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पारिवारिक कानून
सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995)
«10-Jan-2025
परिचय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो इस्लाम धर्म अपनाने के बाद हिंदू पति द्वारा द्विविवाह की वैधता से संबंधित है।
- निर्णय देने वाली पीठ में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह एवं न्यायमूर्ति आर.एम. सहाय शामिल थे।
तथ्य
- इस मामले में कई याचिकाकर्त्ता शामिल थे, जिनकी शिकायत एक जैसी थी।
- याचिकाकर्त्ता संख्या 1, "कल्याणी" नामक संस्था की अध्यक्ष थीं, जो जरूरतमंद परिवारों एवं संकटग्रस्त महिलाओं के कल्याण के लिये कार्य करने वाली एक पंजीकृत सोसायटी है।
- याचिकाकर्त्ता संख्या 2, मीना माथुर थीं, जिनका विवाह जितेंद्र माथुर से हुआ था तथा उनके तीन बच्चे हैं।
- मीना माथुर को 1988 के प्रारंभ में पता चला कि उनके पति, जीतेंद्र माथुर ने सुनीता नरूला (उर्फ फातिमा) से विवाह कर लिया था, जिसके बाद दोनों ने इस्लाम धर्म अपना लिया था।
- मीना का दावा है कि धर्म संपरिवर्तन केवल भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 494 को दरकिनार करने के लिये किया गया था, जो हिंदू विधि के अंतर्गत द्विविवाह को प्रतिबंधित करता है।
- जीतेंद्र का दावा है कि इस्लाम चार पत्नियों की अनुमति देता है, भले ही उनकी पहली पत्नी हिंदू बनी रहे।
- इस मामले में एक अन्य याचिकाकर्त्ता सुनीता नरूला थीं जो जितेन्द्र नरूला की दूसरी पत्नी थीं।
- सुनीता का दावा है कि उसने इस्लाम धर्म अपना लिया तथा जितेन्द्र से विवाह कर लिया, जिससे उसका एक बेटा भी है।
- उसने आरोप लगाया कि जितेन्द्र अपनी पहली पत्नी के दबाव में आकर हिंदू धर्म अपना लिया तथा अपनी पहली पत्नी एवं बच्चों का भरण-पोषण करने के लिये राजी हो गया, जिससे सुनीता को हिंदू या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत भरण-पोषण या सुरक्षा नहीं मिली।
- एक अन्य याचिकाकर्त्ता गीता रानी हैं, जिन्होंने प्रदीप कुमार से हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था।
- गीता का आरोप है कि उसके पति ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, एक घटना में उसका जबड़ा तोड़ दिया।
- दिसंबर 1991 में उसे पता चला कि प्रदीप कुमार दीपा नाम की एक महिला के साथ भाग गया, उसने इस्लाम धर्म अपना लिया तथा उससे विवाह कर लिया।
- गीता का दावा है कि धर्म संपरिवर्तन द्विविवाह को आसान बनाने का एक साधन था।
- इसके अतिरिक्त एक अन्य याचिकाकर्त्ता सुष्मिता घोष का विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार जी.सी. घोष से हुआ था।
- अप्रैल 1992 में, उसके पति ने उसे बताया कि वह अब उसके साथ नहीं रहना चाहता तथा विवाह-विच्छेद के लिये आपसी सहमति चाहता है।
- उसके पति ने बाद में प्रकटित किया कि उसने इस्लाम धर्म अपना लिया है तथा विनीता गुप्ता से विवाह करना चाहता है, जिसके लिये उसने 17 जून 1992 की तिथि वाला धर्म परिवर्तन प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया।
- सुष्मिता ने अपने पति को विनीता गुप्ता से विवाह करने से रोकने के लिये याचिका दायर की थी।
- इस प्रकार, यह मामला निर्णय हेतु उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।
शामिल मुद्दे
- क्या हिंदू विधि के अंतर्गत विवाहित हिंदू पति इस्लाम धर्म अपनाकर द्विविवाह कर सकता है?
- क्या विधि के अंतर्गत प्रथम विवाह को भंग किये बिना ऐसा विवाह, पहली पत्नी के हिंदू बने रहने के कारण वैध विवाह होगा?
- क्या धर्म का परित्याग करने पर पति भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 494 के अंतर्गत प्रावधानित अपराध का दोषी होगा?
टिप्पणी
- न्यायालय ने धर्म संपरिवर्तन के बाद द्विविवाह की वैधता के संबंध में निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- न्यायालय ने कहा कि पति या पत्नी में से किसी व्यक्ति द्वारा धर्म संपरिवर्तन करने से विवाह विच्छेद नहीं होता।
- यह देखा गया कि इस्लाम में धर्म परिवर्तन की आड़ में धर्मत्यागी द्वारा किया गया दूसरा विवाह फिर भी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला विवाह होगा, जिसके अधीन वह अधिनियम के अंतर्गत अपने पहले विवाह के लिये शासित होता रहेगा, भले ही उसने इस्लाम में धर्म संपरिवर्तन किया हो।
- इस प्रकार, धर्म का परियाग और उसकी हिंदू पत्नी के अस्तित्व में होते हुए द्विविवाह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है तथा यह अवैध होगा।
- न्यायालय ने कहा कि इस्लाम धर्म में धर्मांतरण के बाद हिंदू द्वारा किया गया विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत अवैध विवाह नहीं हो सकता है, लेकिन तथ्य यह है कि ऐसा विवाह अधिनियम का उल्लंघन होगा, जो कठोरता से एकपत्नीत्व को मान्यता देता है।
- धर्म संपरिवर्तन करने वाले व्यक्ति द्वारा द्विविवाह करना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 का उल्लंघन होगा तथा विधि के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला कोई भी कृत्य स्वयं में शून्य है।
- द्विविवाह के शून्य होने का वास्तविक कारण पहले विवाह का अस्तित्व है, जो पति के धर्म परिवर्तन से भी भंग नहीं होता है।
- इस्लाम धर्म अपनाने के बाद किसी हिन्दू पति द्वारा किया गया दूसरा विवाह न्याय, समता एवं अच्छे विवेक का उल्लंघन है, इसलिये इस आधार पर भी वह अमान्य होगा तथा उस पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के प्रावधान लागू होंगे।
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत दोषसिद्धि के संबंध में न्यायालय ने कहा कि:
- इस मामले में IPC की धारा 494 के अंतर्गत दोषसिद्धि के लिये आवश्यक सभी चार तत्व निहित हैं।
- पति की पत्नी जीवित है तथा वह द्विविवाह कारित करता है।
- हिंदू पति द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के बाद किया गया ऐसा विवाह IPC की धारा 494 के अनुसार अमान्य विवाह है।
- न्यायालय ने समान नागरिक संहिता पर निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- न्यायालय ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985) के मामले का उदाहरण दिया, जिसमें न्यायालय ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 44 के महत्त्व पर प्रकाश डाला, जिसमें कहा गया था कि राज्य पूरे देश में समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
- समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले विधियों के प्रति असमान निष्ठाओं को दूर करके राष्ट्रीय एकीकरण के कारण में सहायता करेगी।
- देश के नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का दायित्व राज्य पर है तथा निस्संदेह, ऐसा करने की विधायी क्षमता भी राज्य के पास है।
- देश में समान नागरिक संहिता लागू करने में अनिश्चित काल तक विलंब करने का कोई औचित्य नहीं है।
- इस प्रकार, न्यायालय द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले गए:
- इस्लाम धर्म अपनाने के बाद हिंदू पति द्वारा किया गया प्रथम विवाह को विधि अंतर्गत के अंतर्गत भंग किये बिना द्विविवाह करना अवैध होगा।
- IPC की धारा 494 के प्रावधानों के अनुसार द्विविवाह अमान्य होगी तथा धर्मत्यागी पति IPC की धारा 494 के अधीन अपराध का दोषी होगा।
निर्णय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो एक हिंदू पति द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के बाद द्विविवाह की वैधता के विषय में चर्चा करता है।
- यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मामला है जो समान नागरिक संहिता के अनुच्छेद 44 के महत्त्व पर भी प्रकाश डालता है।