत उत्तर के लिये उत्तर प्रदेश में 0.5, दिल्ली में 0.25 तथा गुजरात में 0.33 नेगेटिव मार्किंग का प्रावधान है।
- न्यायिक सेवा के लिये आपके द्वारा 3 अथवा 5 वर्ष के पाठ्यक्रम के दौरान किये गए प्रयास ही मायने रखते हैं। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय/नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) केवल आपको एक मंच प्रदान करता है और उसके बाद आपके प्रयास ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। परीक्षा के दौरान यह मायने नहीं रखता कि आप नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से हैं या किसी सामान्य लॉ कॉलेज से।
- जो महत्त्वपूर्ण है वह है आपका कठिन परिश्रम और आपके द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान। इस प्रकार कोई भी NLU से स्नातक किये बिना भी जज बन सकता है।
भाषा, राज्य न्यायिक सेवा परीक्षा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी उन राज्यों में पाठ्यक्रम का हिस्सा है जहाँ राज्य की स्थानीय भाषा हिंदी है जैसे बिहार, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में न्यायिक सेवा परीक्षा में हिंदी भाषा है।
निम्नलिखित तरीकों से न्यायिक सेवा हेतु एक प्रभावी स्टडी प्लान तैयार किया जा सकता है:
- उस राज्य का चयन करें जिसके लिये आप परीक्षा देना चाहते हैं।
- उस विशेष राज्य के पाठ्यक्रम का विश्लेषण करें।
- उस राज्य के विगत वर्षों के प्रश्नपत्र देखें।
- बेयर एक्ट्स को कई बार पढ़ें।
- महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णयों पर संक्षिप्त नोट्स बनाएँ।
- वर्तमान कानूनी मामलों से स्वयं को अपडेट रखें।
- सभी विषयों का सार-संग्रह तैयार करें।
- प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं के लिये मॉक टेस्ट दें।
सामान्य अध्ययन प्रत्येक राज्य की न्यायिक सेवा परीक्षा का हिस्सा नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में 'सामान्य अध्ययन' के लिये अलग प्रश्नपत्र होते हैं, जबकि दिल्ली, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्य सामान्य अध्ययन की तुलना में करेंट अफेयर्स को अधिक महत्त्व देते हैं। इसलिये, यदि कोई उम्मीदवार उत्तर प्रदेश और बिहार का विकल्प चुनता है तो सामान्य अध्ययन, प्रारंभिक और मुख्य दोनों परीक्षाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होगा।
न्यायिक सेवा परीक्षाओं के लिये करेंट अफेयर्स बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे कुछ राज्यों में प्रारंभिक और मुख्य परीक्षाओं का एक प्रमुख हिस्सा हैं। अन्य राज्यों में करेंट अफेयर्स साक्षात्कार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
न्यायिक सेवा परीक्षाओं के लिये ‘द हिंदू’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ दोनों ही अत्यधिक पसंदीदा समाचार-पत्र हैं। हालाँकि, एक उम्मीदवार को दोनों समाचार पत्रों में से किसी एक का ईमानदारी से अनुसरण करना चाहिये।
समाचार पत्र पढ़ते समय, अपनी न्यायिक परीक्षा की तैयारी से संबंधित खंडों को अधिक प्राथमिकता दें। राष्ट्रीय समाचार, अंतर्राष्ट्रीय मामले, कानून संबंधी अपडेट और संपादकीय पर विशेष ध्यान दें। महत्त्वपूर्ण बिंदुओं, कानून से संबंधित समाचारों को पढ़ते समय उन्हें लिखें और भविष्य में आसान संदर्भ हेतु महत्त्वपूर्ण जानकारी को हाईलाइट करें। संपादकीय के अलग-अलग नोट्स बनाएँ क्योंकि वे निबंध लेखन में मदद करते हैं।
समाचार पत्रों को पढ़कर और उच्चतम न्यायालय तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों की वेबसाइटों का अनुसरण करके, कोई भी व्यक्ति कानूनों में हालिया विकास से अपडेट रह सकता है।
न्यायिक सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिये अंकों का आवंटन अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है। कुछ प्रमुख राज्यों द्वारा निर्धारित अंक आवंटन इस प्रकार हैं:
-
मध्य प्रदेश
- प्रारंभिक परीक्षा - 150 अंक
- मुख्य परीक्षा - 400 अंक
- साक्षात्कार - 50 अंक
-
दिल्ली
- प्रारंभिक परीक्षा - 200 अंक
- मुख्य परीक्षा - 850 अंक
- साक्षात्कार - 150 अंक
-
राजस्थान
- प्रारंभिक परीक्षा - 100 अंक
- मुख्य परीक्षा - 3000 अंक
- साक्षात्कार - 35 अंक
-
हरियाणा
- प्रारंभिक परीक्षा - 500 अंक
- मुख्य परीक्षा - 900 अंक
- साक्षात्कार - 200 अंक
-
उत्तर प्रदेश
- प्रारंभिक परीक्षा - 450 अंक
- मुख्य परीक्षा - 1000 अंक
- साक्षात्कार - 100 अंक
विगत वर्षों के प्रश्नों को हल करना न्यायिक परीक्षा की तैयारी में बहुत लाभप्रद है क्योंकि:
- ये प्रश्न परीक्षा के पैटर्न बेहतर तरीके से समझने में मदद करते हैं।
- इनके माध्यम से महत्त्वपूर्ण टॉपिक्स के बारे में पता चल सकता है।
- यह स्व-मूल्यांकन के लिये एक मानदंड के रूप में कार्य करता है।
- इनका अभ्यास करके समय प्रबंधन कौशल को विकसित किया जा सकता है।
- यह परीक्षा के लिये एक प्रभावी रणनीति तैयार करने में सहायता प्रदान करता है।