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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह

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 09-Oct-2024

प्रतिभा एम. सिंह कौन हैं?

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज, बंगलुरु से अपना 5 वर्षीय लॉ कोर्स पूरा किया। उन्हें कैम्ब्रिज कॉमनवेल्थ ट्रस्ट द्वारा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (U.K.) में एलएल.एम (LL.M) की पढ़ाई करने के लिये ODASS छात्रवृत्ति प्रस्तुत की गई थी।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह का कॅरियर कैसा रहा?

  • उन्होंने वर्ष 1991 में बार एसोसिएशन में पंजीकरण कराया।
  • उच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से पूर्व वह एक अग्रणी बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के मामलों की अधिवक्ता थीं।
  • सिंह एंड सिंह की प्रबंध भागीदार होने के रूप में, उन्होंने मुवक्किलों को सलाह दी और वाणिज्यिक विवादों, मध्यस्थता, मीडिया कानून आदि विषयों से संबंधित मामलों की पैरवी की।
  • उन्हें पेटेंट अधिनियम 2002, कॉपीराइट संशोधन अधिनियम, 2012, भौगोलिक संकेत अधिनियम आदि में संशोधन पर विचार करने वाली संसदीय समितियों के समक्ष विचार प्रस्तुत करने के लिये एक विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया गया था।
  • वह IPR थिंक टैंक की सदस्य थीं, जिसे भारत की पहली ‘राष्ट्रीय IPR नीति’ का मसौदा तैयार करने का महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था, जिसे मई, 2015 में लागू किया गया था।
  • IP ​​कानून के विकास में उनके योगदान को मैनेजिंग IP द्वारा मान्यता दी गई, जो एक प्रमुख वैश्विक प्रकाशन है, जिसने उन्हें लगातार दो वर्षों 2021, 2022 के लिये 'IP में 50 सबसे प्रभावशाली लोगों' में शामिल किया है।
  • वह पहली भारतीय न्यायाधीश हैं जिन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ह्यूजेस हॉल का मानद फेलो चुना गया।

प्रतिभा एम. सिंह के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • यूनिवर्सल सिटी स्टूडियोज़ एलएलसी और अन्य बनाम डॉटमूवीज़ बेबी और अन्य (2023):
    • इस मामले में न्यायालय ने ‘गतिशील + व्यादेश’ की अवधारणा विकसित की।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह के माध्यम से कहा कि:
      • कई वेबसाइटों द्वारा किये जाने वाले अतिलंघन की गतिशील प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये, इस न्यायालय ने कॉपीराइट किये गए कार्यों को बनाए जाने के तुरंत बाद संरक्षित करने के लिये यह 'डायनेमिक+ व्यादेश' जारी करना उचित समझा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कॉपीराइट किये गए कार्यों के लेखकों और मालिकों को कोई अपूरणीय क्षति न हो, क्योंकि फिल्मों/शो/सीरीज़ आदि के तुरंत बाद कार्यों को ठगने वाली वेबसाइटों या उनके नए संस्करणों पर अपलोड किये जाने की आसन्न संभावना होती है।
    • न्यायालय ने कहा कि सामान्य मामलों में न्यायालय पहले कार्य की पहचान करता है, फिर कॉपीराइट निर्धारित करता है और उसके बाद व्यादेश प्रदान करता है। हालाँकि ठगने वाली वेबसाइटों के कारण व्यादेश पारित करने की आवश्यकता होती है जो वादी के लिये भी गतिशील हो।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि भविष्य के कार्यों के लिये व्यादेश दिया जा सकता है।
  • डोमिनोज़ आईपी होल्डर एलएलसी और अन्य बनाम एमएस डोमिनिक पिज्ज़ा और अन्य (2022):
    • इस मामले में वादी डोमिनोज़ आईपी होल्डर एलएलसी था। उन्होंने ट्रेडमार्क के अतिलंघन को रोकने के लिये स्थायी व्यादेश के लिये वाद दायर किया था।
    • इस मामले में वादी ने 'डोमिनोज़ पिज्ज़ा' चिह्न और उसके साथ लगे डिवाइस चिह्न, लोगो चिह्न तथा 'चीज़ बर्स्ट' तथा 'पास्ता इटालियनो' चिह्नों के संरक्षण की मांग की थी।
    • दूसरी ओर प्रतिवादी ‘मेसर्स डोमिनिक पिज्ज़ा’ था, जिसके कुल तीन आउटलेट थे।
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि प्रतिस्पर्द्धी चिह्न भ्रामक हैं तथा एक-दूसरे की नकल करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने माना कि गूगल रिव्यूज़ पर उपभोक्ताओं की समीक्षा भी इस बात की पुष्टि करती है कि इसमें बहुत अधिक भ्रम होता है तथा वादी के ब्रांड की छवि को बहुत क्षति पहुँची है।
    • तद्नुसार, दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला वादी के पक्ष में है, सुविधा का संतुलन वादी के पक्ष में है और यदि कोई व्यादेश नहीं दिया गया तो अपूरणीय क्षति होगी।
  • हमदर्द नेशनल फाउंडेशन (भारत) एवं अन्य बनाम अमेज़न इंडिया लिमिटेड एवं अन्य (2022): 
    • इस मामले में वाद वादी ‘रूह अफज़ा’ द्वारा दायर किया गया था, जो विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं, तेलों, सिरप और गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों के निर्माण के व्यवसाय में लगे हुए हैं।
    • वादी का मामला यह है कि ई-कॉमर्स वेबसाइट अमेज़न पर "रूह अफज़ा" नाम से कई उत्पाद बेचे जा रहे हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि जब तक उपभोक्ता को वास्तव में उत्पाद प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि बेचा जा रहा उत्पाद वादी का है या नहीं।
    • इसका उपभोक्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और इसलिये न्यायालय ने इस मामले में व्यादेश प्रदान किया।
  • अंजू जैन एवं अन्य बनाम मेसर्स डब्ल्यूटीसी नोएडा डेवलपमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (2024): 
    • न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता समझौते से उत्पन्न होने वाली कार्यवाही पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय का निर्धारण करने के प्रयोजनों के लिये 'सीट' शब्द का प्रयोग अनिवार्य नहीं है।
    • न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में सीट और स्थल के बीच कोई द्वैधता नहीं होगी जहाँ अधिकारिता को मध्यस्थता समझौते के अधीन बनाया गया हो।
    • इसके विपरीत कुछ भी न होने की स्थिति में निर्दिष्ट स्थान मध्यस्थता का स्थान होगा।