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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
«14-Apr-2025
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह कौन हैं?
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह का जन्म 20 जनवरी 1963 को हुआ था। उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्षों को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित रूप से बिताया।
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह का करियर कैसा रहा?
- न्यायमूर्ति चंक्रधारी शरण सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
- उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।
- उन्होंने 30 अक्टूबर, 1990 को एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया।
- उन्होंने केंद्र सरकार के लिये अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में कार्य किया।
- बाद में उन्हें बिहार सरकार के लिये अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया गया।
- उन्हें 2 नवंबर, 2023 को उड़ीसा उच्च न्यायालय के 34वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित किया गया था।
- उन्होंने 7 फरवरी, 2024 को उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की।
न्यायमूर्ति चंक्रधारी शरण सिंह के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- रजिस्ट्रार न्यायिक, उड़ीसा उच्च न्यायालय बनाम ओडिशा राज्य (2024):
- मुख्य न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह और न्यायमूर्ति सावित्री राठो की खंडपीठ ने एक स्वप्रेरित जनहित याचिका पर सुनवाई की।
- यह मामला एक सेना अधिकारी और उसकी मंगेतर से संबंधित था, जिन्हें एक पुलिस अधिकारी की हत्या के प्रयत्न के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
- यह घटना तब हुई जब दंपति प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने के लिये पुलिस स्टेशन गए थे।
- मामले के अन्वेषण के लिये उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सी.आर. दाश को अन्वेषण आयोग का नेतृत्व करने के लिये नियुक्त किया गया था।
- न्यायालय ने राज्य भर के पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरों की कमी की समस्या की पहचान की।
- न्यायालय ने अधिकारियों को राज्य भर के सभी पुलिस स्टेशनों और चौकियों में उचित ढंग से CCTV कैमरे लगाने का निदेश दिया।
- इस निदेश के अनुपालन की समय सीमा 31 मार्च, 2025 निर्धारित की गई थी।
- बिनया कुमार नाइक बनाम संजय कुमार नाइक (2024):
- इस वाद में माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) के अधीन एक आवेदन शामिल था।
- आवेदन में पक्षकारों के बीच विवाद के निपटान हेतु मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की गई थी।
- विवाद कॉपीराइट उल्लंघन से संबंधित था।
- इस मामले की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह ने की।
- न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि किसी विशिष्ट व्यक्ति के विरुद्ध कॉपीराइट उल्लंघन से संबंधित विवाद मध्यस्थता योग्य हैं।
- निर्णय ने पुष्टि की कि ऐसे विवादों के लिये माध्यस्थम् अधिनियम की धारा 11 के अधीन मध्यस्थ नियुक्त किया जा सकता है।
- ओडिशा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम ओडिशा राज्य (2024):
- न्यायालय ने ओडिशा चिकित्सा पंजीकरण परिषद के अध्यक्ष को 05 मार्च 2024 को दोपहर 2:00 बजे व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निदेश दिया।
- फर्जी डॉक्टरों के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये उनकी राय जानने के लिये उपस्थिति आवश्यक थी।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि वैध डिग्री/प्रमाणपत्र के बिना डॉक्टर के रूप में अभ्यास करना एक आपराधिक अपराध है।
- सुझाया गया समाधान लोक सत्यापन के लिये राज्य के सभी चिकित्सकों का एक व्यापक ऑनलाइन डेटाबेस बनाना था।
- यह डेटाबेस एलोपैथिक दवाएं देने वाले फर्जी डॉक्टरों की पहचान करने में सहायता करेगा।
- न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों ने पिछले आदेशों का पालन नहीं किया है।
- उक्त मामले को दिनांक 05 मार्च 2024 को पुनः सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया गया।
- यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मोहम्मद अहमद बेग (2024)
- न्यायालय ने केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम, 1972 के नियम 39(2) की जांच की, जो किसी सरकारी कर्मचारी के निलंबन के दौरान या लंबित अनुशासनात्मक/आपराधिक कार्यवाही के साथ सेवानिवृत्त होने पर अर्जित अवकाश नकदीकरण को रोकने की अनुमति देता है।
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ता-प्राधिकरण यह साक्ष्य देने में असफल रहा कि प्रतिवादी 31 जुलाई 2017 (सेवानिवृत्ति की तारीख) को निलंबित था या किसी कार्यवाही का सामना कर रहा था।
- चूंकि ये शर्तें पूरी नहीं हुई थीं, इसलिये अधिकारियों के पास अवकाश नकदीकरण को रोकने का कोई विधिक आधार नहीं था।
- याचिकाकर्त्ता-प्राधिकरण तीसरे MACP लाभ से संबंधित अतिरिक्त संदाय की वसूली को उचित ठहराने वाला आदेश भी पेश करने में असफल रहा।
- न्यायाय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता-प्राधिकरण ने अवकाश नकदीकरण राशि में कटौती के लिये विधिक आदेश पारित न करके अनुचित तरीके से काम किया।
- न्यायालय ने झारखंड राज्य बनाम जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव (2013) 12 एससीसी 210 मामले का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया कि सांविधिक समर्थन के बिना अवकाश नकदीकरण रोकना वैध नहीं है।