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आपराधिक कानून

अभयानंद मिश्रा बनाम बिहार राज्य (AIR 1961 SC 1698)

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 24-May-2024

परिचय:

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 511 के अधीन अपराध के लिये यह आवश्यक नहीं है कि शुरू किया गया संव्यवहार, अपराध के रूप में समाप्त हो, यदि वह बाधित न हो जाए।

तथ्य:

  • अपीलकर्त्ता ने व्यक्तिगत उम्मीदवार के रूप में एम.ए. परीक्षा (अंग्रेज़ी) में उपस्थित होने की अनुमति के लिये पटना विश्वविद्यालय में आवेदन किया।
  • उसने अवगत कराया कि उसने बी.ए. किया है तथा वह एक स्कूल में अध्यापक था।
  • आवेदन के लिये उनसे कुछ प्रमाण-पत्र संलग्न करने को कहा गया। उन्होंने स्कूल के हेडमास्टर एवं स्कूल इंस्पेक्टर द्वारा निर्गत प्रमाण-पत्र संलग्न किये।
  • विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने आवेदन स्वीकार कर लिया तथा उन्हें परीक्षा के लिये अनुमति दे दी।
  • प्रवेश-पत्र विद्यालय के प्रधानाध्यापक को भेज दिया गया।
  • जब विश्वविद्यालय को सूचना मिली कि अपीलकर्त्ता न तो स्नातक है और न ही शिक्षक है।
  • यह भी पाया गया कि प्रवेश के लिये दिये गए प्रमाण-पत्र जाली थे तथा यहाँ तक कि उसको किसी भी विश्वविद्यालय परीक्षा में प्रवेश लेने से निषेध कर दिया गया था। जिसका कारण उनके द्वारा विश्वविद्यालय परीक्षा में किया गया भ्रष्ट आचरण था।
  • मामले की सूचना पुलिस को दी गई तथा जाँच शुरू हुई।
  • उसे मिथ्या निरूपण द्वारा छल का प्रयास करने एवं विश्वविद्यालय के साथ प्रवंचना के अपराध के लिये दोषी ठहराया गया था।
  • उस पर IPC की धारा 511 के साथ पठित धारा 420 के अधीन अभियोजित किया गया तथा उसे दोषसिद्धि दे दी गई।
  • उसने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की तथा न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।
  • फिर उसने पटना उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति द्वारा अपील दायर की।
  • अपीलकर्त्ता का पहला तर्क यह था कि प्रवेश-पत्र का कोई धनीय मूल्य नहीं है और यह IPC की धारा 415 के अधीन संपत्ति नहीं है तथा दूसरा तर्क यह था कि उसके द्वारा किये गए कृत्य के कारण तैयारी (अपराध की तैयारी) के चरण से आगे नहीं बढ़े एवं इसलिये यहाँ छल का अपराध हुआ ही नहीं है।

शामिल मुद्दे:

  • क्या IPC की धारा 420 एवं 511 के अधीन अपीलकर्त्ता की सज़ा यथावत् रखने योग्य है?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब उसने विश्वविद्यालय में आवेदन जमा किया था तो तैयारी पूरी थीजैसे ही उसने इसे भेजा, वह ‘छल’ का अपराध करने के प्रयास के दायरे में प्रवेश कर गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि IPC की धारा 511 के अधीन एक व्यक्ति किसी विशेष अपराध को करने के प्रयास का अपराध करता है, जब वह उस विशेष अपराध को करने का आशय रखता है और तैयारी करके व उस अपराध को करने के आशय से, इसके लिये कोई कृत्य कारित करता है, तो आयोग, इस तरह के कृत्य का अपराध करने के लिये अंतिम कृत्य होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि ऐसा अपराध करने के दौरान किया जाने वाला कृत्य होना चाहिये।
  • वह विश्वविद्यालय के साथ प्रवंचना करने और प्रवेश-पत्र प्राप्त करने के लिये विश्वविद्यालय को उत्प्रेरित करने में सफल रहा। लेकिन वह इसे प्राप्त करने एवं परीक्षा में बैठने में असफल रहा क्योंकि उसके नियंत्रण से बाहर विश्वविद्यालय को उसके न तो स्नातक एवं न ही शिक्षक होने के बारे में सूचित किया गया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्रवेश-पत्र 'संपत्ति' है। इसलिये यदि विश्वविद्यालय तक कुछ सूचना पहुँचने के कारण प्रवेश-पत्र वापस नहीं लिया गया होता तो अपीलकर्त्ता ने 'छल' का अपराध किया होता।
  • न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 511 के साथ पठित धारा 420 के अधीन अपराध के लिये दोषसिद्धि दी गई थी तथा तद्नुसार उसकी अपील खारिज कर दी गई।

निष्कर्ष:

  • जिस क्षण अपीलकर्त्ता आवश्यक आशय से कोई कृत्य कारित करना प्रारंभ करता है, वह अपराध करने का प्रयास प्रारंभ कर देता है।
  • वह अपराध करने के आशय से कृत्य कारित करता है तथा यह कृत्य अपराध करने की दिशा में एक कदम है।
  • इसलिये, उसने IPC की धारा 511 के साथ पठित धारा 420 के अधीन परिभाषित अपराध किया।

नोट्स:

  • छल करना एवं संपत्ति परिदत्त करने के लिये बेईमानी से उत्प्रेरित करना- जो कोई छल करेगा, और तद्द्वारा उस व्यक्ति को, जिसे प्रवंचित किया गया है, बेईमानी से उत्प्रेरित करेगा कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या किसी भी मूल्यवान प्रतिभूति को, या किसी चीज़ को, जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित है, तथा जो मूल्यवान प्रतिभूति में संपरिवर्तित किये जाने योग्य है, पूर्णतः या अंशतः रच दे, परिवर्तित कर दे, या नष्ट कर दे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा एवं ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • IPC की धारा 511: आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दण्डनीय अपराधों को करने का प्रयत्न करने के लिये दण्ड—
  • जो कोई इस संहिता द्वारा आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध करने का, या ऐसा अपराध कारित किये जाने का प्रयत्न करेगा, और ऐसे प्रयत्न में अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करेगा, जहाँ कि ऐसे प्रयत्न के लिये कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता द्वारा नहीं किया गया है, वहाँ वह उस अपराध के लिये उपबंधित किसी भाँति के कारावास से उस अवधी के लिये, जो यथास्थिति, आजीवन कारावास से आधे तक की या उस अपराध के लिये उपबंधित दीर्घतम अवधी के आधे तक की हो सकेगी या ऐसे ज़ुर्माने से, जो उस अपराध के लिये उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।