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सिविल कानून

राजेंद्र कुमार वर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1972)

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 23-Sep-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी प्रस्ताव को स्वीकार किये जाने से पहले वापस लिया जा सकता है।

  • यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश बिशंभर दयाल एवं न्यायमूर्ति ए.पी. सेन ने दिया।

तथ्य

  • प्रतिवादियों ने तेंदू पत्ता के पत्तों की बिक्री के लिये निविदा प्राप्त करने हेतु विज्ञापन दिया।
  • याचिकाकर्त्ता ने उपरोक्त निविदा सूचना के संदर्भ में निविदा आमंत्रित की। याचिकाकर्त्ता ने प्रतिभूति के रूप में कुछ राशि भी जमा की।
  • वास्तव में निविदाओं के आमंत्रण से पहले याचिकाकर्त्ता ने अपनी निविदा के कर्त्तव्य पालन से पीछे हटते हुए एक आवेदन दिया तथा निवेदन किया कि उसकी निविदा बिल्कुल भी आमंत्रित न की जाए।
  • हालाँकि, यह एकमात्र आमंत्रित निविदा थी, इसलिये निविदा आमंत्रित की गई तथा इसकी स्वीकृति के लिये सरकार के पास भी भेजा गया।
  • सरकार ने निविदा स्वीकार कर ली और चूंकि याचिकाकर्त्ता ने क्रेता करार पर हस्ताक्षर नहीं किये थे, इसलिये इस आधार पर कुछ राशि की वसूली के लिये कार्यवाही प्रारंभ की गई कि तेंदू पत्ते किसी और को बेचे गए थे तथा शेष राशि याचिकाकर्त्ता से वसूल की जा सकती है।
  • याचिकाकर्त्ता का तर्क इस प्रकार था:
    • चूंकि उन्होंने निविदा आमंत्रित जाने और स्वीकार किये जाने से पहले ही उसे वापस ले लिया था, इसलिये याचिकाकर्त्ता की ओर से कोई निविदा प्रस्तावित नहीं की थी।
    • इस राशि की कोई वसूली नहीं की जा सकती है, क्योंकि याचिकाकर्त्ता द्वारा भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 299 के अंतर्गत कोई वैध संविदा निष्पादित नहीं की गई थी।
  • इस प्रकार, राशि की वसूली को चुनौती देते हुए COI के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत एक रिट याचिका दायर की गई।

शामिल मुद्दे

  • क्या सरकार द्वारा की गई मांग रद्द की जा सकती है?

टिप्पणी

  • न्यायालय ने कहा कि प्रस्ताव देने वाला व्यक्ति उसे स्वीकृति की सूचना दिये जाने से पहले अपना प्रस्ताव वापस लेने का अधिकारी है।
  • इसके अतिरिक्त, यह भी कहा गया कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया गया कि निविदा वापस ले ली गई थी, इसलिये यह स्पष्ट है कि जब निविदाएँ आमंत्रित की गईं तो याचिकाकर्त्ता द्वारा वास्तव में कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया था तथा पक्षकारों के बीच कोई विवक्षित या अस्पष्ट संविदा नहीं हो सकता था।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि जब तक कि COI के अनुच्छेद 299 (1) के अनुसार वैध संविदा निष्पादित नहीं किया जाता है, जहाँ सरकार एक पक्ष है, वहाँ कोई भी लागू करने योग्य संविदा नहीं हो सकता है। सरकार और किसी अन्य व्यक्ति के बीच कोई विवक्षित संविदा नहीं हो सकता है।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने रिट याचिका को अनुमति दे दी तथा याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध मांग को खारिज कर दिया।

निष्कर्ष

इस मामले में न्यायालय ने भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) के महत्वपूर्ण सिद्धांत की पुनरावृत्ति करते हुए कहा कि प्रस्तावक व्यक्ति इसे स्वीकार किये जाने से पहले वापस लेने का अधिकारी है।