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आपराधिक कानून

नईम खान उर्फ गुड्डू बनाम राज्य (2013)

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 19-Sep-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने पीड़िता पर एसिड से हमला करने के लिये आरोपी को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 307 के अधीन दोषसिद्धि दी।

यह निर्णय न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने दिया।

तथ्य

  • 22 अप्रैल 2005 को सूचना मिली कि कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने एक लड़की पर एसिड फेंक दिया है तथा एक PCR वैन उसे अस्पताल ले जा रही है।
  • विवेचना अधिकारी उस अस्पताल में गए जहाँ पीड़िता भर्ती थी, जहाँ उन्हें पता चला कि पीड़िता के चेहरे, आंखों, छाती के सामने एवं दोनों हाथों पर लगभग 25% जलने के घाव थे।
  • पुलिस अधिकारी ने पीड़िता लक्ष्मी का बयान दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) की धारा 161 के अधीन दर्ज किया।
    • उसने अपने बयान में बताया कि वह खान मार्केट में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर कार्य करती थी तथा उसने 8वीं तक पढ़ाई की है।
    • उसे राज कमल (PW-4) नाम का लड़का पसंद था। नईम खान उर्फ ​​गुड्डू नाम का एक और लड़का उससे प्यार करने लगा तथा उसने उसके परिवार के सामने विवाह का प्रस्ताव भी रखा।
    • हालाँकि, लक्ष्मी ने दोनों के बीच उम्र के बड़े अंतर का हवाला देते हुए विवाह का प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
    • 22 अप्रैल 2005 को सुबह करीब 10:30 बजे जब पीड़िता खान मार्केट जा रही थी, तो हनुमान रोड पर एक मोटरसाइकिल उसके पास आकर रुकी।
    • मोटरसाइकिल के चालक ने काले रंग का हेलमेट पहना हुआ था तथा उसका शरीर अपीलकर्त्ता (नईम खान उर्फ ​​गुड्डू) की तरह दुबला-पतला था।
    • उसने आगे बताया कि पीछे बैठी एक 28-30 साल की महिला थी, जो मोटरसाइकिल से उतरी और पीड़िता के सीने एवं चेहरे पर एसिड फेंक दिया।
    • लक्ष्मी उस महिला की पहचान करने में सक्षम थी, जिसे उसने पहले इमरान (अपीलकर्त्ता के भाई) के साथ देखा था।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अतिरिक्त बच्चों के पार्क के पास झाड़ियों से एसिड की बोतल बरामद की गई।
  • ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की एकमात्र प्रत्यक्ष गवाही के आधार पर आरोपी को IPC की धारा 307 के अधीन दोषसिद्धि दी।
  • उपरोक्त निर्णय पर निम्नलिखित आधारों पर प्रश्न किये गए:
    • प्रारंभिक जानकारी में आरोपी का नाम नहीं मिला, यह केवल CrPC की धारा 161 के अधीन दर्ज बयान में पाया गया।
    • इसलिये, अपीलकर्त्ता का नाम बाद में जोड़ा गया था तथा लक्ष्मी द्वारा दिया गया संस्करण मनगढ़ंत एवं अतार्किक था।
  • इसलिये मामला उच्च न्यायालय के समक्ष था।

शामिल मुद्दे

क्या अभियुक्त को हत्या के प्रयास के अपराध के लिये भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाना चाहिये?

टिप्पणी

  • घायल साक्षी की गवाही
    • न्यायालय ने कहा कि लक्ष्मी इस मामले में एक घायल प्रत्यक्षदर्शी थी तथा एक घायल प्रत्यक्षदर्शी की गवाही को बहुत महत्त्व दिया जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने इस संबंध में कई निर्णयों का उदाहरण दिया तथा कहा कि एक घायल साक्षी की गवाही को विधि में विशेष दर्जा प्राप्त है।
    • साक्षी को लगी चोट अपराध स्थल पर पीड़िता की उपस्थिति की अंतर्निहित गारंटी है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि न्यायालय के समक्ष पीड़िता की गवाही में कोई बड़ा विरोधाभास या सुधार नहीं था।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने लक्ष्मी की गवाही को इस आधार पर खारिज करने से मना कर दिया कि एक घायल साक्षी होने के कारण यह बहुत ही असंभव है कि वह अपीलकर्त्ताओं को मिथ्या फंसाने के लिये अपने असली दोषियों को छोड़ देगी।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने लक्ष्मी की गवाही को स्वीकार कर लिया।
  • बोतल की बरामदगी
    • न्यायालय ने कहा कि बीयर की बोतल में एसिड के दाग होने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है, इसलिये न्यायालय ने प्रकटीकरण कथन पर विश्वास नहीं किया तथा उसे अस्वीकार कर दिया।
  • हेतुक
    • न्यायालय ने कहा कि यह तथ्य संदेह से परे सिद्ध हो चुकी है कि अपीलकर्त्ता अपने विवाह प्रस्ताव के अस्वीकार किये जाने के कारण लक्ष्मी के प्रति द्वेष रखता था।
  • IPC की धारा 307 या IPC की धारा 326 के अधीन दोषसिद्धि
    • यह सर्वविदित है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत अपराध के मामले में, पीड़ित की मृत्यु को छोड़कर, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 (हत्या) के सभी तत्त्व उपस्थित होते हैं।
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत अभियुक्त के दुराशय या ज्ञान की जाँच की आवश्यकता होती है कि क्या उसके कृत्य से उसकी मंशा किसी की मृत्यु करने की थी, जो कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 के अंतर्गत हत्या के बराबर होगी।
    • इस प्रकार, इस प्रश्न का उत्तर हथियार की प्रकृति, कृत्य के समय अभियुक्त द्वारा व्यक्त की गई मंशा, उद्देश्य, चोटों की प्रकृति एवं आकार, पीड़ित के शरीर के वे भाग जहाँ चोटें पहुँची तथा प्रहार या प्रहारों की गंभीरता की जाँच करके दिया जाएगा।
    • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान कृत्य पूर्व नियोजित था तथा सिर पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड फेंकने के परिणामस्वरूप मृत्यु होने की संभावना है, यह तथ्य अभियुक्त को अवश्य पता होनी चाहिये या इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
    • इसलिये, न्यायालय ने माना कि यह अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत आता है।
    • न्यायालय ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि लड़कियों पर संक्षारक पदार्थ फेंकने की यह घृणित प्रथा बढ़ रही है तथा इस पर सख्ती से अंकुश लगाया जाना चाहिये।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को यथावत रखा तथा पाया कि इस मामले में दया की कोई संभावना नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने अपीलकर्त्ता को पीड़िता को अर्थदण्ड के रूप में 3 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया तथा यह भी अनुशंसा की कि पीड़िता लक्ष्मी के मामले पर उचित क्षतिपूर्ति के लिये दिल्ली विधिक सेवा समिति द्वारा विचार किया जाए।

निष्कर्ष

  • इस ऐतिहासिक निर्णय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि एक महिला पर एसिड फेंकना कितना जघन्य कृत्य है।
  • न्यायालय ने इसे ईर्ष्या एवं बदले की भावना से प्रेरित अपराध बताया।
  • न्यायालय ने कहा कि इस तरह के घृणित कृत्य की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए दी जाने वाली सजा उचित होनी चाहिये, क्योंकि यह कृत्य न केवल पीड़िता को शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है तथा उसे जीवन भर के लिये आघात पहुँचाता है।