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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
एम एम सुंदरेश
« »16-Oct-2023
जस्टिस एम एम सुंदरेश
जस्टिस एम एम सुंदरेश, न्यायिक उत्कृष्टता का प्रतिमान माना जाता है, जो उन गुणों का प्रतीक हैं जो कानूनी क्षेत्र में एक दिग्गज को परिभाषित करते हैं। उनका जन्म 21 जुलाई, 1962 को श्री वी.के. मुथुसामी के घर हुआ था, जो मद्रास उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे। उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्हें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन वी रमन्ना द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा नियुक्त किया गया था। वे एक पर्यावरण-हितैषी न्यायाधीश के रूप में प्रसिद्ध हैं।
करियर
- न्यायाधीश एम एम सुंदरेश ने वर्ष 1985 में एक अधिवक्ता के रूप में नामाँकित हुए और वर्ष 1991 से वर्ष 1996 तक सरकारी अधिवक्ता के रूप में कार्य किया।
- 31 मार्च, 2009 को वे मद्रास उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए, जिसकी पुष्टि बाद में 29 मार्च, 2011 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में हुई।
- सम्मत रूप से, उन्होंने तमिलनाडु राज्य न्यायिक अकादमी में अध्यक्ष का पद संभाला।
- उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर उनकी पदोन्नति 31 अगस्त, 2021 को हुई।
न्यायाधीश एम एम सुंदरेश के उल्लेखनीय मामले
मद्रास उच्च न्यायालय
- एन. सेल्वाथिरुमल बनाम भारत संघ (2016):
- मुख्य न्यायाधीश एस.के. कौल न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश के नेतृत्व में मद्रास उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने तमिलनाडु में सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों और निज़ी स्कूलों दोनों को राष्ट्रगान के गायन को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्देश दिया।
- सोलैमलाई बनाम तमिलनाडु वन वृक्षारोपण निगम लिमिटेड (2019):
- इस मामले को हाथी अवैध शिकार मामले के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने राज्य में हाथी के अवैध शिकार की जाँच करने का आदेश दिया और वन संरक्षण के लिये समर्पित विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की, जो स्वदेशी प्रजातियों के संरक्षण के लिये सुझाव प्रदान करेगी।
उच्चतम न्यायालय
- भारत संघ बनाम रिया चक्रवर्ती (2021):
- स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS) की धारा 27A के तहत अवैध गतिविधि के लिये वित्तपोषण के सवाल पर बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया था कि "किसी विशेष संव्यवहार या अन्य संव्यवहार हेतु धन प्रदान करना उस गतिविधि का वित्तपोषण नहीं होगा"।
- जस्टिस एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा.
- अबू सलेम अब्दुल कय्यूम अंसारी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022):
- न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की खंडपीठ ने कहा कि 12 अक्तूबर, 2005 को शुरू हुई अबू सलेम की सजा के 25 वर्ष पूर्ण होने पर केंद्र सरकार भारत के राष्ट्रपति को भारत के संविधान 1950 के अनुच्छेद 72 के तहत उनकी शक्तियों का प्रयोग करने और अपीलकर्त्ता को राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ-साथ न्यायालयों की समानता पर आधारित सिद्धांत के संदर्भ में रिहा करने की सलाह देने के लिये बाध्य है।
- सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई (2022):
- न्यायाधीश एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने जमानत की प्रक्रिया के संबंध में अन्वेषण अभिकरणों और न्यायालयों को निर्देश दिये।
- साथ ही उनके द्वारा यह भी निर्देश दिया गया कि भारत सरकार जमानत अधिनियम की प्रकृति में एक अलग अधिनियम लाने पर विचार कर सकती है ताकि जमानत देने को सुव्यवस्थित किया जा सके।
- एम/एस शांति फ्रेगरेंस बनाम भारत संघ (2022):
- न्यायाधीश एम एम सुंदरेश की पाँच सदस्यीय न्यायपीठ ने कहा कि “किसी विशेष दृष्टिकोण को अपनाने वाले न्यायाधीशों की संख्या प्रासंगिक नहीं है, लेकिन न्यायपीठ की शक्ति निर्णय लेने की बाध्यकारी प्रकृति को अवधारित करती है।”
- उपरोक्त पंक्ति से, उच्चतम न्यायालय का तात्पर्य था कि किसी निर्णय में प्रप्तवयता की कोई भूमिका नहीं होगी, उच्च पीठ का निर्णय निम्न पीठ के निर्णय पर प्रभावी होगा।
- जोगी राम बनाम सुरेश कुमार (2022):
- न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की खंडपीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 पर विचार किया।
- न्यायालय ने कहा कि "अगर हम ऐसा मानते हैं तो इसका अर्थ यह होगा कि अगर पत्नी को वसीयत के तहत विरासत से वंचित किया जाता है, तो यह सतत् होगा, लेकिन अगर सीमित संपत्ति प्रदान की जाती है तो यह वसीयतकर्त्ता के आशय के बावज़ूद आत्यंतिक हित में परिपक्व हो जाएगी" .
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश के उल्लेखनीय उद्धरण
- निगरानी के लिये अलग कानून लाने के महत्त्व पर चर्चा करते हुए न्यायाधीश एमएम सुंदरेश ने कहा कि एक संहिताबद्ध कानून होना चाहिये जो अभिकरण को निगरानी के कार्य करने का अधिकार प्रदान करता है। इस प्रकार के कानून को संवैधानिक जनादेश के अधीन होना चाहिये। यह व्यक्तियों की गोपनीयता को संरक्षित करने वाली मनमानी कार्रवाई को रोकेगा।
- ऑनलाइन एजुकेशन पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायाधीश एमएम सुंदरेश ने कहा, "शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, यह किसी की बुद्धि, करुणा, चरित्र का विकास है, जिसके बाद क्रियाओं में परिवर्तन होता है जो शिक्षा को नियत करेगा"।
- आने वाली पीढ़ी के लिये शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा करते हुए न्यायाधीश एम एम सुंदरेश ने कहा, "एक आदमी निर्माता और विनाशक दोनों होता है। इसलिये वह अपना भविष्य स्वयं रचता है। एक बेहतर भविष्य को केवल युवा पीढ़ी के माध्यम से सुरक्षित किया जा सकता है, जो विद्यमान और प्रतीक्षारत है।