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सिविल कानून
SCG कॉन्ट्रैक्ट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम KS चमनकर इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड (2019)
« »11-Nov-2024
परिचय
- यह लिखित अभिकथन दाखिल करने की परिसीमा से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन एवं न्यायमूर्ति विनीत सरन की दो सदस्यीय पीठ ने दिया।
तथ्य
- 10 मार्च 2017 को एक निश्चित राशि का दावा करने के लिये वाद संस्थित किया गया था।
- प्रतिवादी संख्या 1 को 14 जुलाई 2017 को समन भेजा गया था।
- चूँकि 120 दिनों की अवधि 11 नवंबर 2017 को समाप्त हो रही है, इसलिये उस समय तक लिखित अभिकथन दायर किया जाना चाहिये था।
- हालाँकि, ऐसा कोई लिखित अभिकथन दायर नहीं किया गया।
- प्रतिवादी के अधिवक्ता ने प्रार्थना की कि लिखित अभिकथन दाखिल करने के लिये सात दिन का अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने तदनुसार समय बढ़ा दिया तथा लिखित अभिकथन दाखिल करने की अनुमति दे दी।
- इस पर आपत्ति की गई तथा इसलिये इस संबंध में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की गई।
शामिल मुद्दे
- क्या वाणिज्यिक वाद में लिखित अभिकथन दाखिल करने की समयावधि 120 दिनों से आगे बढ़ाई जा सकती है?
टिप्पणी
- वाणिज्यिक न्यायालय, उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक प्रभाग एवं वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग अधिनियम, 2015, जो 23 अक्टूबर 2015 को लागू हुआ, लिखित अभिकथन दाखिल करने के संबंध में निम्नलिखित नए प्रावधान लेकर आया:
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश V नियम (1) का दूसरा प्रावधान।
- CPC के आदेश VIII नियम 1 में अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा गया।
- CPC के आदेश VIII नियम 10 में एक और प्रावधान जोड़ा गया।
- इन सभी प्रावधानों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं:
- लिखित अभिकथन 30 दिनों की अवधि के अंदर दाखिल किया जाना है।
- हालाँकि, 90 दिनों की छूट अवधि दी गई है, जिसका उपयोग न्यायालय लिखित रूप में दर्ज किये जाने वाले कारणों एवं ऐसे व्यय के भुगतान के लिये कर सकता है, जिन्हें वह ऐसे लिखित अभिकथन को रिकॉर्ड पर आने देने के लिये उचित समझता है।
- समन की तामील की तिथि से 120 दिनों की अवधि के बाद, प्रतिवादी लिखित अभिकथन दाखिल करने का अधिकार खो देगा तथा न्यायालय लिखित अभिकथन को रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति नहीं देगी।
- आदेश VIII नियम 10 में प्रावधान यह भी जोड़ा गया है कि न्यायालय के पास 120 दिनों की इस अवधि से आगे समय बढ़ाने की कोई शक्ति नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि कई उच्च न्यायालयों ने माना है कि CPC के संशोधित प्रावधानों को अनिवार्य माना जाना चाहिये।
- इसलिये न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी संख्या 1 के लिखित अभिकथन को रिकॉर्ड से हटा दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- निर्णय में वाणिज्यिक वाद में लिखित अभिकथन दाखिल करने की समयसीमा पर चर्चा की गई है।
- यह निर्णय निर्णायक रूप से मानता है कि वाणिज्यिक वाद के संबंध में CPC में किये गए संशोधन अनिवार्य प्रकृति के हैं।