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सिविल कानून

फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया बनाम अभिजीत पॉल 2022 SCC OnLine SC 1605

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 08-Jul-2024

परिचय:

इस मामले में विलंब शुल्क को पक्षों के मध्य संविदा में 'प्रभार' (एक खंड) का भाग नहीं माना गया।

तथ्य:

  • इस मामले में भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने प्रतिवादी के साथ 2 वर्ष की अवधि के लिये खाद्यान्न की डिलीवरी के लिये संविदा किया था।
  • पक्षों के मध्य संविदा वर्ष 2014 में समाप्त हो गया था।
  • वर्ष 2015 में, FCI ने प्रतिवादी को FCI पर रेलवे द्वारा लगाए गए विलंब शुल्क का भुगतान करने के लिये कहा।
  • FCI ने तर्क दिया कि रेलवे साइडिंग में ट्रक उपलब्ध कराने में प्रतिवादी की असमर्थता के कारण FCI को समय पर खाद्यान्न उतारने से रोका गया तथा इसके परिणामस्वरूप विलंब शुल्क देना पड़ा, जो अब प्रतिवादी द्वारा देय होगा।
  • प्रतिवादी ने त्रिपुरा उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की, जहाँ न्यायालय ने कहा कि FCI केवल उन क्षतिपूर्तियों का दावा कर सकता है, जिसके लिये प्रतिवादी कर्त्तव्य पालन के उल्लंघन के अधीन उत्तरदायी है, न कि भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 73 के अधीन प्रदान किये गए अन्यथा।
  • यह भी देखा गया कि FCI द्वारा विलंब शुल्क एकतरफा निर्धारित नहीं किया जा सकता है तथा इसके दावे के लिये एक सिविल वाद दायर किया जाना चाहिये।
  • उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर दोनों पक्षों ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ में अपील दायर की, जिसने उनकी अपील को खारिज कर दिया।
  • इस अस्वीकार्यता के कारण अपीलकर्त्ता द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील की गई।

शामिल मुद्दे:

  • क्या FCI को ‘प्रभार’ वसूलने में सक्षम बनाने वाले खंड में संविदा के अनुसार ‘विलंब शुल्क’ की वसूली निहित है?

 टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने संविदा के विभिन्न खंडों का विश्लेषण एवं उल्लेख करने के बाद पाया कि शुल्क में विलंब शुल्क स्पष्ट रूप से निहित नहीं है।
  • आगे कहा गया कि जब पक्षों के मध्य संविदा के किसी खंड की व्याख्या से संबंधित कोई अस्पष्टता होती है, तो ऐसे खंड को तैयार करने के पीछे की मंशा का पता लगाया जाना चाहिये।
  • उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से अव्यक्त अस्पष्टता को परिभाषित एवं स्पष्ट किया क्योंकि संविदा में ऐसी संभावना होती है कि संविदा किसी भी अस्पष्टता से मुक्त प्रतीत होता है लेकिन जब इसकी व्याख्या की जाती है तो इसके कई परिणाम हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि “शुल्क” खण्ड में “विलंब शुल्क” निहित नहीं है, इसलिये FCI   प्रतिवादी के विरुद्ध इसका दावा नहीं कर सकता।