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पारिवारिक कानून
मुहम्मद हुसैन खान बनाम बाबू किशवा नंदन सहाय AIR 1937 PC 233
«01-Jul-2024
परिचय:
यह मामला मातृ पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति से संबंधित है, जिसे पैतृक संपत्ति नहीं माना जाएगा तथा अंतरिती द्वारा अलग से उस पर अधिकार रखा जाएगा।
तथ्य:
- विवादित गाँव के स्वामी ओम गणेश प्रसाद थे, जिनकी मृत्यु 10 मई 1914 को हुई थी, उन्हें यह संपत्ति अपने नाना से उत्तराधिकार स्वरूप मिली थी।
- गणेश की मृत्यु से पूर्व उन्होंने इलाहाबाद में एक दूसरी वसीयत बनाई थी, जिसे उन्होंने किसी धार्मिक एवं धर्मार्थ उद्देश्य के लिये समर्पित किया था तथा वसीयत के निष्पादन के लिये सात निष्पादकों एवं न्यासियों को भी नियुक्त किया था।
- बिंदेशरी ने प्रोबेट के विरुद्ध उच्च न्यायालय में कैविएट दायर की थी, जिस पर सभी निष्पादकों एवं न्यासियों ने सहमति जताई थी कि उनके पिता की संपत्ति पर उनका स्वामित्व होगा।
- संपत्ति उनके बेटे बिंदेशरी प्रसाद के साथ संयुक्त हित में थी, जिन्होंने 25 जनवरी 1925 को नीलामी में संपत्ति विक्रय कर दिया था।
- उसके बाद उसके बेटे ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वाद दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि उसकी संपत्ति को दोषपूर्ण तरीके से विक्रय किया गया है तथा वाद लंबित रहने के दौरान उसकी मृत्यु हो गई।
- उसकी पत्नी गिरी बाला ने वाद में अपने पति के स्थान पर अपना नाम दर्ज कराने के लिये आवेदन दायर किया।
- उसने यह भी दावा किया कि उसके ससुर ने उसके पति के नाम पर वसीयत बनाई है तथा उसके पति की मृत्यु के बाद संपत्ति उसके नाम पर अंतरित कर दी जाएगी और उसे संपत्ति में पूर्ण स्वामित्व प्राप्त होगा।
- उसने यह भी दावा किया कि गाँव के विक्रय को निष्क्रिय कर दिया जाना चाहिये क्योंकि वह ज़मीन की स्वामी है।
- न्यायालय ने संशोधनों की अनुमति दी, जिस पर बाद में प्रतिवादियों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर करके आपत्ति जताई।
- वादी ने कहा कि संपत्ति पैतृक संपत्ति थी तथा इसका निपटान नहीं किया जा सकता।
शामिल मुद्दे:
- क्या नाना-नानी से उत्तराधिकार के रूप में मिली संपत्ति को पैतृक संपत्ति कहा जा सकता है तथा क्या ऐसी संपत्ति उस व्यक्ति के पास संयुक्त रूप से हो सकती है जिसे संपत्ति उत्तराधिकार के रूप में मिली है?
टिप्पणी:
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मिताक्षरा शाखा का संदर्भ दिया तथा पैतृक संपत्ति की परिभाषा की व्याख्या की।
- यह कहा गया कि पैतृक संपत्ति वह संपत्ति है जो पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार स्वरूप मिलती है।
- यह भी बताया गया कि मातृ पूर्वजों से उत्तराधिकार के रूप में मिली संपत्ति उनकी बेटी के बेटे से अलग होती है।
निष्कर्ष:
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि मिताक्षरा शाखा में उल्लिखित पैतृक संपत्ति की परिभाषा के आधार पर गणेश की संपत्ति पैतृक संपत्ति नहीं थी तथा इसलिये उसे अपने बेटे के साथ संयुक्त रूप से संपत्ति रखने एवं अपनी बहू को अधिकार देने का पूरा अधिकार था।