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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

संजय किशन कौल

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 04-Oct-2023

न्यायाधीश संजय किशन कौल:

न्यायाधीश संजय किशन कौल, सत्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता एवं न्याय के प्रति गहन प्रतिबद्धता का पर्याय, एक नाम, जिसने भारतीय न्यायपालिका पर एक अमिट छाप छोड़ी है। न्यायाधीश एस. के. कौल का जन्म 26 दिसंबर, 1958 को श्रीनगर में हुआ था तथा वह एक कश्मीरी पंडित समुदाय से संबंधित हैं। वर्तमान में वह भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश तथा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के सदस्य हैं। उन्होंने वर्ष 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से LL.B. की डिग्री प्राप्त की।

आजीविका:

  • उन्होंने 15 जुलाई, 1982 को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन किया और मुख्य रूप से दिल्ली उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय के वाणिज्यिक, सिविल, रिट, मूल और कंपनी क्षेत्राधिकार में अभ्यास किया।
  • वह वर्ष 1987 से वर्ष 1999 तक उच्चतम न्यायालय के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) थे और दिसंबर, 1999 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।
  • उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के लिये वरिष्ठ परामर्शदाता नियुक्त किया गया था, वह भारत संघ के वरिष्ठ पैनल के सदस्य थे, वे दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अतिरिक्त वरिष्ठ स्थायी परामर्शदाता के रूप में भी कार्यरत रहे।
  • उन्हें 03 मई, 2001 को दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया तथा 02 मई, 2003 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
  • उन्होंने 23 सितंबर, 2012 से 25 सितंबर, 2012 तक दो दिनों के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
  • उन्हें 1 जून, 2013 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें 26 जुलाई, 2014 को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें 17.02.2017 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।

न्यायाधीश संजय किशन कौल के उल्लेखनीय मामले:

  • सेवानिवृत्त न्यायाधीश के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (वर्ष 2017):
    • न्यायाधीश एस. के. कौल 9 न्यायाधीशों की उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से कहा था कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 का आंतरिक हिस्सा है।
    • इस मामले से निपटान के दौरान, न्यायाधीश कौल ने 'आनुपातिकता और धर्मजत्व के सिद्धांत' को तैयार करते हुए कहा कि राज्य द्वारा निजता के अधिकार का उल्लंघन करने की संभावना से उत्पन्न होने वाली याचिकाकर्त्ताओं की ओर से व्यक्त की गई चिंताओं को राज्य के विवेक को सीमित करने के लिये सुझाए गए परीक्षणों द्वारा पूरा किया जा सकता है।
      • इस कार्रवाई को विधि द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये;
      • किसी विधि संगत उद्देश्य के लिये लोकतांत्रिक समाज में प्रस्तावित कार्रवाई आवश्यक होनी चाहिये;
      • हस्तक्षेप की सीमा हस्तक्षेप की आवश्यकता के अनुरूप होनी चाहिये;
      • इस प्रकार के हस्तक्षेप के दुरुपयोग के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुनिश्चितता होनी चाहिये।
  • जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता (वर्ष 2018):
    • पूर्व CJI दीपक मिश्रा तथा न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, R.F. नरीमन, एस के कौल और इंदु मल्होत्रा सहित उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने उक्त प्रश्न का समाधान करते हुए कहा कि क्या SC/ST समुदायों के भीतर 'क्रीमी लेयर' को आरक्षण-आधारित पदोन्नति से लाभ उठाने से रोका जाना चाहिये, यह एक सर्वसम्मत रूप से पारित किया गया निर्णय है।
    • पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि एम. नागराज बनाम भारत संघ (वर्ष 2010) में दिये गए फैसले पर पुनर्विचार करने के लिये सात न्यायाधीशों की पीठ की कोई आवश्यकता नहीं है, जो SC/ST व्यक्तियों के लिये आरक्षित पदोन्नति से संबंधित है।
    • न्यायालय ने कहा कि "आरक्षण का पूरा उद्देश्य यह देखना है कि नागरिकों के पिछड़े वर्ग आगे बढ़ें ताकि वे भारत के अन्य नागरिकों के साथ समान आधार पर आगे बढ़ सकें।"
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित ग्रेट पब्लिक इम्पोर्टेंस मामले (वर्ष 2019) के संदर्भ में [In Re: Matter of Great Public Importance touching upon the Independence of Judiciary (2019)]:
    • न्यायाधीश एस. के. कौल ने पूर्व CJI रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप वाले मामले का निपटारा किया।
    • इस मामले में पूर्व CJI एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली कमेटी ने इस मामले पर रिपोर्ट दी।
  • रत्नम सुदेश अय्यर बनाम जैकी काकूभाई श्रॉफ (वर्ष 2021):
    • इस मामले में, न्यायाधीश एस. के. कौल ने यह कहते हुए फैसला सुनाया कि संविदा या व्यवस्थापन विलेख में खंड के रूप में शामिल किये गए सामान्य वाक्यांशों को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) के तहत धारा 34 में कार्यवाही द्वारा शासित कानूनी प्रक्रियाओं को परिवर्तित करने के लिये एक समझौते के रूप में नहीं माना जा सकता है।
  • सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (वर्ष 2021):
    • एस. के. कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी नामक तीन न्यायाधीशों की पीठ ने विधिविरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के अधिकार की उपस्थिति को स्वीकार किया।
    • न्यायालय ने कहा कि "सार्वजनिक मार्गों पर इस तरह का कब्ज़ा, चाहे वह विवादित स्थल पर हो या विरोध प्रदर्शन के लिये कहीं और, स्वीकार्य नहीं है तथा प्रशासन को क्षेत्रीय अतिक्रमण या बाधाओं से मुक्त रखने के लिये कार्रवाई करनी चाहिये"।
  • भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड (वर्ष 2023):
    • न्यायाधीश एस. के. कौल उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने भोपाल गैस त्रासदी के लिये यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन से मुआवज़ा बढ़ाने की मांग करने वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को खारिज़ कर दिया था।
    • पीठ ने कहा कि इस मामले को अब बंद कर देना चाहिये क्योंकि "लिस (lis)को बंद करना भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू था, जो कि भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ और परिदृश्य में और भी अधिक है जहाँ विलंब लगभग अपरिहार्य है"।
  • शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (वर्ष 2023):
    • न्यायाधीश एस. के. कौल की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 142 (1) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए एक न्यायालय के पास इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन (Irretrievable Breakdown) ऑफ़ मैरिज के आधार पर विवाह को भंग करने का अधिकार है।
    • पीठ ने कहा कि इस विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग पक्षों को 'पूर्ण न्याय' प्रदान करने के लिये किया जाना चाहिये।

न्यायाधीश संजय किशन कौल द्वारा कहे गए महत्त्वपूर्ण उद्धरण:

  • न्यायाधीश एस. के. कौल ने लोकतांत्रिक मूल्यों के रुख पर ज़ोर देते हुए कहा, "बहुलवाद लोकतंत्र की आत्मा है।" जिन विचारों से हम घृणा करते हैं उनके लिये स्वतंत्रता होना आवश्यक है, यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। लोकतंत्र की वास्तविकता को उसके द्वारा प्रदान की गई स्वतंत्रता एवं समायोजन की सीमा से मापा जाना आवश्यक है।
  • मामलों के त्वरित निपटान के महत्त्व को बताते हुए न्यायाधीश एस. के. कौल ने कहा कि "अंततः वह सामान्य व्यक्ति ही है, जिसके लिये न्यायिक प्रणाली मौज़ूद है"।
  • अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में निजता के अधिकार पर ज़ोर देते हुए न्यायाधीश एस के कौल ने कहा कि “निजता एक अंतर्निहित अधिकार है। इस प्रकार यह दिया नहीं गया है, लेकिन यह पूर्व से ही मौज़ूद है"।