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महत्त्वपूर्ण संस्थान
दिल्ली उच्च न्यायालय
« »26-Sep-2023
परिचय
- दिल्ली उच्च न्यायालय भारत में प्रमुख और ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण न्यायिक संस्थानों में से एक है।
- इसका इतिहास भारतीय क्षेत्र के व्यापक ऐतिहासिक और राजनीतिक विकास से जुड़ा हुआ है।
- यह देश की राजधानी के ह्रदय में न्याय के प्रतीक के रूप में स्थित है।
- वर्ष 1966 में स्थापित, दिल्ली उच्च न्यायालय भारत के कानूनी परिदृश्य को आकार देने और कानून के शासन को बनाए रखने में तत्परतापूर्वक कार्य कर रहा है।
- उच्च न्यायालय को शक्तियाँ भारत के संविधान, 1950 के भाग VI के अध्याय V से प्राप्त होती हैं।
- केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का अपना उच्च न्यायालय है, जिसे वह किसी अन्य राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के साथ साझा नहीं करता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक महत्त्व
- औपनिवेशिक काल के दौरान वर्ष 1866 में स्थापित लाहौर उच्च न्यायालय का दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों पर अधिकारिता थी।
- वर्ष 1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिलने के बाद, नवगठित केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिये एक अलग उच्च न्यायालय स्थापित करने की आवश्यकता थी।
- दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थापना 31 अक्तूबर, 1966 को दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम, 1966 के तहत की गई थी।
- उच्च न्यायालय की अधिकारिता दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र पर थी।
- उच्च न्यायालय प्रारंभ में संसद भवन से कार्य करता था और इसकी एक पीठ शिमला में भी स्थित थी।
- 25 जनवरी, 1971 को हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम,1970 लागू होने तक दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने अधिकारिता का प्रयोग शिमला पीठ के माध्यम से किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय का गठन
- दिल्ली उच्च न्यायालय का गठन प्रारंभ में चार न्यायाधीशों के एक पैनल के साथ किया गया था, जिसमें मुख्य न्यायाधीश के.एस. हेगड़े, न्यायमूर्ति आई.डी. दुआ, न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना, और न्यायमूर्ति एस.के. कपूर शामिल थे| विगत कुछ वर्षों में इस उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी है।
- वर्तमान में, दिल्ली उच्च न्यायालय के लिये न्यायाधीशों की अधिकृत संख्या में 45 स्थायी न्यायाधीश और 15 अतिरिक्त न्यायाधीश हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय के 31वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा हैं।
न्यायाधीशों की नियुक्ति
- राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
- CJI को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना आवश्यक है।
- राष्ट्रपति औपचारिक प्रक्रिया के माध्यम से अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की नियुक्ति करते हैं।
- इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश का पालन करना शामिल है।
- इसके अतिरिक्त, भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों से परामर्श लेने के लिये बाध्य किया जाता है, जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्च न्यायालय के लिये उम्मीदवार की नियुक्ति का सुझाव देते समय अपने दो सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायाधीशों से परामर्श करने की आवश्यकता पड़ती है।
अधिकारिता
मूल अधिकारिता:
- उच्च न्यायालय दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम, 1966 की धारा 5 के तहत अपने मूल अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय अपने मूल अधिकारिता के तहत मामलों की सुनवाई के लिये प्रथम न्यायालय हो सकता है।
- भारत के संविधान,1950 के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत मौलिक अधिकार, किसी अन्य उद्देश्य के लिये रिट अधिकारिता उच्च न्यायालय के मूल अधिकारिता का भाग हैं।
- एकल न्यायाधीश पीठ या डिवीजन पीठ भारत का संविधान,1950 के अनुच्छेद 226 के तहत मामलों की सुनवाई कर सकती है।
अपीलीय अधिकारिता
- उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध की गई अपीलों पर दोबारा सुनवाई कर सकता है।
- इसमें दीवानी और फौजदारी दोनों अपीलीय अधिकारिता शामिल हैं।
- यह अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली अधीनस्थ न्यायलयों द्वारा पारित फैसले को खारिज़ कर सकता है या बरकरार रख सकता है।
पर्यवेक्षण अधिकारिता
- भारत के संविधान,1950 के अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय के पास उन सभी क्षेत्रों के सभी न्यायालयों और अधिकरणों पर पर्यवेक्षण है, जिनके संबंध में वह अधिकारिता का प्रयोग करता है।
- यह एक सर्वोच्च अधिकारिता है, जिसका प्रयोग अधीनस्थ न्यायालयों और अधिकरणों के अंतिम निर्णयों पर भी किया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय सशस्त्र बलों से संबंधित अधिकरण पर अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता।
धन संबंधी अधिकारिता
- धन संबंधी अधिकारिता विवाद के विषय-वस्तु में शामिल विशिष्ट मौद्रिक मूल्य या वित्तीय राशि के आधार पर मामलों की सुनवाई के लिये न्यायालय के अधिकार या सीमा को संदर्भित करता है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय के पास 2 करोड़ रुपये से अधिक के विवाद वाले मामलों पर अधिकारिता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के अंतर्गत ज़िला न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधीन ज़िला न्यायलयों का दिल्ली के भीतर विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों या ज़िलों पर अधिकारिता है। वे नागरिक मामलों, आपराधिक मामलों, पारिवारिक विवादों, संपत्ति विवादों और उनके अधिकारिता में आने वाले अन्य कानूनी मामलों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिये ज़िम्मेदार हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधीनस्थ 7 ज़िला न्यायालय हैं:
- तीस हज़ारी न्यायालय की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी।
- पटियाला हाउस न्यायालय की स्थापना वर्ष 1977 में हुई थी।
- कड़कड़डूमा न्यायालय की स्थापना वर्ष 1993 में हुई थी।
- रोहिणी न्यायालय की स्थापना वर्ष 2005 में हुई थी।
- द्वारका न्यायालय की स्थापना वर्ष 2008 में हुई थी।
- साकेत न्यायालय की स्थापना वर्ष 2010 में हुई थी।
- राउज़ एवेन्यू न्यायालय की स्थापना वर्ष 2019 में हुई थी
आभासी न्यायालय
- दिल्ली उच्च न्यायालय में भौतिक और आभासी दोनों तरह के न्यायालय शामिल हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायालयों के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियम, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम, 1966 की धारा 7 और भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 227 के तहत प्रख्यापित किया था।
- किसी न्यायालय द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाने वाली सभी कार्यवाही को न्यायिक कार्यवाही कहा जाता है और भौतिक न्यायालय पर लागू होने वाले प्रोटोकॉल उपरोक्त नियमों के तहत आभासी कार्यवाही पर भी लागू होते हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय भी मामलों की ई-फाइलिंग की अनुमति देता है।
- साथ ही न्यायालय ने वर्ष 2022 में मुकदमों की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति भी प्रदान की है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकारी
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकारियों का पदानुक्रम, आरोही क्रम में है:
- प्रशासनिक अधिकारी (न्यायिक)/कोर्ट मास्टर
- सहायक रजिस्ट्रार
- उप रजिस्ट्रार
- संयुक्त रजिस्ट्रार
- रजिस्ट्रार
- रजिस्ट्रार-जनरल