होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम

आपराधिक कानून

दूध नाथ पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1981)

    «
 10-Feb-2025

परिचय

  • यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 11 के अंतर्गत प्रासंगिक 'अन्यत्र उपस्थिति' का अभिवाक से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है। 
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति ए.पी. सेन की दो सदस्यीय पीठ ने दिया।

तथ्य 

  • अपीलकर्त्ता एक मोटर-कार चालक था तथा मृतक के पारिवारिक बंगले के बाहरी हिस्से में किराएदार था।
  • उसे मृतक की बहन में रुचि थी, जिसका परिवार, विशेष रूप से मृतक ने कड़ा विरोध किया।
  • मृतक ने अपीलकर्त्ता को अपनी बहन का पीछा करने से रोकने के लिये सक्रिय कदम उठाए।
  • बहन की कस्टडी हासिल करने के लिये अपीलकर्त्ता का विधिक प्रयास विफल रहा।
  • बाद में उसे एक शिकायत के बाद गिरफ्तार कर लिया गया कि उसने उसके प्रति अभद्र व्यवहार किया था।
  • घटना से एक दिन पहले, अपीलकर्त्ता ने कथित तौर पर मृतक को धमकी दी थी कि अगर उसने विवाह का विरोध करना जारी रखा तो वह उसे जान से मार देगा। 
  • अगले दिन, जब मृतक अपनी बहन को स्कूल छोड़ने के बाद स्कूटर पर घर लौट रहा था, तो अपीलकर्त्ता ने उसे पिस्तौल से गोली मार दी।
  • मृतक की तत्काल मृत्यु हो गई। 
  • अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन दोषसिद्धि दी गयी तथा मृत्युदण्ड की सजा दी गई। 
  • उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि एवं सजा की पुष्टि की।

शामिल मुद्दे  

  • क्या सत्र न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन दोषसिद्धि देना उचित था?

टिप्पणी  

  • न्यायालय ने अपराध की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों के संबंध में निम्नलिखित तथ्यों को प्रस्तुत किया:
    • अपीलकर्त्ता, एक गरीब मोटर-कार चालक, बहुत आहत हुआ जब मृतक ने उसकी निम्न सामाजिक स्थिति के लिये उसका अपमान किया तथा उसे उसकी बहन से विवाह न करने की धमकी दी।
    • विवाद सामाजिक स्थिति का मामला बन गया, अपीलकर्त्ता का मानना ​​था कि लड़की विवाह के विरुद्ध नहीं थी।
    • पिछली शाम का विवाद "अचानक प्रकोपन" का गठन नहीं करता था जो हत्या के आरोप को कम कर देता, लेकिन अपीलकर्त्ता की मानसिक स्थिति सजा के लिये एक प्रासंगिक कारक थी।
  • न्यायालय ने पाया कि मृतक को गोली लगने के घाव एवं संभवतः गोली लगने से उत्पन्न खरोंच के अतिरिक्त कोई चोट नहीं थी। 
  • इसके अतिरिक्त, यह तथ्य कि स्कूटर खड़ा रहा, यह दर्शाता है कि मृतक अपीलकर्त्ता को देखकर रुक गया, जिसके कारण गोली चलाने से पहले दोनों के बीच तीखी नोकझोंक हुई। 
  • न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा उठाए गए अभिवाक के संबंध में निम्नलिखित निर्णय दिया:
    • अपीलकर्त्ता का कोई भी अभिकथन सिद्ध नहीं हो पाया क्योंकि बचाव पक्ष के साक्षी अपराध स्थल से उसकी अनुपस्थिति को सिद्ध करने में विफल रहे।
    • एक वैध अभिकथन से यह सिद्ध होना चाहिये कि आरोपी अपराध स्थल से इतनी दूर था कि वह वहाँ उपस्थित नहीं था।
  • न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय एवं सत्र न्यायालय द्वारा अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन दोषसिद्धि देना उचित था। 
  • हालाँकि, न्यायालय ने माना कि इस मामले में मृत्युदण्ड अत्यधिक होगा तथा इसलिये मृत्युदण्ड देना असुरक्षित होगा।

निष्कर्ष 

  • अन्यत्र उपस्थिति एक बचाव है जो IEA की धारा 11 के अधीन प्रासंगिक है।
  • यह निर्णय अन्यत्र उपस्थिति का अभिवाक को स्पष्ट करने एवं इस पर कब विचार किया जाएगा, इस विषय में प्रासंगिक है।