कोलं बिया बनाम पेरू
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अंतर्राष्ट्रीय कानून

कोलं बिया बनाम पेरू

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 26-Jul-2024

परिचय:

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में राजनीतिक शरण मामला (कोलंबिया बनाम पेरू) 1948-1949 में पेरू में राजनीतिक विद्रोह के बीच विक्टर राउल हया डे ला टोरे को कोलंबिया द्वारा दी गई शरण की वैधता एवं हवाना कन्वेंशन के अंतर्गत पेरू के दायित्वों पर केंद्रित था।

तथ्य:

  • 3 अक्टूबर 1948 को पेरू में सैन्य विद्रोह हो गया।
  • अमेरिकी पीपुल्स रिवाॅल्यूशनरी अलायंस के नेता विक्टर राउल हया डे ला टोरे पर विद्रोह को संगठित करने का आरोप लगाया गया।
  • 3 एवं 4 जनवरी, 1949 को हया डे ला टोरे ने पेरू के लीमा में कोलंबियाई दूतावास में शरण मांगी तथा उन्हें शरण दे दी गई।
  • कोलंबिया ने हया डे ला टोरे के अपराध को एकतरफा तौर पर राजनीतिक करार दिया।
  • कोलंबिया ने पेरू से अनुरोध किया कि वह हया डे ला टोरे को देश छोड़ने के लिये सुरक्षित मार्ग प्रदान करे।
  • पेरू ने शरण की वैधता पर प्रश्न किया तथा सुरक्षित मार्ग प्रदान करने से मना कर दिया।
  • 31 अगस्त, 1949 को कोलंबिया एवं पेरू ने "लीमा अधिनियम" पर हस्ताक्षर किये, जिसमें विवाद को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) को संदर्भित करने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • 15 अक्टूबर, 1949 को कोलंबिया ने ICJ में एक आवेदन किया, जिसमें शरणार्थियों को योग्य बनाने के अपने अधिकार का दावा किया गया तथा सुरक्षित प्रस्थान प्रदान करने के लिये पेरू के दायित्व का दावा किया गया।
  • इस मामले के विधिक आधार में शामिल थे:
    • प्रत्यर्पण पर बोलिवेरियन समझौता (1911)
    • शरण पर हवाना कन्वेंशन (1928)
    • राजनीतिक शरण पर मोंटेवीडियो कन्वेंशन (1933)- पेरू द्वारा अनुसमर्थित नहीं किया गया
    • सामान्य रूप से अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विधि
  • कोलंबिया के मुख्य तर्क थे:
    • अपराध को एकतरफा तौर पर राजनीतिक करार देने की क्षमता।
    • सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिये पेरू का दायित्व।
    • संधि दायित्व एवं कथित लैटिन अमेरिकी रिवाज़
  • पेरू के प्रतिवाद में तर्क दिया गया:
    • शरण देने से हवाना कन्वेंशन का उल्लंघन हुआ
    • शरण "त्वरित मामले" में नहीं दी गई, जैसा कि कन्वेंशन द्वारा अपेक्षित है
    • कोलंबिया को अपराध को एकतरफा रूप से योग्य बनाने का कोई अधिकार नहीं था
  • पक्षों के मध्य लिखित तर्कों का आदान-प्रदान किया गया तथा मौखिक कार्यवाही हुई।

शामिल मुद्दे:

  • क्या कोलंबिया शरण के उद्देश्यों के लिये अपराध को एकतरफा रूप से योग्य ठहराने में सक्षम था?
  • क्या पेरू शरणार्थी के सुरक्षित प्रस्थान के लिये गारंटी प्रदान करने के लिये बाध्य था?
  • क्या शरण देने से हवाना कन्वेंशन का उल्लंघन हुआ?
  • क्या हवाना कन्वेंशन द्वारा अपेक्षित "त्वरित मामले" में शरण दी गई थी?
  • क्या लंबे समय तक शरण देना हवाना कन्वेंशन के अनुच्छेद 2, पैराग्राफ 2 के अनुरूप था?

न्यायालयी टिप्पणी:

  • न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या कोलंबिया को हया डे ला टोरे के अपराध को एकतरफा तौर पर राजनीतिक करार देने का अधिकार था।
    • न्यायालय ने पाया कि एकतरफा योग्यता का ऐसा अधिकार राजनयिक शरण में निहित नहीं था या हवाना कन्वेंशन द्वारा समर्थित नहीं था।
    • न्यायालय ने कोलंबिया के इस दावे को खारिज कर दिया कि लैटिन अमेरिकी रिवाज में एकतरफा योग्यता की अनुमति थी, इस तरह के रिवाज़ के अपर्याप्त साक्ष्य पाए गए।
  • सुरक्षित आवागमन प्रदान करने के पेरू के दायित्व के संबंध में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह दायित्व तभी उत्पन्न होता है जब प्रादेशिक राज्य (पेरू) पहले शरणार्थी के प्रस्थान का निवेदन करता है।
    • इसके बाद न्यायालय ने पेरू के इस प्रतिवाद पर विचार किया कि हवाना कन्वेंशन का उल्लंघन करके शरण दी गई थी।
    • न्यायालय ने पेरू के इस तर्क को खारिज कर दिया कि हया डे ला टोरे पर सामान्य अपराधों का आरोप लगाया गया था तथा इस दावे के लिये पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाए गए।
  • न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या शरण कन्वेंशन के अनुसार किसी "अत्यावश्यक मामले" में दी गई थी।
    • इसने पाया कि विद्रोह और हया डे ला टोरे के शरण मांगने के बीच तीन महीने का अंतराल होने के कारण तात्कालिकता का दावा करना कठिन हो गया था।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि राजनीतिक शरण का प्रयोग आम तौर पर प्रादेशिक राज्य में न्याय के नियमित आवेदन का विरोध करने के लिये नहीं किया जा सकता।
  • इसने निर्धारित किया कि पेरू की घेराबंदी की स्थिति एवं अन्य उपायों का अर्थ यह नहीं है कि न्याय कार्यकारी प्राधिकार के अधीन है।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हवाना कन्वेंशन का उद्देश्य राजनीतिक अपराधियों को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बचने की अनुमति देना नहीं था।
  • इसने उल्लेख किया कि लैटिन अमेरिका में शरण अक्सर शिष्टाचार एवं राजनीतिक सुविधा जैसे अतिरिक्त-विधिक कारकों पर निर्भर करती है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि 3-4 जनवरी 1949 को हवाना कन्वेंशन के अंतर्गत "अत्यावश्यक मामला" बनने वाला कोई खतरा मौजूद नहीं था।
  • इसने पाया कि कोलंबिया द्वारा सुरक्षित आचरण पर लगातार ज़ोर देने के कारण शरण की अवधि उसके आरंभिक अनुदान से आगे बढ़ गई।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि 3-4 जनवरी, 1949 से लेकर जब तक मामला न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया, शरण का अनुदान उन कारणों से बढ़ा दिया गया था जिन्हें हवाना कन्वेंशन द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी।

अंतिम निर्णय:

  • न्यायालय ने अपराध की एकतरफा योग्यता के अधिकार के कोलंबिया के दावे को खारिज कर दिया।
  • इसने कोलंबिया के इस दावे को खारिज कर दिया कि पेरू सुरक्षित आचरण के लिये बाध्य था।
  • न्यायालय ने पेरू के इस प्रतिवाद को खारिज कर दिया कि शरण हवाना कन्वेंशन के अनुच्छेद 1, पैराग्राफ 1 का उल्लंघन करती है।
  • हालाँकि इसने पेरू के इस दावे को यथावत् रखा कि शरण प्रदान करना हवाना कन्वेंशन के अनुच्छेद 2, पैराग्राफ 2 के अनुरूप नहीं था।

निष्कर्ष:

राजनीतिक शरण मामले (कोलंबिया बनाम पेरू) में, ICJ ने निष्कर्ष निकाला कि कोलंबिया के पास शरण के उद्देश्यों के लिये हया डे ला टोरे के अपराध को राजनीतिक के रूप में योग्य ठहराने का एकतरफा अधिकार नहीं है। इसने निर्णय दिया कि पेरू सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिये बाध्य नहीं था क्योंकि हवाना कन्वेंशन के अंतर्गत "अत्यावश्यक मामले" की शर्तें पूरी नहीं हुई थीं। न्यायालय ने पेरू के इस तर्क को यथावत् रखा कि लंबे समय तक शरण देना हवाना कन्वेंशन के विशिष्ट प्रावधानों का उल्लंघन करता है।