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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति विभु बाखरू
«10-Dec-2024
न्यायमूर्ति विभु बाखरू कौन हैं?
न्यायमूर्ति विभु बाखरू का जन्म वर्ष 1966 में नागपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली पब्लिक स्कूल, मथुरा रोड, नई दिल्ली से की।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू का कॅरियर कैसा रहा?
- न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने वर्ष 1990 में एलएल.बी. की डिग्री पूरी की, जो उनकी कानूनी शिक्षा की शुरुआत थी।
- सितंबर 1990 में उन्होंने दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया और आधिकारिक रूप से अपना कानूनी कॅरियर शुरू किया।
- अपने प्रारंभिक व्यावसायिक वर्षों के दौरान, उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय, कंपनी लॉ बोर्ड और विभिन्न अन्य अधिकरणों सहित कई न्यायिक मंचों में वकालत की।
- 28 जुलाई, 2011 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी कानूनी विशेषज्ञता को मान्यता देते हुए उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया, जो कानूनी पेशे में एक प्रतिष्ठित मान्यता है।
- 17 अप्रैल, 2013 को न्यायमूर्ति बाखरू को दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, जिससे वे एक प्रैक्टिसिंग वकील से न्यायिक भूमिका में आ गए।
- 18 मार्च, 2015 को उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, जिससे न्यायिक प्रणाली में उनकी स्थिति मज़बूत हुई।
- न्यायमूर्ति मनमोहन की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के बाद, न्यायमूर्ति विभु बाखरू को 3 दिसंबर, 2024 को दिल्ली उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
न्यायमूर्ति विभु बाखरू के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- इकोग्रीन एनर्जी ग्वालियर प्राइवेट लिमिटेड बनाम नगर निगम आयुक्त, ग्वालियर (2022)
- दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने मध्यस्थता के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें विशेष रूप से मध्यस्थता के स्थान के निर्धारण पर ध्यान दिया गया।
- मुख्य कानूनी मुद्दा मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये क्षेत्रीय अधिकारिता के बारे में था, जिसमें प्रतिवादी ने तर्क दिया कि समझौते में निर्दिष्ट मध्यस्थता स्थान के कारण केवल ग्वालियर के न्यायालयों को ही अधिकारिता प्राप्त है।
- न्यायमूर्ति बाखरू ने निर्णय सुनाया कि जब पक्षकार मध्यस्थता के स्थान पर स्पष्ट रूप से सहमत हो जाते हैं, तो केवल उस विशिष्ट स्थान पर स्थित न्यायालयों को ही मध्यस्थता समझौते से उत्पन्न मामलों को निपटाने का क्षेत्राधिकार होगा।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मध्यस्थ संस्थाओं के नियम प्रक्रियात्मक होते हैं तथा वास्तविक मध्यस्थता समझौते से गौण होते हैं, तथा वे स्वतंत्र रूप से मध्यस्थता का स्थान निर्धारित नहीं करते हैं।
- X बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) (2020)
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाह का वचन यौन गतिविधि के लिये प्रलोभन नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब संबंध लंबे, अनिश्चित काल तक जारी रहे।
- न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने इस बात पर ज़ोर दिया कि झूठे विवाह के वचन पर आधारित बलात्कार के आरोप को कायम रखने के लिये दो शर्तें पूरी होनी चाहिये:
- विवाह का वचन झूठा और बुरे आशय से किया गया होना चाहिये।
- झूठा वचन सीधे तौर पर महिला की यौन गतिविधि में शामिल होने के निर्णय से जुड़ा होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि काफी समय तक अंतरंग संबंध जारी रखना अनैच्छिक या केवल विवाह के वचन से प्रेरित नहीं माना जा सकता।
- मधु कोड़ा बनाम CBI के माध्यम से राज्य (2020)
- न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(d) का स्थान लेता है, इसके अधिनियमन से पहले किये गए अपराधों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होता है।
- न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार की अवधारणा में स्वाभाविक रूप से बेईमानी और सत्ता का दुरुपयोग शामिल होता है, और संशोधित धारा 13(1)(d) को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- युवा मामले और खेल मंत्रालय बनाम एजिलिटी लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड (2022)
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या मध्यस्थ अधिकरण के समक्ष उठाए गए दावों को खारिज किया जा सकता है, यदि उनका उल्लेख मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 21 के तहत जारी नोटिस में नहीं किया गया हो।
- न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ अधिकरण के समक्ष उठाए गए दावों को केवल इसलिये खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका उल्लेख धारा 21 के नोटिस में नहीं किया गया था।
- नोटिस में दावों का परिमाण बताना आवश्यक नहीं है; इसमें केवल पक्षों के बीच विवादों की रूपरेखा बताने की आवश्यकता है।