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आपराधिक कानून

पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह (1966)

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 08-Apr-2025

परिचय

  •  यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 354 के अधीन महिला की लज्जा भंग करने के अपराध पर चर्चा की।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति ए.के. सरकार, न्यायमूर्ति जे.आर. मुधोलकर एवं न्यायमूर्ति आर.एस. बछावत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिया।

तथ्य   

  • प्रतिवादी ने एक कमरे में प्रवेश किया, जहाँ 7.5 महीने की बच्ची सो रही थी और उसने लाइट बंद कर दी। 
  • प्रतिवादी ने आंशिक रूप से कपड़े उतारे और बच्ची के साथ लैंगिक कृत्य कारित किया। 
  • प्रतिवादी की हरकतों से बच्ची को शारीरिक चोटें आईं, जिसमें हाइमन का फटना और योनि का फटना शामिल है। 
  • जब बालक की माँ कमरे में दाखिल हुई तथा उसने लाइट ऑन की तो प्रतिवादी भाग गया। 
  • विधिक प्रश्न यह है कि क्या प्रतिवादी की हरकतें भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 354 के अधीन "महिला की लज्जा भंग करना" के अंतर्गत आती हैं। 
  • उच्च न्यायालय स्तर पर, तीन न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की - दो ने निर्णय दिया कि अपराध धारा 354 के अधीन योग्य नहीं था, जबकि एक न्यायाधीश ने पुष्टि की कि यह योग्य था। 
  • राज्य ने उच्च न्यायालय के बहुमत के निर्णय के विरुद्ध अपील की है।

शामिल मुद्दे  

  • क्या साढ़े सात महीने की बच्ची के गुप्तांगों को चोट पहुँचाने वाला प्रतिवादी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन कारित अपराध का दोषी है?

टिप्पणी 

  • न्यायालय ने कहा कि IPC की धारा 354 में "किसी महिला का अपमान करने का आशय होना’ या यह जानते हुए कि वह ऐसा करके उसकी लज्जा भंग होगा" शब्दों का प्रयोग किया गया है। 
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि यह मानने में कोई असंगति नहीं है कि मानव शरीर के विरुद्ध अपराध का होना उस व्यक्ति की प्रतिक्रिया पर निर्भर नहीं करता जिसके विरुद्ध अपराध किये जाने का आरोप लगाया गया है, बल्कि अन्य तथ्यों पर निर्भर करता है। 
  • न्यायालय ने आगे कहा कि IPC की धारा 10 में स्पष्ट किया गया है कि "महिला" किसी भी उम्र की महिला मानव को दर्शाती है।
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 में प्रयुक्त शब्द "महिला" को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 10 के अनुरूप पढ़ा जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, संहिता यह परिभाषित नहीं करती कि "विनम्रता" क्या होगी। इस शब्द के संबंध में न्यायालय ने निम्नलिखित अभिनिर्धारण किया:
    • एक महिला की लज्जा का सार उसका लिंग है।
    • युवा या वृद्ध, बुद्धिमान या मूर्ख, जागती या सोती हुई, महिला में लज्जा होती है जिसे भंग किया जा सकता है।
    • महिला मूर्ख हो सकती है, वह बेहोशी की दवा के प्रभाव में हो सकती है, वह सो रही हो सकती है, वह कृत्य की व्याख्या करने में असमर्थ हो सकती है; फिर भी, अपराधी महिला की लज्जा भंग करने के अपराध के अंतर्गत दण्डनीय है।
  • आरोपी को सज़ा देने की मंशा ही मामले का सार है। महिला की प्रतिक्रिया बहुत प्रासंगिक है, लेकिन उसकी अनुपस्थिति हमेशा निर्णायक नहीं होती। 
  • वर्तमान तथ्यों में पीड़िता की उम्र कम थी (साढ़े सात महीने) तथा उसमें अभी तक लज्जा की भावना विकसित नहीं हुई थी। 
  • एक महिला में जन्म से ही शालीनता होती है जो उसके लिंग का गुण है। इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि वर्तमान तथ्यों में प्रतिवादी को IPC की धारा 354 के अंतर्गत दोषी माना जाना चाहिये।

निष्कर्ष 

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर चर्चा की कि महिला की लज्जा क्या मानी जाएगी। 
  • न्यायालय ने यह भी स्थापित किया कि महिला की प्रतिक्रिया प्रासंगिक है, लेकिन निर्णायक नहीं है और आरोपी का दोषपूर्ण आशय ही मामले का सार है।