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पारिवारिक कानून

शमीम बानो बनाम असरफ खान (2014)

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 17-Sep-2024

परिचय:

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर चर्चा की कि मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद भरण-पोषण पाने की अधिकारी है।

  • यह निर्णय 2 न्यायाधीशों की पीठ- न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा एवं न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन ने दिया।

तथ्य:

  • अपीलकर्त्ता (शमीम बानो) एवं प्रतिवादी (अशरफ खान) का निकाह 17 नवंबर 1993 को हुआ थी।
  • अपीलकर्त्ता ने पति एवं उसके परिवार के सदस्यों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के साथ IPC की धारा 34 के अधीन मामला दर्ज कराया।आखिरकार, आरोपी व्यक्तियों को मामले में दोषमुक्त कर दिया गया।
  • अपीलकर्त्ता ने भरण-पोषण के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अधीन आवेदन दाखिल किया।
  • भरण-पोषण के लिये आवेदन लंबित रहने के दौरान अपीलकर्त्ता एवं प्रतिवादी के बीच तलाक हो गया।
  • इस बिंदु पर अपीलकर्त्ता ने मुस्लिम स्त्री (विवाह-विच्छेद पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 (अधिनियम) की धारा 3 के अधीन एक आवेदन दायर किया। इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया तथा न्यायालय ने पति को मेहर के रूप में 11,786 रुपए, सामान एवं आभूषण वापस करने और इद्दत अवधि के दौरान भरण-पोषण के लिये 1,750 रुपए की राशि का भुगतान करने का आदेश दिया।
  • CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण के लिये आवेदन खारिज कर दिया गया।
  • भरण-पोषण न देने के उपरोक्त आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गई तथा पुनरीक्षण न्यायालय ने मजिस्ट्रेट की राय से सहमति जताई।
  • बाद में, उपरोक्त आदेश के विरुद्ध CrPC की धारा 482 के अधीन आवेदन दायर किया गया।
  • उच्च न्यायालय ने उपरोक्त न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।

शामिल मुद्दे:

  • क्या तलाक के बाद अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत मेहर देने एवं उपहारों की वापसी के लिये आवेदन दाखिल करने से अपीलकर्त्ता को CrPC की धारा 125 के अधीन आवेदन जारी रखने का अधिकार नहीं रह जाएगा?
  • क्या CrPC की धारा 125 के अधीन आवेदन बनाए रखने के लिये अधिनियम की धारा 5 के अधीन सहमति अनिवार्य है?

टिप्पणी:

  • इस मामले में न्यायालय ने मामले की विधियों और घटनाक्रम का पुनः सार प्रस्तुत किया:
    • मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम एवं अन्य (1985): यहाँ जिस मुख्य मुद्दे का उत्तर दिया गया वह यह था कि क्या मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण पाने की अधिकारी है। इस मामले में न्यायालय ने माना कि मुस्लिम पत्नी भरण-पोषण पाने की अधिकारी है तथा धारा 127, CrPC की धारा 125 के अधीन पति को उसके दायित्व से मुक्त नहीं करती है।
    • इस निर्णय के बाद संसद ने अधिनियम बनाया।
    • इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर दानियाल लतीफी एवं अन्य बनाम भारत संघ (2001) के मामले में प्रश्न किया गया था।
  • न्यायालय ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को यथावत् रखा।
  • हालाँकि अधिनियम की धारा 2 एवं धारा 3 की व्याख्या करते हुए न्यायालय ने माना कि विधानमंडल का आशय यह है कि तलाकशुदा महिला को तलाक के बाद आजीविका के पर्याप्त साधन मिलें तथा इसलिये, प्रावधान शब्द से संकेत मिलता है कि कुछ आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कुछ अग्रिम रूप से प्रदान किया जाता है।
  • खातून निसा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2002):
    • अधिनियम के अंतर्गत जब पक्ष सहमत होते हैं तो CrPC की धारा 125 के प्रावधानों को अधिनियम की धारा 5 में निहित प्रावधानों के अनुसार लागू किया जा सकता है।
    • साथ ही, अधिनियम की धारा 5 एवं CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण देने के मापदण्ड एवं विचार समान हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि दानियाल लतीफी बनाम भारत संघ (2001) के मामले में दिये गए निर्णय के मद्देनज़र मजिस्ट्रेट के पास CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण देने की शक्ति है तथा शक्तियों का प्रयोग करने के लिये मापदंड वही हैं। साथ ही, न्यायालय ने तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण देने के आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।
  • इस मामले में उच्च न्यायालय ने माना था कि चूँकि अपीलकर्त्ता ने पहले ही अधिनियम की धारा 3 का सहारा ले लिया है, इसलिये धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण प्रदान करने का आवेदन केवल तब तक ही स्वीकार्य होगा जब तक उसका तलाक नहीं हो जाता।
    • उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त पर संदेह व्यक्त किया तथा पाया कि CrPC की धारा 125 के अधीन आवेदन के लंबित रहने के दौरान तलाक हो गया तथा पत्नी ने वस्तुओं की वापसी, मेहर के भुगतान एवं इद्दत अवधि के दौरान भरण-पोषण के लिये अधिनियम की धारा 3 के अधीन आवेदन प्रस्तुत किया।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि वास्तव में इद्दत अवधि के बाद कोई भरण-पोषण नहीं दिया गया है, क्योंकि याचिका भिन्न थी।
    • न्यायालय ने कहा कि यदि अपीलकर्त्ता को राहत देने से मना किया जाता है तो यह न्याय का उपहास होगा।
    • साथ ही, यदि अधिनियम की धारा 3 के अधीन आवेदन दायर किया जाता है तो भी CrPC की धारा 125 के मापदंड लागू होंगे।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि जब अपीलकर्त्ता-पत्नी ने अधिनियम की धारा 3 के अधीन आवेदन दायर किया, तब भी मजिस्ट्रेट के पास CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण देने की शक्ति बनी हुई है।
  • यदि पत्नी ने अधिनियम की धारा 3 के अधीन आवेदन दायर किया है तो इससे तात्पर्य यह नहीं है कि उसने अपना विकल्प चुना है।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि पति द्वारा सहमति के अभाव की दलील कभी नहीं उठाई गई।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया तथा विवादित आदेशों को रद्द कर दिया।

निष्कर्ष:

  • इस मामले में न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 3 के अधीन आवेदन दाखिल करने मात्र का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी ने अपना विकल्प चुन लिया है, तथा इसलिये वह CrPC की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण पाने की अधिकारी बनी हुई है।
  • इस प्रकार, इस मामले में न्यायालय ने माना कि एक मुस्लिम पत्नी इद्दत अवधि के बाद भरण-पोषण की मांग कर सकती है।