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आपराधिक कानून

अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997)

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 17-Feb-2025

परिचय

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो अश्लीलता के लिये समकालीन कम्युनिटी स्टैण्डर्ड टेस्ट निर्धारित करता है। 
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी एवं न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन की दो सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य  

  • वर्तमान मामले में एक जर्मन पत्रिका “स्टर्न” थी जिसका विश्वव्यापी प्रसार था। 
  • पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें विश्व प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर की तस्वीर थी, जिसमें वे अपनी अश्वेत मंगेतर बारबरा फेल्टस के साथ नग्न अवस्था में पोज दे रहे थे, जो एक फिल्म अभिनेत्री हैं। 
  • लेख में बोरिस बेकर को रंगभेद के कट्टर विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त, यह दावा किया गया कि तस्वीर का उद्देश्य यह दर्शाना था कि प्रेम घृणा पर विजय प्राप्त करता है। 
  • “स्पोर्ट्स वर्ल्ड” भारत में प्रकाशित होने वाली एक व्यापक रूप से प्रसारित पत्रिका है जिसने लेख एवं तस्वीर को कवर स्टोरी के रूप में पुन: प्रस्तुत किया।
  • कोलकाता में व्यापक प्रसार वाले समाचार पत्र आनंदबाजार पत्रिका ने भी समाचार पत्र के दूसरे पृष्ठ पर उपर्युक्त तस्वीर प्रकाशित की। 
  • कोलकाता में प्रैक्टिस करने वाले एक अधिवक्ता ने स्पोर्ट्स वर्ल्ड एवं आनंदबाजार पत्रिका के नियमित पाठक होने का दावा करते हुए भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 292 के अधीन शिकायत दर्ज कराई। 
  • मजिस्ट्रेट ने माना कि आरोपी व्यक्तियों पर IPC की धारा 292 के अधीन अपराध के लिये वैकल्पिक रूप से महिलाओं के अश्लील चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986 (IRW) की धारा 4 के अधीन वाद लाया जाना चाहिये। 
  • अपीलकर्ताओं ने मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण को प्राथमिकता दी। इसलिये मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।
  • अत: मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या वर्तमान तथ्यों के आधार पर IPC की धारा 292 और IRW की धारा 4 के अंतर्गत अपराध कारित किया गया है?

टिप्पणी 

  • न्यायालय ने अश्लीलता संबंधी टेस्ट के विकास को इस प्रकार देखा:
    • यूनाइटेड किंगडम में 1868 में हिक्लिन टेस्ट निर्धारित किया गया था। आर. बनाम हिक्लिन (1868) के मामले में न्यायालय ने यह टेस्ट निर्धारित किया:
      • अश्लीलता का मानक यह है कि क्या अश्लीलता के रूप में आरोपित विषय की प्रवृत्ति उन लोगों को भ्रष्ट करने की है, जो ऐसी सामग्री के अभ्यस्त हैं तथा जिनके हाथों में इस प्रकार का प्रकाशन पड़ सकता है।
    • हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका में, रोथ बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका (1957) के मामले में उपरोक्त टेस्ट को अस्वीकार कर दिया गया था।
      • न्यायालय ने इस मामले में माना कि केवल वे यौन-संबंधी सामग्रियाँ ही अश्लील पाई गईं जिनमें "कामुक विचार उत्तेजित करने" की प्रवृत्ति थी तथा इसका मूल्यांकन समकालीन कम्युनिटी स्टैण्डर्ड को लागू करते हुए एक औसत व्यक्ति के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिये। 
  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारत में भी हिक्लिन टेस्ट "अश्लीलता क्या है" यह निर्धारित करने के लिये सही परीक्षण नहीं है। 
  • न्यायालय ने माना कि धारा 292 की उपधारा (1) के निर्वचन मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई चित्र या वस्तु अश्लील मानी जाएगी (i) यदि वह कामुक है; (ii) वह कामुक रुचि को आकर्षित करती है, तथा (iii) वह उन व्यक्तियों को भ्रष्ट करने या भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति रखती है जो कथित अश्लील सामग्री को पढ़ने, देखने या सुनने की संभावना रखते हैं। 
  • न्यायालय ने आगे कहा कि नग्न/अर्ध-नग्न महिला की तस्वीर को तब तक अश्लील नहीं कहा जा सकता जब तक कि उसमें भावना को जगाने या प्रत्यक्ष यौन इच्छा प्रकट करने की प्रवृत्ति न हो।
  • न्यायालय ने माना कि चित्र में भ्रष्ट मानसिकता का संकेत होना चाहिये तथा इसे ऐसे लोगों में यौन उन्माद पैदा करने के लिये बनाया जाना चाहिये जो इसे देखने वाले हैं, जो कि नग्न/अर्ध-नग्न महिला की विशेष मुद्रा तथा पृष्ठभूमि पर निर्भर करेगा। 
  • न्यायालय ने माना कि केवल वे यौन-संबंधी सामग्री ही अश्लील मानी जा सकती है जिनमें "कामुक विचार जगाने" की प्रवृत्ति हो, लेकिन अश्लीलता का आकलन समकालीन कम्युनिटी स्टैण्डर्ड को लागू करके एक औसत व्यक्ति के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिये। 
  • न्यायालय ने अंततः माना कि वर्तमान तथ्यों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि चित्र में लोगों के मन को भ्रष्ट करने या भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति नहीं है। 
  • इसलिये न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292 तथा IRW की धारा 4 के अधीन कार्यवाही प्रारंभ करने से मना कर दिया। 

निष्कर्ष 

  • यह भारत में अश्लीलता के विरुद्ध विधान से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है। 
  • इस मामले में न्यायालय ने अश्लीलता का पता लगाने के लिये समकालीन कम्युनिटी स्टैण्डर्ड टेस्ट विकसित किये।