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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
एम सी मेहता
« »24-Oct-2023
एम सी मेहता का परिचय -
श्री महेश चंद्र मेहता एक प्रसिद्ध भारतीय पर्यावरण वकील और सक्रिय कार्यकर्त्ता हैं, जिनके अथक प्रयासों ने भारत में पर्यावरण न्यायशास्त्र को प्रमुख रूप से प्रभावित किया है। उनका जन्म 12 दिसंबर, 1946 को राजौरी, जम्मू-कश्मीर में हुआ था। एम सी मेहता ने अपना कानूनी व्यवसाय पर्यावरण की सुरक्षा के लिये समर्पित कर दिया और कई ऐतिहासिक मामलों में उनकी भागीदारी ने देश के पर्यावरण परिदृश्य को आकार दिया है। उन्हें भारत का ग्रीन एवेंजर भी कहा जाता है। उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान एवं कानून में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में अपनी प्रैक्टिस शुरू की।
एक पर्यावरणविद् के रूप में एम सी मेहता की यात्रा
- पर्यावरण सक्रियता में एम सी मेहता की यात्रा वर्ष 1980 के दशक की शुरुआत में हुई, जब उन्होंने गंगा नदी के प्रदूषण के संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की।
- पर्यावरण संबंधी मुकदमेबाजी के प्रति उनका दृष्टिकोण जनहित याचिकाओं का उपयोग है, यह एक ऐसी वैधानिक क्रियाविधि है, जो किसी भी नागरिक को लोकहित में मामला दायर करने की अनुमति देता है।
- वह जनहित याचिकाओं के माध्यम से विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने तथा अधिकारियों को उनके कार्यों या निष्क्रियता के लिये जवाबदेह ठहराने में सक्षम रहे हैं।
- सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी न्याय के लिये एक उपकरण के रूप में कानूनी प्रणाली के उनके उपयोग ने भारत में जनहित याचिका के लिये एक मिसाल कायम की है।
- हालाँकि, उनका काम चुनौतियों भरा रहा है।
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- भारत में पर्यावरण संबंधी मामलों में प्राय: शक्तिशाली औद्योगिक हितों, नौकरशाही बाधाओं एवं प्रणालीगत मुद्दों का सामना करना शामिल होता है।
- प्रदूषण फैलाने वालों को जवाबदेह ठहराने के उनके निरंतर प्रयासों के लिये उन्हें आलोचना और यहाँ तक कि धमकियों का भी सामना करना पड़ा।
एम सी मेहता के उल्लेखनीय मामले
- एम सी मेहता बनाम भारत संघ (1986):
- इस मामले को ओलियम गैस रिसाव मामले के नाम से भी जाना जाता है।
- दिल्ली में श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री से ओलियम गैस के रिसाव को लेकर एम सी मेहता ने SC में मामला दायर किया है।
- इस मामले ने पर्यावरण कानून में "पूर्ण दायित्व" की अवधारणा का विकास किया, जिससे लापरवाही की परवाह किये बिना उद्योगों को उनके संचालन से होने वाले किसी भी नुकसान के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया।
- एम सी मेहता बनाम भारत संघ (1988):
- एम सी मेहता ने औद्योगिक और मल निर्वहन के कारण गंगा नदी के प्रदूषण को संबोधित करने के लिये एक मामला दायर किया।
- न्यायालय ने नदी के सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व पर ज़ोर देते हुए प्रदूषण को नियंत्रित करने तथा गंगा की गुणवत्ता में सुधार के लिये कई निदेश जारी किये।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि "शवों और अधजले शवों को गंगा नदी में फेंकने की प्रथा को शीघ्र समाप्त किया जाना चाहिये"।
- एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1996):
- इसे ताज ट्रैपेज़ियम केस के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मामला भारत के आगरा स्थित ताजमहल के आसपास पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण पर केंद्रित था।
- उच्चतम न्यायालय ने ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन में वायु प्रदूषण और औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये विभिन्न निर्देश जारी किये, जिसका उद्देश्य प्रतिष्ठित स्मारक को संरक्षित करना था, जिसमें ताज परिसर के भीतर काम करने वाले सभी एम्पोरिया/वाणिज्य स्थान और दुकानों को बंद करने के साथ-साथ कामगारों को अधिकार देना भी शामिल था।
- एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1992):
- इसे स्टोन क्रशिंग यूनिट केस के नाम से भी जाना जाता है।
- एम. सी. मेहता ने हरियाणा में स्टोन क्रशिंग यूनिट्स के संचालन को लेकर मामला दायर किया था।
- न्यायालय ने पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन कर संचालित स्टोन क्रेशरों को बंद करने का निदेश दिया और इन यूनिट्स से होने वाले वायु और जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये सख्त नियम लागू किये।
- एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य (1996):
- इसे बाल श्रम मामले के नाम से भी जाना जाता है।
- उच्चतम न्यायालय ने माचिस फैक्ट्रियों के साथ-साथ अन्य खतरनाक फैक्ट्रियों में बाल श्रम की निगरानी हेतु एक समिति का गठन किया।
- समिति ने बाल श्रम के कारण होने वाली घातक दुर्घटनाओं को रोकने के लिये कई सिफारिशें की।
- समिति ने सिफारिश की कि तमिलनाडु राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिये निदेशित किया जाना चाहिये कि बच्चों को आतिशबाजी कारखानों में काम न करने दिया जाए।
- समिति ने 6 घंटे काम करने, बच्चों को केवल पैकिंग कार्य में नियोजित करने, विश्राम की सुविधाएँ, समाजीकरण और शिक्षा, बीमा आदि की भी सिफारिश की।
- एम.सी. मेहता बनाम कमलनाथ एवं अन्य (2002):
- उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुकरणीय क्षति के सिद्धांत को पहली बार इस मामले में लागू किया गया था।
- न्यायालय ने कहा कि न्यायालय पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिये भुगतान किये जाने वाले नुकसान के अलावा अनुकरणीय क्षति भी लगाएगा ताकि यह दूसरों के लिये किसी भी तरह से प्रदूषण न फैलाने के लिये एक निवारक के रूप में कार्य कर सके।
- न्यायालय ने न केवल पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये "प्रदूषक भुगतान सिद्धांत" को लागू किया, बल्कि पर्यावरणीय क्षरण को बहाल करने की लागत भी लागू की ताकि क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी को उलटा किया जा सके।
- उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण मामलों में सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत के महत्त्व को पहचाना।
- न्यायालय ने माना कि राज्य, प्राकृतिक संसाधनों के न्यासी के रूप में, जनता के लाभ के लिये इन संसाधनों की रक्षा और संरक्षण करने हेतु बाध्य है।
- एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (2002):
- इसे दिल्ली वाहन प्रदूषण मामला (1998) के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मामला दिल्ली में वाहन प्रदूषण की बढ़ती समस्या के समाधान के लिये दायर किया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने राजधानी में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये वाहनों के उत्सर्जन को विनियमित करने, संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के उपयोग को बढ़ावा देने और सार्वजनिक परिवहन में सुधार करने के निदेश जारी किये।