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वाणिज्यिक विधि

आर.जी. आनंद बनाम डीलक्स फिल्म्स (1978)

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 29-Jul-2024

परिचय:

यह मामला फिल्म “न्यू डेल्ही” द्वारा एक लोकप्रिय हिंदी नाटक, “हम हिंदुस्तानी” के कथित कॉपीराइट उल्लंघन की जाँच से संबंधित है।

तथ्य:

  • वादी (अपीलकर्त्ता), के.आर. रामनाथ, एक वास्तुकार, नाटककार एवं मंच नाटकों के निर्माता थे।
  • वर्ष 1953 में, उन्होंने "हम हिंदुस्तानी" नामक एक हिंदी नाटक लिखा, जिसे पहली बार फरवरी वर्ष 1954 में नई दिल्ली में प्ले किया गया था। यह नाटक लोकप्रिय हुआ तथा कई बार इसका मंचन किया गया।
  • नवंबर 1954 में, दूसरे प्रतिवादी मोहन सहगल ने वादी से संपर्क किया तथा नाटक पर आधारित एक फिल्म बनाने में रुचि व्यक्त की।
  • दूसरा प्रतिवादी फिल्म निर्देशक एवं डीलक्स फिल्म्स का स्वामी के रूप में था।
  • जनवरी 1955 में वादी ने प्रतिवादी से भेंट की तथा उसे पूरा नाटक सुनाया। दूसरे प्रतिवादी ने कोई वचन नहीं दिया, लेकिन कहा कि वह वादी को अपनी प्रतिक्रिया बाद में बताएगा।
  • मई 1955 में दूसरे प्रतिवादी ने डीलक्स फिल्म्स के बैनर तले"न्यू डेल्ही" नामक फिल्म के निर्माण की घोषणा की।
    • वादी ने दूसरे प्रतिवादी को पत्र लिखकर अपने नाटक के रूपांतरण के विषय में चिंता व्यक्त की, लेकिन उसने किसी भी तरह के संबंध से मना कर किया।
  • फिल्म "न्यू डेल्ही" सितंबर 1956 में रिलीज़ हुई थी। इसे देखने के बाद, वादी को लगा कि यह पूरी तरह से उसके नाटक पर आधारित है।
  • वादी ने कॉपीराइट उल्लंघन के लिये प्रतिवादियों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति, लाभ एवं स्थायी निषेधाज्ञा के लिये वाद संस्थित किया।
  • प्रतिवादियों ने नाटक की प्रतिलिपि निर्माण करने से मना किया तथा यह दावा किया कि फिल्म विषय-वस्तु, भावना एवं क्लाइमेक्स में भिन्न थी। उन्होंने तर्क दिया कि समानताएँ प्रांतीयता के सामान्य विषय के कारण थीं।
  • ट्रायल कोर्ट एवं दिल्ली उच्च न्यायालय ने वादी की अपील को अस्वीकृत कर दिया, जिसमें कोई कॉपीराइट उल्लंघन नहीं पाया गया।
  • वादी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या प्रतिवादियों की फिल्म "न्यू डेल्ही" ने वादी के नाटक "हम हिंदुस्तानी" के कॉपीराइट का उल्लंघन किया है?
  • ऐसे मामलों में कॉपीराइट उल्लंघन का निर्धारण करने के लिये विधिक परीक्षण एवं सिद्धांत क्या हैं?

टिप्पणी:

उच्चतम न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया तथा निम्नांकित कारणों के आधार पर अधीनस्थ न्यायालय के इस निष्कर्ष को यथावत् रखा कि कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं हुआ है:

  • नाटक एवं फिल्म में विषय-वस्तु एवं प्रस्तुति के मामले में पर्याप्त अंतर थे।
  • समानताएँ नगण्य थीं तथा कॉपीराइट द्वारा संरक्षित न होने वाले सामान्य विचारों से संबंधित थीं।
  • असमानताएँ समानताओं से अधिक थीं।
  • संपूर्ण कृतियों को देखते हुए, फिल्म को नाटक की पर्याप्त या भौतिक प्रति नहीं माना जा सकता।
  • न्यायालय दो अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा तथ्यों के समवर्ती निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने के लिये अनिच्छुक था।

निष्कर्ष:

इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय में इस सिद्धांत की पुष्टि की गई है कि विचार स्वयं कॉपीराइट द्वारा संरक्षित नहीं हैं, बल्कि उनकी विशिष्ट अभिव्यक्ति कॉपीराइट द्वारा संरक्षित है।