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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

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 10-Oct-2024

परिचय:

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह का जन्म 11 मई, 1963 को हुआ था और उन्होंने पटना लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री पूरी की।

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह का कॅरियर कैसा रहा?

  • न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने संवैधानिक, सिविल, आपराधिक, कराधान और अन्य मामलों में पटना उच्च न्यायालय में नियमित रूप से अभ्यास किया है। 
  • वे बिहार सरकार के स्थायी काउंसेल थे और उन्हें बिहार राज्य के सरकारी अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था। 
  • न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने पटना उच्च न्यायालय किशोर न्याय निगरानी समिति और पटना उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। 
  • उन्हें 20 जून, 2011 को पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। 
  • बाद में, उन्हें आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया और फिर पटना उच्च न्यायालय में पुनः स्थानांतरित कर दिया गया। 
  • उन्होंने 6 फरवरी, 2023 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। 
  • उन्हें किसी भी उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किये बिना उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत किया गया है।

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • आर. श्रीनिवास बनाम कर्नाटक राज्य (2023):
    • इस मामले में न्यायालय में अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये परिस्थिति के रूप में अंतिम बार देखे जाने के सिद्धांत पर चर्चा हुई। 
    • न्यायालय ने माना कि जहाँ कथित अंतिम बार देखे जाने और शव की बरामदगी के बीच लंबा समय अंतराल है, वहाँ अंतिम बार देखे जाने का निर्णायक साक्ष्य नहीं कहा जा सकता। 
    • साथ ही, न्यायालय ने माना कि अंतिम बार देखे जाने का सिद्धांत केवल एक पुष्टिकारी परिस्थिति होता है और अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये अन्य परिस्थितियाँ भी होनी चाहिये।
  • माधब चंद्र प्रधान और अन्य बनाम ओडिशा राज्य (2024):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि जब पीड़िता की जाँच की जा चुकी है और फिर दो बार विस्तार से जिरह की जा चुकी है, तो विशेष रूप से POCSO अधिनियम के तहत मुकदमे में पीड़िता को वापस बुलाने के आवेदन को यंत्रवत् स्वीकार करना कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा।
    • न्यायालय ने कहा कि अगर पीड़िता को बार-बार बुलाया जाता है तो लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
    • इसलिये, न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 311 के तहत आवेदन को खारिज करने के उच्च न्यायालय और विशेष न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
  • मानसी खत्री बनाम गौरव खत्री (2022):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय की 2 न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का उपयोग किया। 
    • न्यायालय ने माना कि इस मामले में पक्षकारों के विवाह में ऐसी दरार आ गई है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती और इसलिये पक्षकारों के मध्य न्याय को पूरा करने के लिये न्यायालय ने COI के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया और विवाह-विच्छेद को मंज़ूरी दे दी। 
    • इस प्रकार, पक्षकारों को विवाह-विच्छेद की डिक्री प्रदान की गई।
  • नागराथिनम एवं अन्य बनाम राज्य, निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व (2023):
    • इस मामले में अपीलकर्त्ता द्वारा गंभीर और अचानक उकसावे की दलील दी गई तथा उसने दलील दी कि उसे भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की IPC की धारा 302 के तहत नहीं, बल्कि धारा 304 के तहत दोषी ठहराया जाना चाहिये। 
    • अपीलकर्त्ता का मामला यह था कि उसने अपने बच्चों के साथ आत्महत्या करने का प्रयास किया (उन्हें ज़हर दे दिया) क्योंकि वह गंभीर और अचानक उकसावे के कारण अपने आत्म-नियंत्रण से वंचित थी जो IPC की धारा 300 के अपवाद 1 के अंतर्गत आता है। 
    • हालाँकि न्यायालय दलील से संतुष्ट नहीं था और उसने स्पष्ट किया कि इस मामले में धारा 300 में अपवाद 1 देना कठिन होगा।