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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल
«25-Nov-2024
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल कौन हैं?
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल स्वर्गीय न्यायमूर्ति पुष्प राज मृदुल के पुत्र हैं। उन्होंने आर्मी पब्लिक स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय के कैंपस लॉ सेंटर से लॉ की डिग्री प्राप्त की।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल का कॅरियर कैसा रहा?
- न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने 24 जुलाई, 1986 को दिल्ली बार काउंसिल में अपना नामांकन कराया।
- बाद में उन्हें 13 मार्च, 2008 को दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
- 26 मई, 2009 को उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया।
- उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने 5 जुलाई, 2023 को मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद के लिये न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की सिफारिश की।
- तीन महीने के विचार-विमर्श के बाद विधि एवं न्याय मंत्रालय ने सिफारिश को मंज़ूरी दे दी और 16 अक्तूबर, 2023 को उनकी नियुक्ति अधिसूचित कर दी।
- न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने 20 अक्तूबर, 2023 को मणिपुर उच्च न्यायालय के 7वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- अरिबम धनंजय शर्मा बनाम मणिपुर राज्य (2023)
- मुख्य न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति गोलमेई गैफुलशिलु काबुई की पीठ ने मणिपुर सरकार को ग्रेटर इंफाल क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं की बहाली के संबंध में समीक्षा समिति के विचार-विमर्श और निर्णयों वाली मूल फाइल पेश करने का निर्देश दिया।
- पीठ ने राज्य को आदेश दिया कि वह ग्रेटर इंफाल क्षेत्र में इंटरनेट सेवाएँ तुरंत बहाल करने की व्यवहार्यता के बारे में न्यायालय को सूचित करे।
- न्यायालय ने राज्य को इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध जारी रखने की अनुमति केवल तभी दी जब सक्षम प्राधिकारी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में आवश्यक और समीचीन समझे।
- मणिपुर राज्य बनाम ल्हाइनिकिम ल्हौवुम (2024)
- इस मामले में न्यायालय ने जजबीर सिंह बनाम राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (2023) में उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित सिद्धांत को दोहराया।
- न्यायालय ने कहा कि किसी कानून के तहत मंज़ूरी की आवश्यकता अपराध का संज्ञान लेते समय विचार की जाने वाली बात है, न कि पूछताछ या जाँच के दौरान।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जाँच और अभियोजन के चरणों के बीच स्पष्ट अंतर है तथा संज्ञान अपराध का लिया जाता है, अपराधी का नहीं।
- नीरज वार्ष्णेय बनाम वित्त मंत्रालय राजस्व विभाग (2022)
- यह मामला एक आपराधिक रिट याचिका से संबंधित था जिसमें विदेशी मुद्रा संरक्षण एवं तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 (COFEPOSA) के तहत जारी किये गए निरोध आदेश को चुनौती दी गई थी।
- न्यायालय ने बंदी की प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा निरोध आदेश को रद्द कर दिया।
- न्यायालय ने माना कि निरोध अधिकारी ने बंदी को उसकी निरोध के आधारों का विवरण देने वाले अनुवादित और सुपाठ्य दस्तावेज़ उपलब्ध कराने में असफलता पाई, जो प्रक्रियागत आवश्यकताओं का उल्लंघन है।
- शराफत शेख बनाम UOI (2022)
- इस मामले में बंदी ने संविधान के अनुच्छेद 22(5) के उल्लंघन का हवाला देते हुए अपने निरोध आदेश को रद्द करने की मांग की।
- न्यायालय ने निरोध आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह संवैधानिक आदेशों का उल्लंघन करता है।
- इस निर्णय का कारण यह था कि बंदी अशिक्षित था, तथा उसे निरोध आदेश हिन्दी या किसी अन्य स्थानीय भाषा में नहीं समझाया गया था, जिसे वह समझ सके।