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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति आर. महादेवन
«02-Dec-2024
न्यायमूर्ति आर. महादेवन कौन हैं?
10 जून, 1963 को चेन्नई में जन्मे न्यायमूर्ति आर. महादेवन का कानूनी कॅरियर शानदार रहा है। चेन्नई से लॉ स्नातक, वे अपनी लगन, विशेषज्ञता और न्यायपालिका में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये जाने जाते हैं।
न्यायमूर्ति आर. महादेवन का कॅरियर कैसा रहा?
- न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने प्रतिष्ठित मद्रास लॉ कॉलेज से अपनी लॉ की डिग्री पूरी की और वर्ष 1989 में तमिलनाडु बार काउंसिल में दाखिला लिया।
- उन्होंने 25 वर्षों तक लॉ का अभ्यास किया, जिसमें अप्रत्यक्ष करों, सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क में विशेषज्ञता हासिल की, साथ ही उन्होंने सिविल, आपराधिक और रिट न्यायालयों में भी मामले संभाले।
- न्यायमूर्ति महादेवन ने कई उल्लेखनीय सरकारी पदों पर कार्य किया, जिनमें शामिल हैं:
- तमिलनाडु सरकार के लिये अतिरिक्त सरकारी अभिवक्ता (कर)।
- केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता।
- मद्रास उच्च न्यायालय में भारत सरकार के लिये वरिष्ठ पैनल अधिवक्ता।
- वर्ष 2013 में उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया, जिससे उन्हें व्यापक कानूनी अनुभव और कुशाग्र बुद्धि प्राप्त हुई।
- 24 मई, 2024 को उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया, जिससे उन्होंने अपने नेतृत्व और न्यायिक विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया।
- मद्रास उच्च न्यायालय में उनका कार्यकाल निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णयों से चिह्नित था, जिसने तमिलनाडु में न्याय के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्होंने 18 जुलाई, 2024 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
न्यायमूर्ति आर. महादेवन के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- गोकुल अभिमन्यु बनाम भारत संघ (2024)
- अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) के लिये आवेदन शुल्क कम करने हेतु बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश देने के लिये एक रिट याचिका दायर की गई थी।
- यह याचिका याचिकाकर्त्ता द्वारा 19 जनवरी, 2024 को दिये गए अभ्यावेदन पर आधारित थी।
- न्यायमूर्ति आर. महादेवन और न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन की खंडपीठ ने कहा कि नामांकन शुल्क के विपरीत, परीक्षा शुल्क के लिये कोई विशिष्ट राशि निर्धारित करने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि BCI द्वारा लिया गया परीक्षा शुल्क 3,500 रुपए है, जिसे उचित तथा अत्यधिक नहीं माना गया।
- आर. राजेश बनाम भारत संघ (2023)
- एक अधिवक्ता ने राष्ट्रीय कंपनी लॉ बोर्ड द्वारा अधिवक्ताओं के लिये ड्रेस कोड लागू करने के आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।
- याचिकाकर्त्ता ने मांग की कि इस आदेश को अधिकारहीन, अमान्य तथा अवैधानिक और मनमाना घोषित किया जाए।
- खंडपीठ ने कहा कि उक्त आदेश बिना किसी अधिकार के जारी किया गया था और अवैध है।
- न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि अधिकरणों को उनके समक्ष उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं के लिये ड्रेस कोड निर्धारित करने का अधिकार नहीं है।
- पीपुल्स वॉच बनाम गृह सचिव (2023)
- तमिलनाडु जेल नियम, 1983 के नियम 507 के अनुसार, जेलों में प्रशिक्षित और कुशल गैर-सरकारी आगंतुकों की नियुक्ति का अनुरोध करते हुए एक याचिका दायर की गई थी।
- इन आगंतुकों का काम कैदियों की शिकायतों का समाधान करना तथा सुधारात्मक प्रशासन को बेहतर बनाने में सहायता करना था।
- न्यायालय ने बेहतर वातावरण बनाने और जेल संस्कृति में सुधार लाने के लिये जेल सुधारों की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया।
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कैदियों को जेल में रहते हुए भी सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिये।
- न्यायालय ने जेल प्रशासन में सुधार लाने तथा आवश्यक सुधारों को लागू करने के लिये प्राधिकारियों को विनिर्दिष्ट निर्देश जारी किये।
- वी.एस.जे. दिनाकरन बनाम सी.आई.टी. (2022)
- अपील में रिट याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई थी जिसमें आयकर उपायुक्त के आदेश को बरकरार रखा गया था।
- यह मामला बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 की धारा 24 के तहत कार्यवाही से संबंधित था।
- इस धारा के अंतर्गत, कार्रवाई करने के लिये लेनदेन के बेनामी होने के बारे में केवल प्रथम दृष्टया राय (प्रारंभिक उचित विश्वास) की आवश्यकता होती है।
- न्यायमूर्ति आर. महादेवन और न्यायमूर्ति सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने पाया कि इस मामले में प्रथम दृष्टया ऐसी राय वैध रूप से बनाई गई थी।
- न्यायालय ने संपत्ति की अनंतिम कुर्की जारी रखने के उपायुक्त के आदेश को बरकरार रखा।