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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
बी. वी. नागरत्ना
« »21-Sep-2023
तर्क से अधिक बयानबाजी, सिद्धांत से अधिक पार्टी और साक्ष्य से अधिक विचारधारा को महत्त्व देने का जोखिम न उठाएँ।
न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना
परिचय
- बैंगलोर वेंकटरमैया नागरत्ना (Bangalore Venkataramiah Nagarathna) भारत के सर्वोच्च न्यायालय की मौजूदा न्यायाधीश हैं। इनका जन्म 30 अक्तूबर, 1962 को बंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था।
- वह कानूनी पेशे से जुड़े परिवार से आती हैं। उनके पिता, ई. एस. वेंकटरमैया, भारत के 19वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) के रूप में कार्यरत थे।
- न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना की बार से बेंच तक की यात्रा को लगातार प्रगति और न्याय के सिद्धांतों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता द्वारा चिह्नित किया गया था।
- उनकी वर्ष 2027 तक भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने की संभावना है।
कॅरियर
- न्यायाधीश नागरत्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) और LLB में स्नातक किया।
- उन्होंने वर्ष 1987 में KESVY एंड कंपनी में प्रैक्टिस शुरू की और वकालत भी की तथा जुलाई 1994 में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू कर दी।
- उन्होंने कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (KSLSA) और उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें कुछ मामलों में न्याय मित्र ( एमिकस क्यूरी-Amicus Curiae) के रूप में भी नियुक्त किया गया था।
- उन्हें 18 फरवरी 2008 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 17 फरवरी, 2010 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- SC द्वारा जारी पुस्तक "भारत के न्यायालय" के भाग के रूप में लिखित कर्नाटक के न्यायालयों पर एक अध्याय में उन्होंने अपना योगदान दिया।
- उन्हें 31 अगस्त, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था और उनका कार्यकाल 29 अक्तूबर, 2027 तक रहेगा।
उल्लेखनीय मामले
सम्मत राय
- सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य (2022):
- न्यायाधीश नागरत्ना 5 न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थीं, जिसने कहा था कि "आपराधिक अभियोजन में मुकदमे का निष्कर्ष यदि दोषसिद्धि में समाप्त होता है, तो निर्णय सभी मामलों में तभी पूर्ण माना जाता है जब दोषी को सज़ा सुनाई जाती है"।
- इसका मतलब यह है कि एक आपराधिक मुकदमा केवल अभियुक्त की दोषसिद्धि पर समाप्त नहीं होता है, बल्कि, सज़ा के चरण के दौरान यह अपने पूर्ण निष्कर्ष पर पहुँचता है।
- पट्टाली मक्कल काची बनाम मयिलरमपेरुमल (2022):
- न्यायाधीश नागरत्ना 3 न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने वर्ष 2021 में तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित एक अधिनियम को बरकरार रखने की मांग करने वाली याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था, जो शिक्षा संस्थानों में विशेष आरक्षण प्रदान करता था।
- वह उस पीठ का हिस्सा थीं जिसने विवादित अधिनियम के आधार पर आगे की नियुक्तियों पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया था, हालाँकि अंतिम फैसला न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और एल. नागेश्वर राव ने दिया था।
- बिलकिस याकूब रसूल बनाम भारत संघ एवं अन्य (2022):
- न्यायाधीश नागरत्ना बलात्कार सहित कई अन्य अपराधों के लिये आरोपित 11 दोषियों की सजा की क्षमा के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रहीं थीं।
- उन्होंने छूट की नीति के चयनात्मक अनुप्रयोग पर सवाल उठाया।
- उन्होंने वकील से यह भी सवाल किया कि इसमें दोषियों को कई सौ दिनों तक बाहर आने का विशेषाधिकार प्राप्त है, जबकि अन्य दोषियों को ऐसा विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है।
- नीरज दत्ता बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) (2023):
- न्यायाधीश नागरत्ना ने फैसला सुनाया जहाँ 5 न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC अधिनियम) के तहत रिश्वत और परितोषण लेने के आरोप में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहरा सकती है।
- फैसले का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि "शिकायतकर्त्ताओं के साथ-साथ अभियोजन पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिये ईमानदार प्रयास करता है कि भ्रष्ट लोक सेवकों को न्याय के कटघरे में लाया जाए और उन्हें दोषी ठहराया जाए ताकि प्रशासन तथा शासन भ्रष्टाचार मुक्त हो सके"।
- कुसुमबेन पटेल वरुण पुनिया बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य (2023):
- एक खंडपीठ के हिस्से के रूप में, न्यायाधीश नागरत्ना ने इस मामले में कहा कि अनुचित जाँच के हर मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
विसम्मत राय
- कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023):
- न्यायाधीश नागरत्ना 5 न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थी, जिसमें यह फैसला सुनाया गया था कि “संविधान के भाग III के तहत एक नागरिक के अधिकारों के साथ असंगत एक मंत्री द्वारा दिया गया कोई बयान, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो सकता है और संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कार्रवाई योग्य हो सकता है।”
- पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि यदि इस तरह के बयान से कोई कार्रवाई होती है या अधिकारियों द्वारा कार्य करने में विफलता होती है, जिससे किसी व्यक्ति को क्षति या हानि होती है, तो यह संभावित रूप से संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कानूनी कार्रवाई के अधीन हो सकता है।
- उन्होंने एक विसम्मत राय देते हुए कहा कि एक उचित तरीके से स्थापित कानूनी ढाँचा उन कार्यों या कार्य करने में विफलताओं को चित्रित करने के लिये आवश्यक है जिन्हें संवैधानिक अपकृत्य माना जा सकता है, साथ ही यह स्थापित करने हेतु ऐसे मुद्दों को पूर्व न्यायिक फैसलों के माध्यम से कैसे संबोधित या हल किया जाएगा।
- उन्होंने कहा, "विशेष रूप से, उन सभी मामलों को संवैधानिक अपकृत्य के रूप में मानना समझदारी नहीं है, जहाँ किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा दिये गए बयान से किसी व्यक्ति/नागरिक को क्षति या हानि होती है।"
- न्यायाधीश नागरत्ना 5 न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थी, जिसमें यह फैसला सुनाया गया था कि “संविधान के भाग III के तहत एक नागरिक के अधिकारों के साथ असंगत एक मंत्री द्वारा दिया गया कोई बयान, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो सकता है और संवैधानिक अपकृत्य के रूप में कार्रवाई योग्य हो सकता है।”
- विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ (2023):
- पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से वर्ष 2016 में नोटबंदी या विमुद्रीकरण (Demonetisation) के फैसले को बरकरार रखा।
- न्यायाधीश नागरत्ना ने इस मामले में विसम्मत राय देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण को लागू करने के लिये एक विधायी प्रक्रिया अपनाई होगी, न कि केवल एक गजट अधिसूचना जारी की होगी।
महत्त्वपूर्ण उद्धरण
- न्यायाधीश नागरत्ना ने देश के आने वाले वकीलों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि "तर्क से अधिक बयानबाजी, सिद्धांत से अधिक पार्टी और साक्ष्य से अधिक विचारधारा को महत्त्व देने का जोखिम न उठाएँ"।
- संवैधानिक मूल्यों के महत्त्व को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, "संवैधानिक संस्कृति रातों-रात स्थापित नहीं की जा सकती"।
- राष्ट्र में अल्पसंख्यकों के समान रुख और अधिकारों की रक्षा के लिये विधि के शासन को मज़बूत करने की प्रमुखता को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, "अगर हम एक महाशक्ति बनना चाहते हैं, तो पहली चीज जो हमें चाहिये वह है विधि का शासन"।