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सिविल कानून
भीवचंद्र शंकर मोरे बनाम बालू गंगाराम मोरे (2019)
«24-Dec-2024
परिचय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश IX नियम 13 और धारा 96 के तहत उपायों पर चर्चा की गई है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने सुनाया।
तथ्य
- प्रतिवादी संख्या 1 से 13 ने विवादित संपत्ति के विभाजन और पृथक कब्ज़े के लिये नियमित सिविल वाद दायर किया।
- वाद के लिये समन प्रतिवादी नंबर 2 के बेटे तानाजी को भेजा गया। हालाँकि, प्रतिवादियों ने दावा किया कि वे पड़ोसी गाँव में थे और उन्हें समन के बारे में पता नहीं था।
- इस वाद में 04 जुलाई, 2008 को एकपक्षीय निर्णय दिया गया।
- 15 अक्तूबर, 2008 को प्रतिवादियों ने एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिये CPC का आदेश IX नियम 13 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसे 06 अगस्त, 2010 को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।
- ट्रायल कोर्ट ने पाया कि तानाजी को जारी समन वैध थे तथा प्रतिवादियों द्वारा उनकी अनुपस्थिति के लिये दिये गए स्पष्टीकरण में असंगतता के कारण आवेदन को खारिज कर दिया।
- प्रतिवादियों ने CPC के आदेश IX नियम 13 के तहत बर्खास्तगी की अपील की, लेकिन बाद में 11 जून, 2013 को अपील वापस ले ली।
- 12 जून, 2013 को प्रतिवादियों ने एकपक्षीय डिक्री को चुनौती देते हुए एक नियमित अपील दायर की, साथ ही 4 वर्ष, 10 महीने और 8 दिन की देरी के लिये माफी का आवेदन भी किया।
- अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश ने देरी को माफ करते हुए तर्क दिया कि प्रतिवादी गलत उपाय अपना रहे थे तथा उन्हें मामले की गुणवत्ता के आधार पर मुकदमा लड़ने का अवसर नहीं दिया गया।
- प्रतिवादी संख्या 1 से 8 ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने 20 अगस्त, 2014 को उनकी रिट याचिका को अनुमति दे दी और देरी को माफ करने से इनकार कर दिया, और कहा कि CPC के आदेश IX नियम 13 और धारा 96 (2) के तहत उपायों को एक साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये, न कि लगातार।
- इसलिये, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है।
शामिल मुद्दे
- क्या CPC के आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन पर कार्यवाही करने में बिताया गया समय CPC की धारा 96(2) के तहत नियमित अपील दायर करने में देरी को माफ करने के लिये भारतीय परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत "पर्याप्त कारण" बन सकता है?
- क्या CPC के आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन को खारिज करने से प्रतिवादी को CPC की धारा 96(2) के तहत नियमित अपील दायर करने से रोका जा सकता है?
टिप्पणी
- उच्चतम न्यायालय ने पाया कि CPC के आदेश IX नियम 13 और धारा 96(2) के तहत उपचार भिन्न होते हैं। जबकि पहला उपाय गैर-हाजिरी के कारणों की पर्याप्तता की जाँ’च करता है, दूसरा उपाय अपीलीय न्यायालय को मामले की योग्यता की समीक्षा करने की अनुमति देता है।
- CPC का आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन दायर करना प्रतिवादी को CPC की धारा 96(2) के तहत नियमित अपील दायर करने से नहीं रोकता है, भले ही पूर्व अपील खारिज कर दी गई हो।
- उच्च न्यायालय ने इस नियम को कठोरता से लागू करने में गलती की कि CPC के आदेश IX नियम 13 और धारा 96 (2) के तहत उपायों को एक साथ लागू किया जाना चाहिये।
- CPC के आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन को आगे बढ़ाने में बिताया गया समय देरी को माफ करने के लिये "पर्याप्त कारण" माना गया, क्योंकि प्रतिवादियों ने घोर लापरवाही नहीं की थी और सद्भाव से कार्य कर रहे थे।
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय को आगे बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से संपत्ति के अधिकार से जुड़े मामलों में, “पर्याप्त कारण” की उदार व्याख्या आवश्यक है।
- उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया गया तथा अपील स्वीकार कर ली गई, जिससे प्रतिवादियों को एकपक्षीय डिक्री को गुण-दोष के आधार पर चुनौती देने का अवसर मिल गया।
निष्कर्ष
- यह उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें CPC के आदेश IX नियम 13 और की धारा 96 के तहत उपायों पर चर्चा की गई है।
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि CPC के आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन को आगे बढ़ाने में बिताया गया समय देरी को माफ करने के लिये पर्याप्त कारण होगा।