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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
ए. एन. राय
« »05-Dec-2023
परिचय
न्यायमूर्ति ए.एन. राय या अजीत नाथ राय, एक प्रतिष्ठित भारतीय न्यायविद और विधिक विद्वान थे, जिन्होंने भारतीय विधिक प्रणाली में प्रमुख योगदान दिया। उनका जन्म 29 जनवरी, 1912 को हुआ था।
न्यायमूर्ति ए.एन. राय का कॅरियर न्यायपालिका में एक उत्कृष्ट श्रेणी का रहा, उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) के रूप में अपनी सेवा के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी। उनके कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले आए जिन्होंने देश के विधिक परिदृश्य को आकार दिया।
कैसा रहा न्यायमूर्ति ए. एन. राय का कॅरियर?
- न्यायमूर्ति ए. एन. राय ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में एम.ए. की पढ़ाई आधुनिक इतिहास विषय से की और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के भाग ओरियल कॉलेज में ऑनर्स स्कूल ऑफ मॉडर्न हिस्ट्री में बी.ए. किया।
- वर्ष 1939 में सोसाइटी ऑफ ग्रेज़ इन (Society of Gray’s Inn) द्वारा बार (Bar) में बुलाए जाने के बाद, उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में लॉ का अभ्यास किया।
- वह 1 अगस्त, 1969 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बने तथा 26 अप्रैल, 1973 को उन्हें 14वें CJI की भूमिका सौंपी गई।
न्यायमूर्ति ए. एन. राय के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):
- न्यायमूर्ति ए. एन. राय उन न्यायाधीशों में से थे जिन्होंने इस ऐतिहासिक मामले में फैसले पर हस्ताक्षर नहीं किये, जो भारतीय संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था।
- न्यायालय ने इस मामले में कहा कि हालाँकि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह इसकी मूल संरचना को नहीं बदल सकती।
- इस फैसले का भारत में संवैधानिक विधि पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
- हालाँकि न्यायमूर्ति ए. एन. राय ने बहुमत से असहमति जताई और कहा कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की असीमित शक्ति है।
- इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (1975):
- प्रमुख राजनीतिक प्रभाव वाले इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ए. एन. राय CJI थे।
- फैसले में चुनावी अनाचार के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया।
- इस निर्णय के कारण भारत में राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया और आपातकाल लागू हो गया।
- पीठ ने मामले को राज नारायण के पक्ष में माना।
- प्रमुख राजनीतिक प्रभाव वाले इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ए. एन. राय CJI थे।
- ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976):
- न्यायमूर्ति ए. एन. राय उन चार न्यायाधीशों में से एक थे जिन्होंने इस कुख्यात मामले में बहुमत से निर्णय सुनाया था, जिसे भारत में आपातकाल (1975-1977) के दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले के रूप में भी जाना जाता है।
- इस निर्णय में कहा गया कि आपातकाल के दौरान, व्यक्ति बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के लिये न्यायालय में नहीं जा सकते थे।
- इस निर्णय की व्यापक आलोचना हुई और बाद में उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज़ कर दिया।
न्यायमूर्ति ए. एन. राय से जुड़ा विवाद क्या है?
- उनसे जुड़ा विवाद मुख्य रूप से वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा भारत में आपातकाल लागू करने से पहले और उसके बाद की घटनाओं से जुड़ा है।
- इस दौरान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ और सरकार के पक्ष में न्यायिक सक्रियता के आरोप लगे।
- CJI के रूप में न्यायमूर्ति ए.एन. राय की नियुक्ति और आपातकाल के दौरान उनके निर्णयों ने सरकार के साथ उनकी निकटता तथा न्यायिक स्वतंत्रता की कमी के संदेह को हवा दी।
- विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने वरिष्ठता के आधार पर CJI की नियुक्ति की प्रथा को खत्म कर दिया, क्योंकि न्यायमूर्ति ए. एन. राय ने न्यायमूर्ति जे.एम. शेलत, न्यायमूर्ति के. एस. हेगड़े और न्यायमूर्ति ए.एन. ग्रोवर को हटा दिया।
- विशेष रूप से, ये तीन न्यायाधीश केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में बहुमत का हिस्सा थे।