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आपराधिक कानून

शिव चरण लाल वर्मा एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002)

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 15-Oct-2024

परिचय

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें यह अवधारित किया गया है कि यदि विवाह अकृत है तो भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के अनुसार अपराध नहीं माना जाएगा।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति एस.एन. फुकन एवं न्यायमूर्ति एस.एन. वरियावा की दो सदस्यीय पीठ ने दिया।

तथ्य

  • शिवचरण का विवाह पहले से ही कालिंदी से हुआ था तथा इसके बाद विवाहित होने के बावजूद उसने मोहिनी से दूसरा विवाह कर लिया था।
  • आरोप है कि विवाह के बाद कालिंदी एवं शिवचरण दोनों ने मोहिनी को प्रताड़ित किया, जिसके कारण उसने स्वयं को जलाकर आत्महत्या कर ली।
  • घटना शिवचरण के घर के अंदर हुई।
  • मामला IPC की धारा 306 एवं धारा 498A के अंतर्गत दर्ज किया गया।
  • सत्र न्यायालय ने माना कि घटना शिवचरण के घर के अंदर हुई, जबकि कालिंदी एवं शिवचरण एक कमरे में थे तथा मोहिनी दूसरे कमरे में थी।
  • इस प्रकार, सत्र न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अभियोजन पक्ष सभी आरोपों को उचित संदेह से परे सिद्ध करने में सक्षम है तथा दोनों को दोषी ठहराया।
  • उच्च न्यायालय ने साक्ष्य की सराहना की और दोषसिद्धि एवं सजा की पुष्टि की।
  • मामला विशेष अनुमति के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या अभियुक्त को इस तथ्य के मद्देनजर IPC की धारा 498A के अंतर्गत दोषसिद्धि दी जानी चाहिये कि मोहिनी के साथ अभियुक्त का विवाह अकृत था?
  • क्या अभियुक्त को IPC की धारा 306 के अंतर्गत दोषसिद्धि दी जानी चाहिये?

टिप्पणी

  • न्यायालय ने माना कि कालिंदी के साथ वैध विवाह के अस्तित्व के दौरान मोहिनी के साथ अपीलकर्त्ता का विवाह अकृत है।
  • चूंकि विवाह अकृत है, इसलिये न्यायालय ने IPC की धारा 498A के अंतर्गत दोषसिद्धि को खारिज कर दिया।
  • हालाँकि, IPC की धारा 306 के अंतर्गत दोषसिद्धि के संबंध में न्यायालय ने माना कि अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा पहले से ही संदर्भित तीन साक्षियों के साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि कालिंदी एवं शिवचरण दोनों द्वारा प्रताड़ित किये जाने के कारण पीड़िता ने आत्महत्या कारित की थी।
  • इसलिये, न्यायालय को IPC की धारा 306 के अंतर्गत दोषसिद्धि के आदेश में कोई चूक नहीं लगी।
  • तदनुसार अपील का निपटान कर दिया गया तथा अपीलकर्त्ताओं के जमानत बॉण्ड रद्द कर दिये गए।

निष्कर्ष

  • न्यायालय ने कहा कि जब विवाह अकृत हो तो धारा 498A के अंतर्गत दोषसिद्धि नहीं दी जाएगी।
  • इस प्रकार, इस निर्णय में घोषित किया गया कि धारा 498A के अंतर्गत दोषसिद्धि के प्रयोजनों के लिये वैध विवाह एक महत्त्वपूर्ण घटक है।