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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

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 10-Oct-2024

परिचय:

न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह का जन्म 12 मार्च, 1963 को रोपड़, पंजाब में हुआ था। उन्होंने अपनी अधिकांश शिक्षा अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में पूरी की।

न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह का कॅरियर कैसा रहा?

  • न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह वर्ष 1987 में पंजाब एवं हरियाणा बार काउंसिल में पंजीकृत हुए।
  • उन्होंने सहायक महाधिवक्ता, अतिरिक्त महाधिवक्ता के पदों पर कार्य किया और अंततः 10 जुलाई, 2008 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए, जिसके बाद 14 जनवरी, 2011 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
  • बाद में, उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
  • उन्होंने 9 नवंबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • विधि से संघर्षरत किशोर बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2024): 
    • इस मामले में न्यायालय में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJA) की धारा 12 (1) के तहत किशोर को ज़मानत पर रिहा करने संबंधी कानून पर चर्चा हुई।
    • धारा 12 (1) के अनुसार, यदि कोई किशोर कानून का उल्लंघन करता है, तो उसे ज़मानत पर या बिना ज़मानत के रिहा किया जाना चाहिये, या फिर उसे परिवीक्षा अधिकारी या किसी सक्षम व्यक्ति की निगरानी में रखा जाना चाहिये, जब तक कि कोई विशेष प्रावधान लागू न हो।
    • इस निष्कर्ष को बिना दर्ज किये कि धारा 12 (1) का प्रावधान मामले के तथ्यों पर लागू होता है, कानून के साथ संघर्षरत किशोर को ज़मानत देने से मना नहीं किया जा सकता था।
  • जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ (2024):
    • न्यायालय ने माना कि यह स्थापित कानून है कि ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है।
    • यहाँ तक ​​कि ऐसे मामलों में भी जहाँ संबंधित कानून ज़मानत देने के लिये कठोर शर्तें प्रदान करते हैं, उपरोक्त नियम लागू होंगे।
    • न्यायालय ने माना कि योग्य मामलों में ज़मानत देने से इनकार करना भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।
  • चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड बनाम तरसेम लाल (2024):
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय को आरक्षण का लाभ देने के उद्देश्य से भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 342 के तहत किसी जनजाति या जनजातीय समुदाय के लिये राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी करना अनिवार्य है।
    • इस प्रकार, एक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (U.T.) में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति को उस राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती, जहाँ वह प्रवास करता है, यदि उक्त राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में ऐसी कोई राष्ट्रपति अधिसूचना मौजूद नहीं है।
  • जितेंद्र पासवान सत्य मित्र बनाम बिहार राज्य (2024):  
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि एक बार जब न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँच जाता है कि अभियुक्त ज़मानत का हकदार है तो उसके क्रियान्वयन को स्थगित नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों का उल्लंघन होगा। 
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का आदेश असाधारण है और इसलिये इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • अब्दुलमाजिद अब्दुलसत्तर मेमन बनाम गुजरात राज्य (2024): 
    • उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के तहत अपराध के अभियुक्त एक व्यक्ति को इस आधार पर ज़मानत दी कि उसके विरुद्ध आरोप तय नहीं किये गए थे। 
    • इसलिये, न्यायालय ने उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया।
  • कांता बनाम राजस्थान राज्य (2023):
    • इस मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने 1500 दिनों की देरी के लिये माफी के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। 
    • न्यायालय ने कहा कि यदि दिन-प्रतिदिन की देरी के लिये कोई स्पष्टीकरण नहीं है, तो निर्धारित समय के भीतर न्यायालय में अपील न करने के लिये उचित आधार के साथ हुई देरी के लिये उचित स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिये।