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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

बी. आर. गवई

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 06-Oct-2023

जस्टिस बी आर गवई:

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई, जिन्हें आमतौर पर बी.आर.गवई के नाम से जाना जाता है, भारत के कानूनी परिदृश्य में एक प्रतिष्ठित नाम है। 24 नवंबर 1960 को अमरावती, महाराष्ट्र में जन्मे न्यायमूर्ति गवई ने भारतीय न्यायपालिका पर एक अमिट छाप छोड़ते हुये कानून और न्याय के क्षेत्र में उल्लेखनीय यात्रा की है। उन्होंने कानूनी मामलों में अपनी विशेषज्ञता को और निखारते हुये नागपुर विश्वविद्यालय से कला स्नातक और विधि स्नातक (B.A.LL.B.) की पढ़ाई पूरी की। यदि वरिष्ठता के आधार पर CJI की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया का पालन किया जाता है तो वह भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने की कतार में हैं। 9 साल बाद जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन की सेवानिवृत्ति के बाद, न्यायमूर्ति बी आर गवई उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाले अनुसूचित जाति से संबंधित पहले न्यायाधीश बने।

कॅरियर:

  • वह 16 मार्च 1985 को एक वकील के रूप में बार में शामिल हुये।
  • उन्होंने 1987 तक पूर्व महाधिवक्ता और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश दिवंगत राजा एस.भोंसले के साथ काम किया।
  • उन्होंने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की और 1990 के बाद, उन्होंने मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के समक्ष प्रैक्टिस की।
  • वह नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिये स्थायी वकील थे।
  • उन्हें अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे, नागपुर बेंच में न्यायिक उच्च न्यायालय में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें 17 जनवरी 2000 को नागपुर न्यायपीठ के लिये सरकारी वकील और लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया।
  • उन्होंने मुंबई में प्रिंसिपल सीट के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में सभी प्रकार के कार्यभार वाली न्यायपीठों की अध्यक्षता की।
  • उन्हें 24 मई 2019 को भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था, उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक है।

न्यायमूर्ति बी आर गवई के उल्लेखनीय मामले:

  • सुदरू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2019):
    • न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और बी आर गवई की न्यायपीठ ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य, अंतिम बार देखे गए साक्ष्य और दोषी ठहराए जाने वाले साक्ष्यों के लिये प्रशंसनीय स्पष्टीकरण प्रदान करने में विफलता के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया, जिससे आरोपी की दोषसिद्धि की पुष्टि हुई।
  • यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य बनाम यूनिकॉर्न इंडस्ट्रीज (2019):
    • 3 न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने निर्धारित किया कि भारत संघ, प्रॉमिसरी एस्टॉपेल सिद्धांत को लागू करने के माध्यम से, विशिष्ट उत्पादों के लिये उत्पाद शुल्क पर छूट को रद्द करने से नहीं रोक सकता है, यदि वह सार्वजनिक हित के लिये ऐसी वापसी को आवश्यक समझता है।
  • इन रे प्रशांत भूषण और अन्य (2020 ):
    • जून 2020 में वकील प्रशांत भूषण ने पूर्व सीजेआई, एस.ए.बोबडे से मुलाकात की एक तस्वीर अपलोड की। जहाँ न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने इस कृत्य को न्यायालय की अवमानना ​​मानते हुये उन पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया
    • न्यायालय ने कहा कि “अगर हम इस तरह के आचरण का संज्ञान नहीं लेते हैं, तो यह पूरे देश में वकीलों और वादियों को गलत संदेश देगा। हालाँकि, उदारता दिखाते हुये, कोई कड़ी सज़ा देने के स्थान पर ,हम अवमाननाकर्ता को 1 रुपये के मामूली जुर्माने की सज़ा दे रहे हैं।
  • Amazon.Com एनवी इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स एलएलसी बनाम फ्यूचर रिटेल लिमिटेड,(2022):
    • न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने कहा कि सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के मध्यस्थता नियमों के तहत नियुक्त आपातकालीन मध्यस्थ द्वारा पारित एक आपातकालीन पुरस्कार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) की धारा 17 के तहत लागू करने योग्य है।
    • न्यायपीठ ने अमेज़न के पक्ष में आदेश पारित किया।
  • पट्टाली मक्कल काची बनाम मायिलेरुपेरुमा,(2022):
    • वर्ष 2021 में, तमिलनाडु में निजी शैक्षणिक संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का विशेष आरक्षण और राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों पर अति पिछड़ा वर्गों और विमुक्त समुदायों के लिये आरक्षण अधिनियम, 2021 पारित किया गया था।
    • इसने अति पिछड़ा वर्गों (MBC) को प्रदान किए गए 20% आरक्षण के बीच सार्वजनिक शिक्षा और रोज़गार में वन्नियार समुदाय को 10.5% आरक्षण प्रदान किया।
    • न्यायमूर्ति बी आर गवई की 3 न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने फैसला सुनाया कि जबकि राज्य सरकार के पास आंतरिक आरक्षण लागू करने का विधायी अधिकार था, उन्होंने वर्ष 2021 के अधिनियम तैयार करते समय पुराने और अविश्वसनीय डेटा पर भरोसा करके गलती की।
    • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अधिनियम अन्य अति पिछड़ा वर्ग (MBC) समूहों के खिलाफ गलत तरीके से भेदभाव करता है।
  • विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ (2023):
    • जस्टिस बी आर गवई की 5 जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत के साथ नोटबंदी के फैसले को बरकरार रखा।
    • न्यायमूर्ति बी आर गवई ने फैसला दिया, जहाँ उन्होंने यह भी कहा कि "विमुद्रीकरण एक केंद्र सरकार की पहल थी जिसका उद्देश्य देश को परेशान करने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक बुराइयों से निपटना था, जैसे कि "काले" धन की जमाखोरी और जालसाजी, ये दोनों आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी के लिये वित्तपोषण,एक समानांतर अर्थव्यवस्था का उदय और हवाला लेनदेन सहित मनी लॉन्ड्रिंग जैसी अन्य गंभीर बुराइयों को भी बढ़ावा देते हैं।”
  • नीरज दत्ता बनाम राज्य (2023):
    • न्यायमूर्ति बी आर गवई की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि एक सार्वजनिक अधिकारी को रिश्वतखोरी के आरोप में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है।
  • सलिब @ शालू @ सलीम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023):
    • न्यायमूर्ति बी आर गवई की एक खंडपीठ, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अवलोकन कर रही थी।
    • न्यायपीठ ने कहा कि: "जब भी कोई आरोपी सीआरपीसी(CrPC) की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करके एफआईआर या आपराधिक कार्यवाही को रद्द कराने के लिये न्यायालय के समक्ष आता है, तो न्यायालय का कर्तव्य है कि FIR को सावधानी से व थोड़ा और बारीकी से देखे।

न्यायमूर्ति बी आर गवई द्वारा कहे गए महत्त्वपूर्ण उद्धरण:

  • न्यायमूर्ति बी आर गवई ने सीखने के मूल्य पर जोर देते हुए कहा, "कानून का अभ्यास सीखने की एक शाश्वत प्रक्रिया है और व्यक्ति को अपने कॅरियर के अंत तक सीखना जारी रखना चाहिये। जिस दिन कोई सीखना बंद करने का फैसला कर लेगा, वह आखिरी दिन होगा।”
  • विमुद्रीकरण को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति बी आर गवई ने कहा कि "आनुपातिकता के सिद्धांत के आधार पर कार्रवाई को रद्द नहीं किया जा सकता है।"