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सिविल कानून
उस्मान जमाल एंड संस लिमिटेड बनाम गोपाल पुरषोत्तम AIR 1929 CAL 208
«24-Jul-2024
परिचय:
यह मामला क्षतिपूर्ति हेतु सिद्धांत निर्धारित करता है कि क्षतिपूर्ति, सदैव भुगतान के उपरांत पुनर्भुगतान पर प्रदान नहीं की जाती है, जबकि क्षतिपूर्ति हेतु आवश्यक है कि क्षतिपूर्ति प्राप्त करने वाले पक्ष को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 124 और धारा 125 के अंतर्गत भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती है।
तथ्य:
- वादी कंपनी और प्रतिवादी ने एक संविदा निष्पादित की कि वादी कंपनी माल के क्रय एवं विक्रय में प्रतिवादी के लिये कमीशन एजेंट के रूप में कार्य करेगी तथा प्रतिवादी ऐसे लेन-देन के विरुद्ध सभी क्षतियों से वादी कंपनी को क्षतिपूर्ति प्रदान करेगा।
- वादी कंपनी की ओर से दलील दी गई कि कंपनी ने प्रतिवादी के लिये मालीराम रामजीदास से कुछ सामान खरीदा था।
- प्रतिवादी को माल का प्रतिदान प्राप्त नहीं हुआ, जिसके कारण विक्रेता ने माल को संविदा मूल्य से कम पर किसी अन्य क्रेता को बेच दिया तथा शेष राशि वादी कंपनी से मांगी गई।
- वादी कंपनी का परिसमापन हो गया और उन्हें यह राशि मालीराम रामजीदास को प्रदान करनी पड़ी।
- वर्तमान मामले में वादी कंपनी, प्रतिवादी से क्षति के साथ-साथ कमीशन राशि के लिये क्षतिपूर्ति का दावा कर रही है।
- जबकि प्रतिवादी ने तर्क दिया कि इस मामले में वादी कंपनी ने एजेंट के रूप में नहीं बल्कि एक कर्त्ता के रूप में काम किया है जब उसने मध्यस्थ के माध्यम से कंपनी से माल खरीदा था और यह भी कहा गया है कि वास्तव में राशि का भुगतान प्रतिवादी द्वारा नहीं किया गया है, तो क्षतिपूर्ति का कोई प्रश्न ही नहीं है।
शामिल मुद्दे:
- क्या प्रतिवादी कंपनी, वादी कंपनी को हुई क्षति की भरपाई करेगी?
- क्या वादी कंपनी, प्रतिवादी कंपनी के एजेंट के रूप में कार्य कर रही थी?
टिप्पणियाँ:
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी की वादी कंपनी को उस राशि की देयता निर्धारित करने के लिये संविदा की शर्तों का निर्धारण किया, जो वादी कंपनी ने अपने कमीशन एजेंट के रूप में प्रतिवादी के लिये माल की क्रय एवं विक्रय के लिये भुगतान की है।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि क्षतिपूर्ति देने वाला प्रतिवादी उस राशि के उपयोग से चिंतित है जो वह चुकाता है। प्रतिवादी अघोषित कर्त्ता के रूप में उत्तरदायी हो सकते हैं।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह अनुमान लगाया है कि क्षतिपूर्ति संविदा का यह अर्थ आवश्यक रूप से नहीं है कि क्षतिपूर्तिकर्त्ता को तब भुगतान करना होगा जब भुगतान क्षतिपूर्ति धारक द्वारा किया गया हो, बल्कि क्षतिपूर्तिकर्त्ता को तब भुगतान करना होगा जब क्षतिपूर्ति धारक को क्षति हुई हो, जो रिचर्डसन रे, एक्स पैरे द गवर्नर्स ऑफ सेंट थॉमस हॉस्पिटल, (1911) के उदाहरण में स्थापित किया गया था।
निष्कर्ष:
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने वादी कंपनी के पक्ष में आदेश पारित किया तथा कहा कि प्रतिवादी को कमीशन राशि के साथ क्षतिपूर्ति राशि का भी भुगतान करना होगा।