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आपराधिक कानून

क्वीन एम्प्रेस बनाम अब्दुल्ला (1885)

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 25-Feb-2025

परिचय 

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें कहा गया है कि मृतक द्वारा किये गए संकेत और हाव-भाव भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 32(1) के अधीन मृत्युकालिक कथन के समान हैं।  

  • यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाया गया जिसमें मुख्य न्यायाधीश डब्ल्यू. कॉमर पेथरमैन, न्यायमूर्ति स्ट्रेट, न्यायमूर्ति ओल्डफेल्ड, न्यायमूर्ति ब्रॉडहर्स्ट और न्यायमूर्ति महमूद सम्मिलित थे।  

तथ्य  

  • वर्तमान मामला इस मामले में विशिष्ट तथ्यों के आधार पर मृतक द्वारा दिये गए मृत्युकालिक कथन की ग्राह्यता से संबंधित है।  
  • इस मामले में प्रश्न यह था कि क्या अब्दुल्ला ने मृतक का गला काटकर उसकी हत्या की थी।  
  • मृतक की ओर से केवल यही आरोप लगाया गया है कि उसने अस्पताल में कुछ लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में अपना हाथ हिलाया था।  
  • इस प्रकार, न्यायालय के समक्ष यह मामला था कि क्या मृतक के हाथ की हरकतें अर्थात् मृतक द्वारा किये गए संकेत भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 32 (1) के अधीन मृत्युकालिक कथन के समान हैं। 

अंतर्निहित विवाद्यक 

  • जब मृत्यु के कारण का उत्तर संकेतों द्वारा दिया जाता है, तो क्या ऐसे प्रश्न और संकेतों को एक साथ मिलाकर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 (1) के अधीन उचित रूप से “मौखिक कथन” माना जा सकता है? 
  • क्या केवल संकेतों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अधीन ‘आचरण’ माना जा सकता है? 

अवलोकन 

  • मुख्य न्यायाधीश डब्ल्यू. कॉमर पेथरमैन की राय इस प्रकार थी: 
    • मुख्य न्यायाधीश ने यह विश्लेषण करते हुए कि क्या प्रश्न के उत्तर में अभियुक्त के हाथ की हरकत का आचरण भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अधीन आचरण के अंतर्गत आती है, यह कहा कि:  
      • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में उपबंध है कि कोई भी आचरण जो किसी विवाद्यक या सुसंगत तथ्य को प्रभावित करता है या उससे प्रभावित होता है, सुसंगत होगा। 
      • वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि हाथ उठाने का आचरण विवाद्यक के तथ्य अर्थात् उसके गले को काटने से प्रभावित था या उससे प्रभावित था। 
      • उन मामलों में जहाँ उत्तर प्रश्नों या सुझावों के जवाब में दिया जाता है, यह किसी तथ्य द्वारा नहीं अपितु किसी अन्य चीज के हस्तक्षेप द्वारा प्रस्तुत की गई चीजों की स्थिति को दर्शाता है। इस प्रकार, संकेतों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अधीन "आचरण" के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। 
    • न्यायालय ने आगे विश्लेषण किया कि क्या संकेत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के अधीन मृत्युकालिक कथन के समान हैं: 
      • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 में उपबंध है कि लिखित या मौखिक कथन सुसंगत तथ्यों के अनुसार होना चाहिये 
      • "मौखिक" शब्द का अर्थ व्यापक है। 
      • न्यायालय ने माना कि चूंकि मृतक ने निस्संदेह डिप्टी मजिस्ट्रेट के शब्दों को "हाँ" जैसे स्पष्ट शब्दों द्वारा अपनाया होगा, यद्यपि उस मामले में भी जिन शब्दों में कथन वास्तव में दिया गया था, वे उसके स्वयं के नहीं होंगे। 
      • मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इन संकेतों को मृत्युकालिक कथन के रूप में अपनाया जाना चाहिये 
  • उपरोक्त निर्णय पर न्यायमूर्ति स्ट्रेट, न्यायमूर्ति ओल्डफ्लेड और न्यायमूर्ति ब्रोडहर्स्ट ने सहमति व्यक्त की।  
  • न्यायमूर्ति महमूद ने सहमति जताते हुए राय दी 

निष्कर्ष 

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें कहा गया है कि मृतक व्यक्ति द्वारा किये गए संकेत मृत्युकालिक कथन के समान होंगे। 
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि किये गए संकेत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत आचरण के अंतर्गत नहीं आएंगे, क्योंकि यह आचरण किसी भी विवाद्यक या सुसंगत तथ्य से प्रभावित नहीं है।