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पारिवारिक कानून

नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2004)

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 23-Oct-2024

परिचय  

  • यह एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है, जो विवाह के अपूरणीय विच्छेद पर चर्चा करता है। 
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल, न्यायमूर्ति ए. के. माथुर और न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रस्तुत किया गया।

तथ्य  

  • अपीलकर्त्ता नवीन कोहली ने 20 नवंबर, 1975 को नीलू कोहली से विवाह किया।
  • उनके विवाह से तीन बेटों का जन्म हुआ।
  • अपीलकर्त्ता  ने उनके लिये तीन फैक्ट्रियाँ और एक बंगला भी बनवाया।
  • अपीलकर्त्ता का मामला यह है कि:
    • प्रत्यर्थी एक चिड़चिड़ी महिला है, जिसका व्यवहार असभ्य है तथा वह अपीलकर्त्ता व उसके माता-पिता के साथ झगड़ती और दुर्व्यवहार करती थी।
    • अपीलकर्त्ता का यह भी कहना था कि प्रत्यर्थी ने अपने पास पर्याप्त व्यापार और संपत्ति का हस्तांतरण कर लिया था।
    • अपीलकर्त्ता  ने आगे आरोप लगाया कि उसने उसे किसी अन्य व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पाया था।
    • इसके अलावा उसने आरोप लगाया कि प्रत्यर्थी ने उनके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत झूठी प्राथमिकी(FIR) दर्ज कराई।
    • इसके अलावा अपीलकर्त्ता के विरुद्ध IPC की धारा 323, 324 के तहत मामला दर्ज किया गया।
    • प्रत्यर्थी के मन में अपीलकर्त्ता के प्रति बदले की गहरी एवं तीव्र भावना विद्यमान थी।
    • अपीलकर्त्ता ने कंपनी कानून बोर्ड, नई दिल्ली के समक्ष कंपनी अधिनियम की धारा 397/398 के अंतर्गत एक फर्ज़ी शिकायत प्रस्तुत की थी और हलफनामे में यह उल्लेख किया था कि अपीलकर्त्ता अनैतिक व्यवहार करता है, शराब का सेवन करता है और उसके कई लड़कियों के साथ संबंध हैं।
    • इसके अलावा मामला यह भी है कि प्रत्यर्थी ने अपीलकर्त्ता  के विरुद्ध फर्ज़ी मामले दर्ज किये थे।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि तलाक की याचिका मुख्य रूप से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 के तहत क्रूरता के आधार पर दायर की गई थी।
  • नीचे दिये गए न्यायालय के निष्कर्ष:
    • ट्रायल कोर्ट ने माना कि प्रत्यर्थी ने अपीलकर्त्ता के विरुद्ध बड़ी संख्या में मामले दर्ज किये थे और उसे परेशान तथा प्रताड़ित किया था।
    • ट्रायल कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि दोनों पक्षों के बीच कोई सामंजस्य नहीं रह गया है और उनके एक साथ रहने की कोई संभावना नहीं है।
    • इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने माना कि पक्षकारों के बीच विवाह को विघटित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
    • यह अपील उच्च न्यायालय में दायर की गई, जहाँ न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली तथा ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।

शामिल मुद्दे

  • HMA के तहत क्रूरता क्या मानी जाएगी?
  • क्या वर्तमान तथ्यों के आधार पर विवाह के अपूरणीय विच्छेद के आधार पर विवाह को विघटित किया जा सकता है?

टिप्पणियाँ

  • मुद्दा (i) के संबंध में:
    • न्यायालय ने सबसे पहले इस बात पर चर्चा की कि HMA के तहत क्रूरता क्या होगी।
      • 1976 के संशोधन के माध्यम से तलाक का आधार जोड़ा गया।
      • एन. जी. दास्ताने बनाम ए. स. दास्ताने (वर्ष 1975) के मामले में न्यायालय ने माना कि "क्या क्रूरता के रूप में आचरण के आरोप इस प्रकार के हैं कि याचिकाकर्त्ता के मन में यह उचित आशंका उत्पन्न होती है कि प्रत्यर्थी के साथ रहना उसके लिये हानिकारक या नुकसानदायक होगा।"
      • शारीरिक क्रूरता के विपरीत, मानसिक क्रूरता को प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा स्थापित करना कठिन है। मानसिक क्रूरता एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जो पति-पत्नी में से किसी एक के व्यवहार या व्यवहार पैटर्न के कारण दूसरे के मन में उत्पन्न होती है।
      • न्यायालय ने अंततः यह निर्णय लिया:
        • क्रूरता एक व्यक्ति का ऐसा आचरण या तरीका है, जो दूसरे पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
        • क्रूरता मानसिक या शारीरिक, जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है
        • अगर यह मानसिक है, तो समस्या उत्पन्न करती है। सबसे पहले, जाँच क्रूर व्यवहार की प्रकृति के आधार पर शुरू होनी चाहिये, दूसरा इस तरह के व्यवहार का पति या पत्नी के मन पर क्या प्रभाव पड़ा, क्या इससे यह उचित आशंका उत्पन्न हुई कि दूसरे के साथ रहना हानिकारक या नुकसानदायक होगा।
        • अंततः यह आचरण की प्रकृति और शिकायतकर्त्ता पति या पत्नी पर उसके प्रभाव को ध्यान में रखकर निकाला जाने वाला निष्कर्ष है।
        • हालाँकि यह आचरण “वैवाहिक जीवन में सामान्य उतार-चढ़ाव” से कहीं अधिक गंभीर होना चाहिये।
  • मुद्दे (ii) के संबंध में:
    • HMAके तहत अपूरणीय विच्छेद तलाक का आधार नहीं है।
    • यह विधानमंडल पर निर्भर करता है कि वह विवाह के अपूरणीय विच्छेद को तलाक के आधार के रूप में शामिल करे या नहीं।
    • जब दोनों पक्ष अलग हो जाते हैं और यह अलगाव एक लंबी अवधि तक बना रहता है तथा उनमें से किसी एक ने तलाक के लिये याचिका दायर कर दी है, तो यह समझा जा सकता है कि वैवाहिक बंधन समाप्त हो चुका है।
    • जहाँ लंबे समय तक लगातार अलगाव रहा हो, वहाँ यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वैवाहिक बंधन को सुधारा नहीं जा सकता।
    • विवाह एक अवधारणा के रूप में उभरता है, जबकि इसे कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होती है। इस संदर्भ में, कानून उस बंधन को समाप्त करने से मना करके विवाह की पवित्रता की रक्षा नहीं करता; बल्कि, यह पक्षों की भावनाओं एवं संवेदनाओं के प्रति बहुत कम सम्मान प्रकट करता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के निर्णय को मान्य नहीं किया जा सकता और उसने दोनों पक्षों को तलाक देने का आदेश दिया।

निष्कर्ष 

  • इस मामले में न्यायालय ने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया अर्थात् ‘विवाह का अपूरणीय विच्छेद’।
  • न्यायालय ने यह सही रूप से उल्लेख किया कि मुख्यतः दोष के आधार पर तलाक का कानून विच्छेदित विवाह के मामलों को संभालने हेतु अपर्याप्त है। इस प्रकार जब विवाह अपूरणीय विच्छेदित हो जाता है, तो यह उन पक्षों के लिये तलाक का एक पर्याप्त आधार बन जाता है, जो अब एक साथ रहने में असमर्थ हैं।