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आपराधिक कानून

ऋषि देव पांडे एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (1955)

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 07-Jan-2025

परिचय

  • यह भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 34 के अधीन सामान्य आशय पर चर्चा करने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है।
  • यह न्यायमूर्ति एस. दास, न्यायमूर्ति भगवती एवं न्यायमूर्ति जे. इमाम की 3 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य  

  • अपीलकर्त्ता ऋषिदेव एवं उसके भाई राम लोचन पांडे को पीड़ित शिवमूरत की खाट के पास देखा गया, जो सो रहा था।
  • राम लोचन के पास गंडासा (एक धारदार हथियार) था, जबकि ऋषिदेव के पास लाठी थी। एक अन्य व्यक्ति बंसलोचन दरवाजे की रखवाली कर रहा था।
  • राम लोचन को शिवमूरत की गर्दन पर जानलेवा वार करने के बाद गंडासा उठाते हुए देखा गया। अपीलकर्त्ता, ऋषिदेव, अपनी लाठी के साथ खाट के पैर के पास खड़ा था।
  • शिवमूरत की गर्दन पर एक गंभीर घाव हो गया, जिसे मेडिकल साक्ष्यों के अनुसार घातक माना गया, तथा लाठी से चोट के कोई निशान नहीं थे।
  • हमले के बाद, दोनों भाई एक साथ भाग गए तथा उन्हें पीड़ित के कमरे से भागते हुए देखा गया।
  • बाद में वे फरार हो गए तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 87 एवं 88 के अधीन उनके विरुद्ध कार्यवाही प्रारंभ होने के बाद ही उन्होंने मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण किया।
  • सत्र न्यायाधीश ने ऋषिदेव, राम लोचन एवं बंसलोचन को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के साथ धारा 34 (सामान्य आशय) के अधीन शिवमूरत की हत्या के लिये दोषी ठहराया। तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई, जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा की जानी है।
  • उच्च न्यायालय ने राम लोचन एवं बंसलोचन की अपील को खारिज कर दिया, जिन्होंने अपनी सजा स्वीकार कर ली। वर्तमान अपील केवल ऋषिदेव द्वारा दायर की गई थी।

शामिल मुद्दे  

  • क्या राम लोचन के साथ उपस्थित दो आरोपी व्यक्ति भी भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 34 के आधार पर हत्या के लिये उत्तरदायी होंगे?

टिप्पणी

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि यद्यपि राम लोचन ने ही वह घातक प्रहार किया था जिससे शिवमूरत की मृत्यु हो गई, लेकिन तीनों आरोपियों की उपस्थिति से पता चलता है कि उनके पास पीड़ित को मारने की पूर्व-नियोजित योजना थी।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि राम लोचन का हथियारबंद होना यह दर्शाता है कि अन्य दो आरोपी भी उसकी हत्या करने की मंशा से अवगत थे तथा उसमें भागीदार थे।
  • न्यायालय ने कहा कि यह तथ्य कि केवल राम लोचन ने ही प्राणघातक वार किया, कोई औचित्य नहीं रखता; तीनों आरोपियों को IPC की धारा 34 (सामान्य आशय) के अधीन हत्या के लिये उत्तरदायी माना गया।
  • तथ्यों एवं परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि हत्या घटनास्थल पर विकसित एक सामान्य आशय के अंतर्गत की गई थी।

निष्कर्ष

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने धारा 34 से उत्पन्न होने वाले सामान्य आशय पर न्यायिक विधान प्रस्तुत किया है।
  • IPC की धारा 34 दण्ड संहिता के अधीन प्रतिनिधि दायित्व का नियम निर्धारण करती है।
  • यह प्रावधान किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिये उत्तरदायी बनाता है, जब वह सामान्य आशय से किया गया हो।