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आपराधिक कानून
पकाला नारायण स्वामी बनाम किंग एम्परर (1986)
«26-Nov-2024
परिचय
- यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 32 (1) के तहत मृत्युकालिक कथन से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति एटकिन द्वारा सुनाया गया।
तथ्य
- मृतक व्यक्ति का शव पुरी में तृतीय श्रेणी के कक्ष/ डिब्बे में एक स्टील के ट्रंक में पाया गया।
- बाद में पता चला कि मृतक पीथापुर के दीवान की सेवा में चपरासी था, जिसकी एक बेटी आरोपी की पत्नी थी।
- 1919 में अभियुक्त और उसकी पत्नी का विवाह हुआ और वे ब्रह्मपुर में रहने चले गए जो कि पीथापुर से लगभग 250 मील दूर है।
- 1933 में वे पीठापुर लौट आये, जहाँ उन्हें पैसों की आवश्यकता पड़ी और इसलिये, आरोपी की पत्नी ने मृतक से पैसे उधार लिये।
- 20 मार्च, 937 को मृतक को एक पत्र मिला, जिसके अंश से यह स्पष्ट था कि उसे पैसे वापस लेने के लिये ब्रह्मपुर बुलाया गया था। हालाँकि, यह पत्र पर्याप्त रूप से प्रमाणित नहीं था और इस पर हस्ताक्षर नहीं थे।
- मृतक की विधवा ने बताया कि मृतक ने उन्हें पत्र दिखाया था और कहा था कि वह बकाया पैसा वापस लेने के लिये ब्रह्मपुर जा रहे हैं।
- इस मामले में निम्नलिखित व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया: आरोपी, उसकी पत्नी, उसकी पत्नी का भाई और उनके साथ घर में रहने वाला उसका क्लर्क।
- न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य इस प्रकार थे:
- आरोपी के परिसर की तलाशी ली गई, जहाँ परिसर में लगभग अठारह इंच की गहराई पर गड़ा हुआ चिथड़ों का एक बंडल मिला।
- बेहरामपुर की एक दुकान में काम करने वाले दो कर्मचारियों की गवाही दी गई, जहाँ ट्रंक बनाए और बेचे जाते थे। उन्होंने यह भी गवाही दी कि आरोपी के धोबी ने एक ट्रंक मंगवाया था। इस तरह ट्रंक की बिक्री साबित हो गई।
- एक जेटका चालक ने भी साक्ष्य दिया, जिसने बताया कि आरोपी उसके घर आया था और कहा था कि उसे जेटका चाहिये और उसके जेटका पर एक ट्रंक लादा गया तथा उसे स्टेशन ले जाया गया।
- उपरोक्त साक्ष्य की पुष्टि जेटका के साथ-साथ दौड़ने वाले एक व्यक्ति द्वारा की गई।
- साक्ष्य सुनने के बाद उप-विभागीय मजिस्ट्रेट ने आरोपी को बरी कर दिया।
- सत्र न्यायाधीश ने अपीलकर्ता की पत्नी को सभी आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन अपीलकर्त्ता को हत्या का दोषी ठहराया और उसे मौत की सज़ा सुनाई।
- सत्र न्यायाधीश के निर्णय को पटना उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा।
- परिणामस्वरूप, न्यायालय के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की गई।
शामिल मुद्दा
- क्या विधवा का यह कथन कि मृतक अभियुक्त के घर अपना बकाया लेने जा रहा था, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 32 (1) के अंतर्गत स्वीकार्य है?
टिप्पणी
- धारा 32(1) के अंतर्गत मृत्युकालिक कथन जारी करने के संबंध में न्यायालय ने कहा:
- न्यायालय ने इस बात पर चर्चा की कि "संव्यवहार की परिस्थितियाँ" अभिव्यक्ति के अंतर्गत क्या आएगा:
- यह वाक्यांश "पारिस्थितिक साक्ष्य" में प्रयुक्त समानार्थी शब्द जितना व्यापक नहीं है, जिसमें सभी प्रासंगिक तथ्यों के साक्ष्य शामिल होते हैं।
- दूसरी ओर यह रेस गेस्टे (res gestae) से संकरा है।
- परिस्थितियों का वास्तविक घटना से कुछ निकट संबंध अवश्य होना चाहिये।
- न्यायालय ने इस मामले में माना कि मृतक द्वारा दिया गया यह कथन कि वह अभियुक्त के घर जा रहा था, तथा अभियुक्त की पत्नी से मिलने जा रहा था, जो अभियुक्त के घर में रहती थी, स्पष्ट रूप से उस संव्यवहार की कुछ परिस्थितियों के बारे में एक कथन प्रतीत होता है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों के आधार पर यह कथन सही रूप से स्वीकार किया गया है।
- न्यायालय ने इस बात पर चर्चा की कि "संव्यवहार की परिस्थितियाँ" अभिव्यक्ति के अंतर्गत क्या आएगा:
- इस मामले में न्यायालय ने इस बात पर भी चर्चा की कि ‘संस्वीकृति’ क्या होगी।
- संस्वीकृति में या तो अपराध की बात स्वीकार करनी होगी या कम-से-कम उन सभी तथ्यों को स्वीकार करना होगा जो अपराध का गठन करते हैं।
- किसी गंभीर रूप से दोषपूर्ण तथ्य की स्वीकृति, यहाँ तक कि निर्णायक रूप से दोषपूर्ण तथ्य की स्वीकृति भी अपने आप में स्वीकारोक्ति नहीं है, उदाहरण के लिये, यह स्वीकारोक्ति कि अभियुक्त उस चाकू या रिवॉल्वर का मालिक है तथा हाल ही में उसके पास था, जिससे किसी की मृत्यु हुई, तथा किसी अन्य व्यक्ति के पास वह रिवॉल्वर होने का कोई स्पष्टीकरण नहीं है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों में अभियुक्त के घर पर मृतक की उपस्थिति के पर्याप्त साक्ष्य हैं।
- अतः वर्तमान तथ्यों के आधार पर यह माना गया कि न्यायालय द्वारा अभियुक्त को दोषी ठहराना सही था।
निष्कर्ष
- यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने IEA की धारा 32 (1) के तहत मृत्युकालिक कथन पर चर्चा की।
- यह मामला इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि संस्वीकृति क्या होती है, जिसे IEA में परिभाषित नहीं किया गया है।