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आपराधिक कानून

पलविंदर कौर बनाम पंजाब राज्य (1952)

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 10-Apr-2025

परिचय 

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने कहा कि संस्वीकृति और अभिस्वीकृति को या तो समग्र रूप से स्वीकार किया जाना चाहिये या समग्र रूप से अस्वीकृत किया जाना चाहिये। 
  • यह निर्णय उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिया, जिसमें न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन, न्यायमूर्ति एन. चंद्रशेखर अय्यर एवं न्यायमूर्ति नटवरलाल एच. भगवती शामिल थे।

तथ्य   

  • पलविंदर कौर पर उनके पति जसपाल सिंह की मृत्यु के तत्त्वावधान में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 (हत्या) एवं 201 (साक्ष्य मिटाने) के अधीन अपराध के लिये अभियोजन का वाद लाया गया था। 
  • अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि पलविंदर कौर एवं मोहिंदरपाल सिंह (पलविंदर का एक रिश्तेदार जो न्यायालय भगोड़ा था) ने 6 फरवरी 1950 को जसपाल सिंह को पोटेशियम साइनाइड जहर दिया। 
  • अभियोजन पक्ष के अनुसार, जसपाल की मृत्यु के बाद, उनके शव को एक ट्रंक में रखा गया, लगभग दस दिनों तक घर में रखा गया, फिर बलदेवनगर कैंप ले जाया गया, तथा अंत में 19 फरवरी 1950 को छत नामक गांव के पास एक कुएँ में फेंक दिया गया। 
  • शव 11 मार्च 1950 को खोजा गया था, जब ग्रामीणों ने कुएँ से दुर्गंध आने की सूचना दी थी
  • सत्र न्यायाधीश ने धारा 302 के अधीन पलविंदर कौर को दोषी माना एवं धारा 201 के अधीन आरोप के विषय में निर्णय दर्ज किये बिना उसे आजीवन कारावास की सजा दिया। 
  • अपील पर, उच्च न्यायालय ने पलविंदर को हत्या के आरोप से दोषमुक्त कर दिया, लेकिन उसे धारा 201 के अधीन दोषी माना, उसे सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा दिया। 
  • उच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 1950 को पलविंदर द्वारा की गई संस्वीकृति पर बहुत अधिक विश्वास किया, जिसमें दोषसिद्धि वाले अंश को स्वीकार किया गया, जबकि दोषमुक्ति वाले अंश को स्वाभाविक रूप से अविश्वसनीय मानते हुए खारिज कर दिया गया। 
  • अपने संस्वीकृति में, पलविंदर ने दावा किया कि जसपाल ने गलती से फोटो धोने के लिये बने रसायन को दवा समझकर पी लिया था, तथा उसने एवं मोहिंदरपाल ने डर के मारे शव को ठिकाने लगा दिया था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या न्यायालय दोषमुक्ति वाले अंश को अस्वीकार करते हुए संस्वीकृति के दोषसिद्धि वाले भागों पर विश्वास कर सकता है?

टिप्पणी 

  • न्यायालय ने स्थापित किया कि संस्वीकृति और अभिस्वीकृति को या तो समग्र रूप से स्वीकार किया जाना चाहिये या समग्र रूप से खारिज किया जाना चाहिये, तथा न्यायालय दोषसिद्धि वाले भागों को चुनिंदा रूप से स्वीकार नहीं कर सकते जबकि दोषसिद्धि वाले भागों को खारिज कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों में समग्र रूप से पढ़ा गया अभिकथन दोषसिद्धि वाला था तथा पूरा अभिकथन साक्ष्य में अस्वीकार्य था तथा उच्च न्यायालय ने इसके पहले भाग को स्वीकार करके और दूसरे भाग को मिथ्या मानकर खारिज करके चूक किया। 
  • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि उच्च न्यायालय ने पलविंदर के अभिकथन को संस्वीकृति के रूप में मानने और IPC की धारा 201 के अंतर्गत आरोपों का समर्थन करने के लिये साक्ष्य के रूप में इसका उपयोग करने में चूक की। 
  • उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष का समर्थन करने के लिये कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था कि जसपाल की मृत्यु पोटेशियम साइनाइड की विषाक्तता के कारण हुई थी।
  • न्यायालय ने पाया कि यदि केवल आशय सिद्ध भी हो जाए, तो भी ठोस साक्ष्यों के अभाव में मृत्यु की परिस्थितियों या कारण को स्थापित नहीं किया जा सकता। 
  • न्यायालय ने कहा कि मोहिंदरपाल के पास पोटेशियम साइनाइड होना एक तटस्थ परिस्थिति थी, क्योंकि जसपाल के शरीर में कभी भी जहर नहीं पाया गया। 
  • उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि केवल शव को संदिग्ध तरीके से ठिकाने लगाना ही अप्राकृतिक मृत्यु को निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि लोग दुर्घटनावश हुई मृत्यु के मामले में भी असामान्य तरीके से कार्य कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने पाया कि पुलिस अधिकारियों एवं साक्षियों ने झूठी गवाही देकर अभियोजन पक्ष के मामले को काफी कमजोर कर दिया। 
  • उच्चतम न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि केवल संदेह के आधार पर स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, चाहे वह कितना भी सशक्त क्यों न हो, बल्कि केवल निश्चित साक्ष्यों के आधार पर ही स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है। 

निष्कर्ष 

  • उच्चतम न्यायालय ने पलविंदर कौर की अपील को स्वीकार करते हुए यह स्थापित किया कि संस्वीकृति को उसकी संपूर्णता में स्वीकार या अस्वीकार किया जाना चाहिये तथा बिना किसी ठोस साक्ष्य के केवल संदेह के आधार पर आपराधिक दोषसिद्धि नहीं की जा सकती। 
  • इस ऐतिहासिक निर्णय ने इस सिद्धांत को पुष्ट किया कि दोषमुक्ति कथन संस्वीकृति नहीं हैं तथा इसने आपराधिक मामलों में साक्ष्य के मूल्यांकन के लिये महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया।