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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान
«18-Nov-2024
न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान कौन हैं?
न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान का जन्म 10 अप्रैल, 1963 को हुआ था। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से स्नातक और एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।
न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान का कॅरियर कैसा रहा?
- 6 मार्च, 1990 को उन्हें जम्मू-कश्मीर बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकित किया गया।
- न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय तथा अन्य उच्च न्यायालयों में मध्यस्थता, संवैधानिक कानून, सेवा कानून, चुनाव कानून, सिविल और आपराधिक मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में वकालत की।
- उन्होंने अप्रैल 2008 से 31 दिसंबर, 2011 तक संघ लोक सेवा आयोग, नई दिल्ली के पैनल परामर्शदाता के रूप में कार्य किया।
- उन्हें 8 मार्च, 2013 को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- 16 मई, 2014 को उन्हें जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया।
- अंततः उन्हें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 21 सितंबर, 2024 को उन्होंने शपथ ली।
न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- गज़ेटेड एस्पिरेंट्स रेज़िडेंट्स ऑफ लद्दाख बनाम राज्य (केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख) (2024)
- जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक पत्र, जिसे सोशल मीडिया पर साझा किया गया, में पिछले पाँच वर्षों में लद्दाख में राजपत्रित कैडर पदों पर भर्ती की कमी पर प्रकाश डाला गया।
- इस मुद्दे ने लद्दाख के शिक्षित युवाओं में संकट और अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है।
- मुख्य न्यायाधीश ताशी राबस्तान और न्यायमूर्ति पुनीत गुप्ता की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि संबंधित पत्र (Concern Letter) को जनहित याचिका (PIL) के रूप में माना जाए।
- ऐजाज़ अहमद बंड बनाम राज्य (जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश) (2024)
- केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और कल्याण के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई।
- जनहित याचिका में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये चिकित्सा देखभाल, पेंशन लाभ और सार्वजनिक क्षेत्र में संभावित आरक्षण तक पहुँच पर ज़ोर दिया गया।
- मुख्य न्यायाधीश ताशी राबस्तान और न्यायमूर्ति पुनीत गुप्ता की खंडपीठ ने इन मुद्दों के समाधान के लिये अधिकारियों से अनुपालन और कार्य योजनाओं की मांग की।
- पारस कपूर बनाम राज्य (जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश) (2022)
- एक बार जब कोई व्यक्ति अनुकंपा नियुक्ति स्वीकार कर लेता है और संबंधित पद पर कार्य करना शुरू कर देता है, तो वह बाद में यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उच्चतर पद पर नियुक्त किया जाना चाहिये था।
- अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदक को किसी विशेष वर्ग या समूह में नियुक्ति का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।
- अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को दर्जा प्रदान करना नहीं है, बल्कि कमाने वाले सदस्य की मृत्यु की स्थिति में परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है।
- नियुक्ति प्राधिकारी को पद की योग्यताओं और आवश्यकताओं के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के लिये उपयुक्त पद निर्धारित करने का विवेकाधिकार प्राप्त है।
- मियाँ अब्दुल कयूम बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य (2020)
- यह मामला वरिष्ठ अधिवक्ता और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियाँ अब्दुल कयूम पर आधारित था।
- उन्हें 2010 में विभिन्न उप-जेलों में हिरासत में रखा गया था और बाद में यह आदेश वापस ले लिया गया था। अगस्त 2019 में उन्हें फिर से निवारक हिरासत में लिया गया।
- रिश्तेदारों को हिरासत में लिये गए व्यक्ति के दस्तावेज़ प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ा तथा बताया गया है कि हिरासत में लिये गए व्यक्ति को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं।
- न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान ने स्पष्ट किया कि निवारक निरोध का मुख्य उद्देश्य भविष्य में संभावित कार्रवाइयों को रोकना है, न कि किसी को दंडित करना।