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सिविल कानून
इमरत लाल बनाम भूमि अधिग्रहण अधिकारी, 2015 (2) RCR 437
«02-Jul-2024
परिचय:
इस मामले में समय बीत जाने के बाद भी विलंब के लिये क्षमा प्रदान की गई।
तथ्य:
- अपीलकर्त्ता की भूमि सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (LA) की धारा 54 के अंतर्गत अधिग्रहित की गई थी।
- अपीलकर्त्ता द्वारा भूमि अधिग्रहण कलेक्टर द्वारा दिये गए पंचाट में उल्लिखित परिणाम से असंतुष्ट होने पर अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी तथा पंचाट का मूल्य परिवर्द्धन कर दिया गया था।
- कई भूस्वामियों ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 54 के अंतर्गत पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष सुदामा एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2006) मामले के अंतर्गत पंचाट मूल्य के परिवर्द्धन के लिये अपील दायर की तथा भूमि अधिग्रहण कलेक्टर द्वारा किये गए पंचाटों का मूल्य परिवर्द्धित कर दिया। लगभग तीन वर्ष बाद अपीलकर्त्ता ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष विलंब के लिये क्षमा का अनुरोध करते हुए अपील दायर की।
- न्यायालय ने अपील को अस्वीकार कर दिया क्योंकि परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के अंतर्गत विलंब को क्षमा करने के लिये कोई पर्याप्त कारण नहीं था।
- इस अस्वीकृति के परिणामस्वरूप अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
शामिल मुद्दे:
- क्या LA, 1984 की धारा 54 के अंतर्गत दायर अपील स्वीकार्य है?
- क्या विलंब के लिये क्षमा परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के अंतर्गत किया गया आवेदन स्वीकार्य है?
टिप्पणी:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अशिक्षा, गरीबी एवं अज्ञानता के कारण ग्रामीण विधिक कार्यवाही में उचित आचरण करने में असमर्थ हैं।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि ग्रामीणों के पास पूर्ण एवं उचित सूचनातंत्र भी नहीं होता तथा वे आम तौर पर अल्प ज्ञान के आधार पर ही अपना मामला दायर करते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में निर्णय देते समय न्यायालय को ग्रामीणों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
निष्कर्ष:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पंचाट में वृद्धि के लिये आवेदन स्वीकार्य होगा, लेकिन विलंब के लिये ब्याज नहीं दिया जाएगा।