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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
फातिमा बीवी
« »29-Nov-2023
कौन थीं जस्टिस फातिमा बीवी?
न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी का जीवन और कॅरियर न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, सामाजिक मानदंडों के विरुद्ध दृढ़ता तथा भारतीय कानूनी प्रणाली में उनके अभूतपूर्व योगदान का प्रमाण है। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1927 को पथानामथिट्टा, त्रावणकोर में हुआ था। अपने समय की बाधाओं, विशेष रूप से महिलाओं पर थोपी गई पाबंधियों को चुनौती देते हुए वह एक कानूनी विशेषज्ञ के रूप में उभरी। वह भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं। वह उच्च न्यायिक पद पर नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम महिला भी थीं। 23 नवंबर, 2023 को 96 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
कैसा रहा जस्टिस फातिमा बीवी के कॅरियर का सफर?
- न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से विधि में डिग्री हासिल की।
- 14 नवंबर, 1950 को उन्हें एक अधिवक्ता के रूप में नामांकित किया गया।
- वर्ष 1958 में उन्हें केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं (Kerala Sub-ordinate Judicial Services) में मुंसिफ नियुक्त किया गया था।
- बाद में उन्हें अधीनस्थ न्यायाधीश, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और बाद में वर्ष 1974 में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
- वर्ष 1980 में उन्हें आयकर अपीलीय अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal) के न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था।
- बाद में, उन्हें वर्ष 1983 में केरल उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
- तत्पश्चात उन्हें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया, उच्चतम न्यायालय में उनका कार्यकाल वर्ष 1989 से 1992 तक था।
- उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) के सदस्य के रूप में भी देश की सेवा की।
- वर्ष 1997 से 2001 तक वह तमिलनाडु की राज्यपाल भी रहीं।
न्यायमूर्ति फातिमा बीवी से संबंधित उल्लेखनीय वाद कौन-से हैं?
- मैरी रॉय बनाम केरल राज्य (1986):
- यह मामला पिता की संपत्ति में महिलाओं के अधिकार से जुड़ा था।
- न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने महिलाओं के लिये समान विरासत अधिकारों की पुष्टि में योगदान दिया।
- रतन चंद हीरा चंद बनाम असकर नवाज़ जंग (1991):
- न्यायालय भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act- ICA) , 1872 की धारा 23 पर विचार कर रही थी, जहाँ मुद्दा यह था कि क्या एक संविदा जिसके तहत एक पक्ष संपत्ति की वसूली में दूसरे पक्ष की सहायता करता है और आय को साझा करके 'लोक नीति' का विरोध करता है।
- न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने निर्णय दिया कि “किसी समझौते पर विचार या प्रतिवाद गैर-कानूनी है जब न्यायालय इसे लोक नीति के विरुद्ध मानता है। यदि सार्वजनिक कानून या सार्वजनिक/लोक नीति के विरुद्ध कुछ भी किया जाता है तो वह अवैध होगा क्योंकि लोक नीति के विरुद्ध किसी अनुबंध को अनुमति देने की स्थिति में जनता के हितों को नुकसान होगा।
- आगे उन्होंने कहा कि लोक नीति समुदाय की वर्तमान ज़रूरतों पर आधारित न्यायिक व्याख्या का एक सिद्धांत है। लोक नीति से संबंधित कानून अपरिवर्तनीय नहीं रह सकता।
- असम सिलिमेनाइट लिमिटेड बनाम भारत संघ (1992):
- आसाम सिलिमेनाइट लिमिटेड (रिफ्रैक्टरी संयंत्र का अर्जन और अंतरण) अधिनियम, 1976 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
- दो न्यायाधीशों की इस पीठ के निर्णय में न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने कहा कि विधानमंडल की इस घोषणा के बावजूद कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 में निर्दिष्ट निर्देशों को लागू करने के लिये कोई विशेष अधिनियम बनाया गया है, न्यायालय इस तरह की घोषणा को नजरअंदाज़ करने और उसकी संवैधानिकता की जाँच करने के लिये स्वतंत्र होगा।
- उन्होंने आगे कहा कि कानून की रक्षा के लिये एक क्लर्क के रूप में घोषणा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, जिसका अनुच्छेद 39 में उल्लिखित उद्देश्यों से कोई संबंध नहीं है।
- अनुसूचित जाति एवं कमज़ोर वर्ग कल्याण संघ बनाम कर्नाटक राज्य (1997):
- इस मामले में न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने प्राकृतिक न्याय और मनमानी शक्ति के उपयोग की स्थिति तय करते हुए कहा कि "यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था के मूलभूत नियमों में से एक है कि प्रत्येक नागरिक को राज्य या उसके अधिकारियों द्वारा मनमाने अधिकार के प्रयोग से सुरक्षा मिलती है"।
- उन्होंने आगे कहा कि यदि किसी व्यक्ति के पूर्वाग्रह को तय करने और निर्धारित करने की शक्ति है, तो न्यायिक रूप से कार्य करने का कर्तव्य ऐसी शक्ति के प्रयोग में निहित है तथा प्राकृतिक न्याय का नियम वैध रूप से बनाए गए किसी भी कानून के दायरे में न आने वाले क्षेत्रों में संचालित होता है।
न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी पर फातिमा बीवी का उल्लेखनीय दृष्टिकोण क्या है?
- न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने न्यायपालिका में महिलाओं के अनुपात का ज़िक्र करते हुए कहा कि “अब क्षेत्र में, बार और पीठ दोनों में कई महिलाएँ हैं। हालाँकि, उनकी भागीदारी कम है। उनका प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर नहीं है। महिलाओं को न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व मिलने में समय लगेगा।”