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आपराधिक कानून

चिरंगी बनाम राज्य (1952)

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 11-Oct-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें बॉम्बे उच्च न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 79 के लागू होने की शर्तें निर्धारित की हैं।

  • IPC की धारा 79 में यह प्रावधान है कि कोई भी कृत्य तब तक अपराध नहीं है, जब तक वह किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे कारित किया गया हो कि वह विधि की भूल से नहीं बल्कि तथ्य की भूल से हुआ हो तथा जो कि विधि के अंतर्गत युक्तियुक्त हो।

तथ्य

  • चिरंगी लोहार (विधुर) अपनी अविवाहित बेटी के साथ रहता था, इकलौता बेटा गुड़साईं एवं भतीजा खोटला बस्तर जिले में एक साथ रहते थे।
  • उनके बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे तथा गुड़साईं अपने पिता के प्रति विचारशील था, जिनके पैर में फोड़ा था।
  • एक दोपहर चिरंगी ने एक कुल्हाड़ी लिया तथा गुड़साईं के साथ 'सियाड़ी' के पत्ते इकट्ठा करने के लिये  पास की पहाड़ी पर गया।
  • शाम को गुड़साईं कहीं नहीं मिला। चिरंगी से जब पूछा गया तो उसने बताया कि वह पागल हो गया है और उसने अपने बेटे को मार डाला।
  • उसने बताया कि उसे लगा कि एक बाघ उसके पास आया है और उसने कुल्हाड़ी से उस पर वार किया। उसने यही बात मुकद्दम को बताई और कोटवार को भी बताई।
  • गुड़साईं का शव पहाड़ी पर पाया गया था तथा शव परीक्षण से पता चला कि गुड़साईं के दाहिने टेम्पोरल बोन, गर्दन एवं बाएँ ह्यूमरस पर घाव थे तथा दाहिने टेम्पोरल बोन में फ्रैक्चर था।
  • चिरंगी के शरीर पर भी चोटें पाई गईं तथा उसने बताया कि पत्थर पर गिरने से उसे चोटें आई थीं और पागलपन के कारण उसे नहीं पता था कि पहाड़ी पर क्या हुआ था।
  • चिरंगी का मामला यह था कि उसने अपने बेटे को जादुई बाघ समझ लिया था तथा वह अपने कृत्य की प्रकृति को जानने में असमर्थ था।
  • ट्रायल कोर्ट ने माना कि तथ्य की कोई भूल नहीं थी तथा इसलिये कोर्ट ने चिरंगी को IPC की धारा 302 के अधीन दोषी ठहराया और दोषसिद्धि दी।
  • इस प्रकार, यह मामला बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष आया था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या IPC की धारा 79 के आधार पर चिरंगी की सजा को रद्द किया जा सकता है?

टिप्पणी

  • इस मामले में चारों मूल्यांकनकर्त्ताओं ने सर्वसम्मति से यह राय दी कि चिरंगी ने वास्तव में अपने बेटे को बाघ समझ लिया था तथा उसने अस्थायी पागलपन के कारण ‘सद्भावपूर्वक’ भूल की थी।
  • न्यायालय ने आगे डॉ. के.सी. दुबे की जाँच की, जिनकी गवाही से पता चला कि वे संबंधित तिथि से पहले द्विपक्षीय मोतियाबिंद से पीड़ित तथा इसलिये उसकी ओर से एक सद्भावपूर्वक भूल हुई थी।
  • डॉ. दुबे ने आगे कहा कि चिरंगी के गिरने एवं मौजूदा शारीरिक बीमारियों के कारण उसकी मानसिक स्थिति ऐसी हो सकती है कि उसने ईमानदारी से सोचा होगा कि उसके हमले का लक्ष्य बाघ था, न कि उसका बेटा।
  • इस मामले में न्यायालय ने दो निर्णयों पर विचार किया, जिनके तथ्यों को मामले के साथ ‘आंशिक रूप से मेल खाते’ देखा गया:
    • वरयाम सिंह बनाम सम्राट (1926)
      • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति की कई वार करके हत्या करने वाला अभियुक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, 304 या 304 A के अधीन उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि हमले के समय उसे सद्भावनापूर्वक विश्वास था कि उसके हमले का उद्देश्य कोई जीवित मनुष्य नहीं बल्कि एक भूत है।
      • न्यायालय ने माना कि इस मामले में अपराध करने के लिये ‘मनुष्य की मंशा’ मौजूद नहीं थी तथा आपराधिक मानव वध का उद्देश्य केवल एक जीवित प्राणी ही हो सकता है।
    • बोंडा कुई बनाम एम्परर (1943)
      • इस मामले में भी न्यायालय ने माना कि अभियुक्त द्वारा मृतका की हत्या करना न्यायोचित था, क्योंकि वह मृतका को मानव नहीं, बल्कि मानव को खाने वाली मानती थी।
  • न्यायालय ने माना कि इस मामले में चिरंगी ने भ्रम के क्षण में यह कृत्य किया, क्योंकि उसे लगा कि उसका लक्ष्य बाघ है तथा उसने तदनुसार अपनी कुल्हाड़ी से उस पर हमला कर दिया।
  • इस प्रकार, इस मामले के तथ्य ऊपर उद्धृत मामलों के समान थे तथा न्यायालय ने माना कि इन परिस्थितियों में तथ्य की भूल के कारण चिरंगी द्वारा मृतक को नष्ट करना उचित था, जिसे वह मनुष्य नहीं मानता था, बल्कि जिसे वह एक खतरनाक जानवर समझता था।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि इस मामले में आरोपी को IPC की धारा 79 के अधीन संरक्षण प्राप्त होगा।
  • तदनुसार, न्यायालय ने आरोपी व्यक्ति की सजा एवं दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।

निष्कर्ष

  • इस मामले में न्यायालय ने यह केस लॉ बनाया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के अधीन प्रावधान कब लागू किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि जहाँ कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या कारित करता है जिसे वह खतरनाक पशु समझता है, तो उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के आधार पर संरक्षण प्राप्त होगा, क्योंकि यह कहा जा सकता है कि यह कृत्य उस व्यक्ति द्वारा तथ्य की भूल के कारण किया गया था जो स्वयं को विधि द्वारा उचित मानता है।