न्यायमूर्ति एस.वी. भट्टी
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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति एस.वी. भट्टी

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 23-Aug-2024

परिचय:

न्यायमूर्ति एस.वी. भट्टी का जन्म 6 मई 1962 को चित्तूर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने जगद्गुरु रेणुकाचार्य कॉलेज, बैंगलोर से विधि स्नातक की उपाधि ग्रहण की।

कॅरियर:

  • न्यायमूर्ति एस.वी. भट्टी ने 21 जनवरी 1987 को एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया तथा बाद में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में विधिक व्यवसाय प्रारंभ की।
  • उन्होंने वर्ष 2000 से वर्ष 2003 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में महाधिवक्ता के कार्यालय में एक विशेष सरकारी अधिवक्ता के रूप में कार्य किया।
  • न्यायमूर्ति एस.वी. भट्टी को 1 जून 2014 को तेलंगाना राज्य एवं आंध्र प्रदेश राज्य के लिये हैदराबाद में न्यायिक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन के बाद, उन्हें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया तथा बाद में उन्हें केरल उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • उन्होंने 19 मार्च 2019 को केरल उच्च न्यायालय में पदभार ग्रहण किया।
  • बाद में उन्हें 1 जून 2023 से केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
  • अंततः 14 जुलाई 2023 को उन्होंने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
  • उनकी नियुक्ति से आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय को बहुत आवश्यक प्रतिनिधित्व मिला, क्योंकि मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना के सेवानिवृत्त होने के बाद पीठ में इसका कोई प्रतिनिधित्व नहीं था।

उल्लेखनीय निर्णय:

  • विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से एच. वसंती बनाम ए. संथा (मृत) और अन्य के माध्यम से (2023)
    • इस मामले में वाद इस आधार पर घोषणा की राहत के लिये संस्थित किया गया था कि वादी, एक महिला, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की संशोधित धारा 29 A के अंतर्गत सहदायिक है।
    • न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या संपत्ति विभाजन के लिये उपलब्ध सहदायिक संपत्ति थी।
    • इस मुद्दे का उत्तर देते हुए न्यायालय ने माना कि विधि की आवश्यकता का विधिवत अनुपालन करके लिखित रूप में साधन के अतिरिक्त किसी अन्य माध्यम से विभाजन को प्रभावी करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • डॉ. कविता यादव बनाम सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (2023):
    • इस मामले में 3 न्यायाधीशों की पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्णय के विरुद्ध अपील पर विचारण कर रहा था, जिसमें मातृत्व लाभ को मात्र 11 दिन की अवधि तक सीमित कर दिया गया था, क्योंकि संविदा की अवधि समाप्त हो रही थी।
    • न्यायालय ने पाया कि मातृत्त्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 12 (2) (a) में गर्भावस्था के दौरान बर्खास्त या सेवामुक्त की गई कर्मचारी के लिये भी पात्रता की बात कही गई है।
    • इस प्रकार, विधि में ही रोज़गार की अवधि से परे अवधि के लिये लाभ बढ़ाने का प्रावधान है।
    • न्यायालय ने इस मामले में माना कि मातृत्त्व लाभ संविदात्मक रोज़गार की अवधि से आगे भी बढ़ सकता है तथा इसलिये लाभ की अवधि संविदात्मक रोज़गार की अवधि से आगे निकल सकती है।
  • सरन्या बनाम ज्योति बसु (2020):
    • केरल उच्च न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा 6 वर्षीय बच्चे की अभिरक्षा के विषय में था।
    • केरल उच्च न्यायालय ने माना कि बच्चे की अभिरक्षा तय करते समय बच्चे का कल्याण सर्वोपरि विचारणीय बिंदु है।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि बच्चे की माँ को गर्मी की छुट्टियों के दौरान प्रत्येक माह 15 दिन तथा त्योहारों के दौरान 5 दिन के लिये बच्चे की देखभाल करनी होगी, इसके अतिरिक्त प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को भी बच्चे की देखभाल करनी होगी।
  • PRS अस्पताल बनाम पी. अनिल कुमार (2020):
    • केरल न्यायालय के समक्ष मुद्दा लापरवाही के मामलों में रेस इप्सा लोक्विटर के सिद्धांत के अनुप्रयोग के विषय में था।
    • इस मामले में कथित पीड़ित 29 साल के स्वस्थ युवक के रूप में गुर्दे से पथरी निकालने हेतु मामूली प्रक्रिया से गुज़रने के लिये अस्पताल के अंदर आया था।
    • हालाँकि सर्जरी के बाद उनकी बोलने की क्षमता चली गई।
    • केरल उच्च न्यायालय ने माना कि रेस इप्सा लोक्विटर के सिद्धांत के अनुसार, अस्पताल अकेले ही उपेक्षा के आरोप की व्याख्या कर सकता था।
    • यह माना गया कि अस्पताल उपेक्षा के तत्त्व को सिद्ध करने में विफल रहा।