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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़

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 13-Sep-2023

परिचय

डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) हैं। उनका जन्म 11 नवंबर, 1959 को हुआ था। उनके पिता वाई. वी. चंद्रचूड़ ने सबसे लंबे समय (16 वर्ष) तक CJI  के रूप में कार्य किया। उनकी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से हुई तथा उन्होंने सुलिवन एंड क्रॉमवेल (Sullivan & Cromwell) एवं बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील के रूप में अभ्यास किया है।

आजीविका

  • उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे HC में कानून का अभ्यास किया।
  • जून 1998 में उन्हें बॉम्बे HC द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था।
  • उन्होंने 29.03.2000 से इलाहाबाद HC के मुख्य न्यायाधीश और महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के निदेशक के रूप में अपनी नियुक्ति तक बॉम्बे HC के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
    • सर्वोच्च न्यायालय में उनकी नियुक्ति तक उन्हें 31.10.2013 से इलाहाबाद HC के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें 13.05.2016 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
    • CJI के रूप में उनका कार्यकाल नवंबर, 2022 से शुरू हुआ जो नवंबर, 2024 तक रहेगा।

उल्लेखनीय मामले

 न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कई ऐतिहासिक निर्णयों में सहमति और असहमति व्यक्त की, जिसने मौजूदा प्रथाओं को बदल दिया। कुछ प्रमुख मामले नीचे उल्लिखित हैं:

सहमत राय

  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2016):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस ऐतिहासिक नौ-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को भारत के संविधान, 1950 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार घोषित किया था।
    • उन्होंने इस फैसले में बहुमत की राय का समर्थन किया जिसने गोपनीयता, डेटा सुरक्षा और निगरानी से संबंधित कई आगामी फैसलों की नींव रखी।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
    • इस फैसले ने भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया और भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर दिया।
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक अलग सहमति वाली राय दी जिसमें कहा गया कि धारा 377 एक पुरातन और कालानुक्रमिक औपनिवेशिक युग का कानून है।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस मामले में बहुमत से सहमति व्यक्त की, जिसने IPC की धारा 497 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 198 (2) को असंवैधानिक ठहराते हुए व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से हटा दिया।
    • उन्होंने कहा कि यह प्रावधान पितृसत्तात्मक राष्ट्र का पक्षधर था।
  • शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. (2018):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस मामले में सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
  • स्वप्निल त्रिपाठी बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2018):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिसने राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों के साथ-साथ संवैधानिक मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी थी।
    • उन्होंने लाइव-स्ट्रीमिंग को खुला न्याय करार दिया और कहा कि, "खुला न्याय देश के संविधान और न्याय प्रशासन के एक मज़बूत और बहुत पवित्र हिस्से के रूप में उदार लोकतंत्र में एक उच्च स्थान पर है।"
  • सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया (2020):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक खंडपीठ के फैसले का समर्थन किया, जिसने महिलाओं को उनकी सेवा के वर्षों की परवाह किये बिना सेना में स्थायी कमीशन प्रदान किया।
    • उन्होंने कहा कि, "पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर्निहित शारीरिक अंतर एक गहरी जड़ें जमा चुकी रूढ़िवादी और संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण धारणा पर आधारित है कि महिलाएँ लैंगिंक रूप से कमज़ोर हैं"।
    • उन्होंने कहा कि इस तरह की रूढ़िवादिता महिला अधिकारियों को समान अवसर से वंचित करने का संवैधानिक रूप से वैध आधार नहीं है।
  • लेफ्टिनेंट कर्नल नितिशा बनाम भारत संघ (2021):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की आवश्यकता को मनमाना और तर्कहीन माना क्योंकि इसके लिये महिला अधिकारियों को अपने पुरुष समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन करना आवश्यक था।
    • उन्होंने कहा, "समानता की सतही भावना संविधान की सच्ची भावना नहीं है और समानता को केवल प्रतीकात्मक बनाने का प्रयास किया जाता है।"
  • X बनाम प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2022):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया जिसने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच समानता स्थापित की और उन्हें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 के तहत गर्भावस्था के 24 वें दिन तक गर्भपात की अनुमति दी।
    • उन्होंने कहा, "विवाहित और एकल महिलाओं के बीच यह बनावटी अंतर संवैधानिक रूप से सही नहीं है।"
    • पीठ ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को MTP अधिनियम के तहत बलात्कार माना जाएगा।
  • झारखंड राज्य बनाम शैलेन्द्र कुमार राय, पांडव राय (2022):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक खंडपीठ के फैसले को लिखा जिसमें कहा गया कि 'टू-फिंगर टेस्ट' या प्री वेजाइनम टेस्ट आयोजित नहीं किया जाना चाहिये।
    • उन्होंने कहा कि "इस तथाकथित परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह बलात्कार के आरोपों को न तो साबित करता है और न ही खारिज करता है।"
    • उन्होंने कहा कि इसके बजाय यह उन महिलाओं को फिर से पीड़ित और आघात पहुँचाता है, जिन पर यौन उत्पीड़न हुआ होगा और यह उनकी गरिमा का अपमान है।

असहमति राय

  • अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमचेन (2018):
    • 7 जजों की पीठ ने कहा कि चुनाव में उम्मीदवार धर्म के आधार पर वोट की अपील नहीं कर सकते।
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस मामले में असहमतिपूर्ण राय दी, जहाँ उन्होंने हाशिये पर स्थित समूह की सहायता के लिये सांप्रदायिक वोट अपील और सांप्रदायिक शिकायतों पर आधारित वोट अपील के बीच अंतर किया।
    • उन्होंने कहा कि "सामाजिक गतिशीलता हाशिये पर स्थित समूहों को एकीकृत करने का एक शक्तिशाली साधन है"।
    • उन्होंने कहा, "यह मानते हुए कि जो व्यक्ति चुनाव में खड़ा होना चाहता है, उसे नागरिकों की वैध चिंताओं के बारे में बोलने से प्रतिबंधित किया जाता है कि धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा से संबंधित लक्षणों के आधार पर उनके साथ अन्याय होगा।" उपाय यह है कि लोकतंत्र को एक अमूर्तता में बदल दिया जाये।''
  • इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018):
    • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सबरीमाला मामले में असहमति व्यक्त की, जहाँ बहुमत ने केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी।
    • उनका मानना था कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से बाहर रखने की प्रथा भेदभावपूर्ण थी तथा समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती थी।

महत्त्वपूर्ण उद्धरण

  • वन रैंक वन पेंशन (One Rank One Pension) मामले में सीलबंद लिफाफे में दस्तावेज़ों को खारिज़ करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'सीलबंद लिफाफे (Sealed covers) पूरी तरह से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं तथा इसका सहारा केवल तभी लिया जा सकता है जब यह किसी स्रोत या किसी के जीवन को खतरे में डालने के बारे में हो।'
  • उन्होंने मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति देते हुए कहा, 'sunlight is the best disinfectant।'
    • उन्होंने कहा कि “संवैधानिक लोकतंत्र में संस्थानों के लिये सबसे बड़ा खतरा अपारदर्शी होने का खतरा है। जब आप अपनी प्रक्रिया सामने लाते हैं, तो आप नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति कुछ हद तक पारदर्शिता एवं जवाबदेही की भावना उत्पन्न करते हैं।"
  • समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए उन्होंने कहा कि “इतिहास की गलतियों को सुधारना कठिन है। लेकिन हम निश्चित रूप से भविष्य के लिये मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।”
  • समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये याचिकाओं के समूह से निपटने के दौरान, उन्होंने उद्धृत किया कि "हम पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुँच चुके हैं जहाँ समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाकर, कोई यह सोच सकता है कि जो लोग समान लिंग के हैं वे एक स्थिर विवाह/स्टेबल मैरिज में होंगे"।
  • कानून और न्यायपालिका में नारीवाद को आत्मसात करने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, "पहली बात जो न्यायाधीश को समझने की आवश्यकता है वह यह है कि कानून केवल पहले से मौजूद लैंगिक वास्तविकताओं पर काम नहीं करता है, बल्कि कानून उन वास्तविकताओं के निर्माण में योगदान देता है।"