Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम

आपराधिक कानून

हनुमंत बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1986)

    «
 02-Dec-2024

परिचय

  • यह पारिस्थितिक साक्ष्य से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन की एकल पीठ द्वारा दिया गया था।

तथ्य

  • अभियुक्त संख्या 1 (नरगुंडकर) 9 नवंबर, 1946 को सीलबंद निविदा घर ले गया।
  • आरोप है कि निविदा घर पर ही खोली गई।
  • ई.जे. डूंगाजी (बोली लगाने वाला) की निविदा की दरें अभियुक्त संख्या 2 (आर.एस. पटेल) को बताई गईं।
  • अभियुक्त क्रमांक 2 ने डूंगाजी की दरों से कम दरों पर एक नई निविदा तैयार की और उसे बदल दिया।
  • ये खुली निविदाएँ 11 नवंबर, 1946 को कार्यालय को वापस कर दी गईं।
  • अभियुक्त संख्या 1 की सिफारिशों के आधार पर अभियुक्त संख्या 2 की निविदा स्वीकार कर ली गई और उसे ठेका दे दिया गया।
  • दोनों अभियुक्त पर टेंडर में जालसाज़ी करके सिवनी डिस्टिलरी का ठेका हासिल करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। इस प्रकार, उन पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 120 B और धारा 465 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया।
  • संबंधित सत्र न्यायालय ने धारा 120बी के तहत दोनों अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया, लेकिन आईपीसी की धारा 465B के तहत दोषसिद्धि और सज़ा को बरकरार रखा।
  • अपीलकर्त्ता ने इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके।
  • इसके बाद भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 136 के तहत एक आवेदन प्रस्तुत किया गया और न्यायालय ने इसे स्वीकार कर लिया।

शामिल मुद्दा

  • क्या अभियुक्त को उपर्युक्त अपराधों के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?

टिप्पणी

  • इस मामले में न्यायालय ने माना कि जब मामला पारिस्थितिक साक्ष्य पर आधारित होता है तो हमेशा यह खतरा बना रहता है कि दोषसिद्धि कानूनी साक्ष्य के बजाय संदेह पर आधारित हो सकती है।
  • इस मामले में न्यायालय ने पारिस्थितिक साक्ष्य को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत निर्धारित किये:
    • जिन परिस्थितियों के आधार पर दोष का निष्कर्ष निकाला जाना है, उन्हें पूरी तरह स्थापित किया जाना चाहिये।
    • इस प्रकार स्थापित तथ्य को किसी अन्य परिकल्पना के आधार पर स्पष्ट नहीं किया जा सकता, सिवाय इसके कि अभियुक्त दोषी है।
    • तथ्य निर्णायक प्रकृति के होने चाहिये।
    • तथ्य में सिद्ध की जाने वाली परिकल्पना को छोड़कर हर संभावित परिकल्पना को बाहर रखा जाना चाहिये।
    • साक्ष्यों कीशृंखला इतनी पूर्ण होनी चाहिये कि अभियुक्त की निर्दोषता के अनुरूप निष्कर्ष निकालने के लिये कोई उचित आधार न बचे तथा यह दर्शाया जाना चाहिये कि सभी मानवीय संभावनाओं के अनुसार यह कार्य अभियुक्त द्वारा ही किया गया होगा।
  • वर्तमान मामले के तथ्यों में न्यायालय ने माना कि पारिस्थितिक साक्ष्य ऐसे नहीं हैं कि वे उचित संदेह से परे साबित हो सकें।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने दोनों अपीलकर्त्ताओं की दोषसिद्धि को प्रभावी रूप से रद्द कर दिया।

निष्कर्ष

  • इस मामले में न्यायालय ने पारिस्थितिक साक्ष्य के नियम निर्धारित किये।
  • इस मामले में न्यायालय ने अब सुस्थापित नियम निर्धारित किया कि यदि दोषसिद्धि पारिस्थितिक साक्ष्य पर आधारित है तो परिस्थितियों को पूरी तरह से स्थापित और निर्णायक रूप से साबित किया जाना चाहिये।

[मूल निर्णय]