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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति हिमा कोहली

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 22-May-2024

न्यायमूर्ति हिमा कोहली कौन हैं?

  • जस्टिस हिमा कोहली का जन्म 02 सितंबर 1959 को दिल्ली में हुआ था। वर्ष 2021 में उन्हें तेलंगाना उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वह इस न्यायालय की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश थीं।

 न्यायमूर्ति हिमा कोहली की कॅरियर यात्रा:

  • न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने वर्ष 1984 में दिल्ली विश्वविद्यालय से LLB पूरा किया।
  • इसके बाद उन्होंने वर्ष 1984 में ही विधिज्ञ परिषद, दिल्ली में एक वकील के रूप में नामांकन कराया।
  • उन्हें वर्ष 2004 में दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील सिविल के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें 29 मई 2006 को दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया तथा 29 अगस्त 2007 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
  • वर्ष 2020 में, कोहली ने एक न्यायिक समिति का नेतृत्व किया जिसने कोविड-19 महामारी के दौरान दिल्ली सरकार की प्रतिक्रिया की निगरानी की।
  • वह वर्ष 2020 में दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की अध्यक्ष बनीं।
  • उन्हें NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के चांसलर के रूप में भी नियुक्त किया गया था।
  • उन्होंने 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • सद्दाक हुसैन बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2019)
    • इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन तय किये गए ठोस आरोप के अभाव में उसे IPC की धारा 302 के अधीन दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
    • उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दिये गए, अपीलकर्त्ता की दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया।
    • न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह भी कहा कि यह एक अवैधता है जिसका वर्तमान मामले की परिस्थितियों में निवारण संभव नहीं है क्योंकि अपीलकर्त्ता के विरुद्ध IPC की धारा 302 के अधीन किसी भी ठोस आरोप के अभाव में, अपीलकर्त्ता को बचाव पक्ष द्वारा गुमराह किया गया था।
  • ऑरेलियानो फर्नांडीस बनाम गोवा राज्य एवं अन्य (2023)
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के संबंध में निर्णय दिया तथा (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (PoSH अधिनियम) के लिये निर्देश जारी किये।
    • न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि भले ही PoSH अधिनियम 2013 में लागू किया गया था, परंतु अधिनियम के कार्यान्वयन में खामियाँ हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि अधिकारियों/प्रबंधन/नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत मिलने पर तत्काल एवं प्रभावी कदम उठाने चाहिये तथा शिकायत के प्रारंभिक बिंदु से लेकर, जब तक कि जाँच अंतिम रूप से समाप्त नहीं हो जाती और रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हो जाती, अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना चाहिये।
  • परवेज़ परवाज़ एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2022):
    • यह मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नफरत भरे भाषण से जुड़ा था, इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि जाँच एजेंसी द्वारा क्लोज़र रिपोर्ट जमा करने के बाद कोई भी मामला नहीं बनता है तथा वर्तमान अपील पूरी तरह से एक शैक्षणिक अभ्यास मात्र है।
    • न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह भी कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CRPC) की धारा 196 में प्रयुक्त शब्द "कोई भी अदालत संज्ञान नहीं लेगी" उक्त प्रावधान के अधीन परिणामी बाधा उत्पन्न करता है, यह प्रावधान निस्संदेह यह प्रदर्शित करता है कि यह बाधा न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के विरुद्ध है।